Monday, November 19, 2012

जानें स्त्रीधन और दहेज का फर्क


सुप्रीम कोर्ट ने हाल में दहेज मामलों को लेकर अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पति के परिजनों को सिर्फ इस आधार पर दहेज केस में शामिल नहीं कर लेना चाहिए कि शिकायती ने उनका नाम लिया है या एफआईआर में उनका नाम है।
 दहेज कानून के तहत किसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है?
दहेज लेना और देना, दोनों ही जुर्म है। 1961 में दहेज निरोधक कानून बनाया गया। 1983 में आईपीसी की धारा-498 ए बनाई गई, जिसके तहत दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने पर पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।
दहेज निरोधक कानून में दहेज लेना और देना, दोनों को जुर्म माना गया है। दहेज निरोधक कानून की धारा-8 कहती है कि दहेज देना और लेना, दोनों संज्ञेय अपराध हैं। दहेज लेने और देने के मामले में धारा-3 के तहत मामला दर्ज हो सकता है और इस धारा के तहत जुर्म साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद की सजा का प्रावधान है।

क्या लड़की वालों पर दहेज देने का केस दर्ज हो सकता है?
दहेज प्रताड़ना के मामलों में अक्सर शिकायती बयान देते हैं कि लड़के वालों की मांग पूरी करने के लिए शादी में उनकी तरफ से इतना दहेज दिया गया, शादी के लिए इतना खर्च किया गया आदि। सुप्रीम कोर्ट के क्रिमिनल लॉयर डी. बी. गोस्वामी का कहना है कि पुलिस को ऐसे मामलों की छानबीन के दौरान काफी सजग रहने की जरूरत है। अगर रेकॉर्ड में दहेज देने की बात हो तो लड़की पक्ष पर कार्रवाई हो सकती है।

दहेज की मांग करने पर क्या कार्रवाई हो सकती है?

धारा-4 के मुताबिक दहेज की मांग करना जुर्म है। शादी से पहले अगर वर पक्ष दहेज की मांग करता है, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है। केस साबित होने पर 2 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।

दहेज प्रताड़ना के साथ क्या दूसरी धाराएं भी लगाई जा सकती हैं?
1983 में धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) और 1986 में धारा-304 बी (दहेज हत्या) का प्रावधान किया गया। शादी के 7 साल के दौरान अगर पत्नी की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो जाए और उससे पहले दहेज के लिए उसे प्रताडि़त किया गया हो तो दहेज प्रताड़ना के साथ-साथ दहेज हत्या का भी केस बनता है। इसके अलावा दहेज प्रताड़ना की शिकायत पर पुलिस 498 ए के साथ-साथ धारा-406 (अमानत में खयानत) का भी केस दर्ज करती है। लड़की का स्त्रीधन अगर उसके ससुरालियों ने अपने पास रख लिया है तो अमानत में खयानत का मामला बनता है।
स्त्रीधन क्या है और दहेज किसे कहते हैं?शादी के वक्त जो उपहार और जेवर लड़की को दिए गए हों, वे स्त्रीधन कहलाते हैं। इसके अलावा लड़के और लड़की, दोनों को कॉमन यूज के लिए भी जो फर्नीचर, टीवी या दूसरी चीजें दी जाती हैं, वे भी स्त्रीधन के दायरे में रखी जाती हैं। स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार है और इसे दहेज नहीं माना जाता। वहीं शादी के वक्त लड़के को दिए जाने वाले जेवर, कपड़े, गाड़ी, कैश आदि दहेज कहलाता है।

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मां की प्रॉपर्टी के लिए हॉस्पिटल में भिड़े बेटे
 साकेत के एक हॉस्पिटल में हार्ट अटैक के बाद भर्ती एक 70 वर्षीय महिला के बेटों में उसके सामने ही प्रॉपर्टी को लेकर जमकर लात-घूंसे चल गए। यही नहीं भाइयों ने हॉस्पिटल में ही एक दूसरे पर पथराव भी कर दिया। इस हंगामें में दो भाई घायल हो गए। सूचना मिलने पर जब पुलिस मौके पर पहुंची, तो बाकी आरोपी फरार हो गए। दोनों घायल भाइयों ने अपने बाकी भाइयों के खिलाफ सिविल लाइंस थाने में शिकायत दी है।

ऊंचा सद्दीक नगर निवासी 70 वर्षीय कसीरन को सोमवार को हार्ट अटैक के बाद साकेत स्थित एक हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उनकी गंभीर हालत को देखते हुए क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में इलाज किया जा रहा था। अस्पताल के कर्मचारियों के अनुसार कसीरन की हालत गंभीर होने के बावजूद उनके बेटे प्रॉपर्टी विवाद में उलझे हुए थे। कसीरन के नाम ऊंचा सद्दीक नगर में एक मकान है। जिसकी मौजूदा कीमत करीब 18 लाख है। कसीरन के बेटे साबू और इस्लामुद्दीन का आरोप है कि उनके भाई साजिद, निजामुद्दीन, शमसुद्दीन व हकीमुद्दीन पहले से ही उनकी मां के मकान पर कब्जा करना चाहते थे।उनके मुताबिक मंगलवार को उनके चारों भाइयों ने मां से धोखे से वसीयत के कागज पर साइन कराने की कोशिश की। इसी बात को लेकर भाइयों में हाथापाई शुरू हो गई। दोनों पक्षों की ओर से एक दूसरे पर हमला किया गया। इसी दौरान आपस में पत्थरबाजी भी हुई, जिससे अस्पताल में अफरातफरी मच गई।

अस्पताल प्रशासन ने पुलिस को सूचना दी, लेकिन जब तक पुलिस वहां पहुंची तब तक सभी आरोपी वहां से फरार हो चुके थे। साबू और इस्लामुददीन ने थाना सिविल लाइंस पहुंच कर बताया कि उनके चार भाइयों ने उन पर अस्पताल परिसर में हमला किया था, जिस कारण वह घायल हो गए हैं। उन्होंने अपने भाइयों के खिलाफ थाने में शिकायत देकर कार्रवाई की मांग की है। पुलिस का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है।

Cancer जानकारी ही बचाव है


इंसान का शरीर एक मशीन की तरह होता है. जिस तरह मशीन में खराबी आती है उसी तरह इंसान के शरीर में भी कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. इन समस्याओं को हम बीमारियों का नाम देते हैं. इन्हीं बीमारियों में से एक लाइलाज और बेहद जटिल बीमारी है कैंसर.दुनियाभर में लाखों लोग प्रतिवर्ष इस बेहद जटिल बीमारी की वजह से दम तोड़ देते हैं. यूं तो यह बीमारी लाइलाज नहीं है लेकिन सिर्फ तब तक जब तक कि इसका सही समय पर पता चले. जानकार मानते हैं कि कैंसर लाइलाज नहीं है बस जरूरत है इसका सही समय पर पता चलने की और सही इलाज की. एक आम आदमी के लिए यह जरूर एक लाइलाज बीमारी हो सकती है लेकिन इसका महंगा इलाज इसे अमीर लोगों के लिए साध्य बनाता है. यह समाज के लिए बहुत बुरा है कि कैंसर जैसे रोग भी अमीर और गरीब के बीच अंतर देखते हैं.कैंसर क्या होता है?
कैंसर को लेकर लोगों में बहुत सी भ्रांतियां व्याप्त हैं. बहुत से लोगों का मानना है कि कैंसर का कोई इलाज नहीं है. दरअसल, कैंसर शरीर की आधारभूत इकाई कोशिका (सेल) को प्रभावित करता है. शरीर में नए सेल्स और पुराने सेल्स के बदलाव की प्रक्रिया में कैंसर हो सकता है. सामान्य तौर पर शरीर में कुछ नए सेल्स बनते हैं और पुराने सेल्स टूटते हैं जिनके असमान्य जमाव से कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. आइए जानें किन परिस्थितियों में कैंसर हो सकता है:

  • आमतौर पर शरीर के किसी भी भाग पर ऊतकों में असामान्य रूप से गांठ बनना या उभार आना कैंसर हो सकता है.
  • कोशिकाओं का असामान्य तौर पर वृद्धि करना और अनियंत्रित रूप से विभाजित होने से कैंसर होता है.
  • कैंसर के किसी भी लक्षण के दिखने पर उसकी जांच तुरंत करवाए जाने की ज़रूरत है और कैंसर के लक्षणों को भी आसानी से पहचाना जा सकता है.
कैंसर के लक्षण
कैंसर के लक्षण बेहद आम लेकिन जल्द नजर में आने वाले होते हैं. एक कैंसर मरीज की सूरत देखकर ही लगता है कि कुछ गड़बड़ है. जानकारों के अनुसार कैंसर के शुरुआती लक्षण निम्न हैं:
  • पेशाब में ख़ून आना
  • ख़ून की कमी की बीमारी एनीमिया
  • खांसी के दौरान ख़ून का आना
  • अचानक शरीर के किसी भाग से रक्त निकलना
  • स्तनों में गांठ
  • कुछ निगलने में दिक़्कत होना
  • मीनोपॉज के बाद भी ख़ून आना
  • भूख कम लगना
  • त्वचा में बदलाव महूसस होना
  • किसी अंग का अधिक उभरना या गांठ महसूस होना
  • प्रोस्टेट के परीक्षण के असामान्य परिणाम
कैंसर का इलाज
कैंसर का पता बायोप्सी नामक टेस्ट से चलता है. इसके बाद कैंसर का पता लगाने के बाद जो इलाज किया जाता है, उसमें कीमोथेरेपी प्रमुख है. कीमोथेरेपी कैंसर के असर को कम करने के लिए दी जाती है. उदाहरण के लिए अगर कैंसर चौथी स्टेज पर हो तो यह थैरेपी इसे दूसरी स्टेज पर ले आती है. यह हर तरह के कैंसर में नहीं दी जा सकती. इसी तरह रेडियोथेरेपी शरीर में कैंसर के ऊतकों को कम करने के लिए दी जाती है.

डॉक्टर मानते हैं कि कैंसर ठीक हो सकता है बशर्ते इसका डटकर सामना किया जाए. हमें इससे डरना नहीं चाहिए. कैंसर पर विजय हासिल करने में इन सुझावों पर ध्यान दें:
1. जांच होने के बाद कैंसर के उपचार का पहला अवसर ही सर्वश्रेष्ठ अवसर है. इस अवसर को गंवाना जानलेवा हो सकता है.
2. निकट के कैंसर संस्थान का ही उपचार के लिए चयन करें, ताकि आप लम्बे इलाज के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर अपने विशेषज्ञ के पास पहुंच सकें.
3. कैंसर विशेषज्ञ की ही बातों पर अमल करें. गैर-जानकार व्यक्ति की सुनी-सुनाई बातों को सुन आप भ्रमित हो सकते हैं.
4. बॉयोप्सी जांच से कैंसर फैलता नहीं है. इस गलत धारणा के कारण बहुत से लोग अपना उपचार समय से न कराकर मर्ज बढ़ा लेते हैं. बॉयोप्सी से ही कैंसर के प्रकार व संभावित उपचार का निर्धारण होता है.
5. कैंसर विशेषज्ञ से रोग की वार्षिक जांच कराते रहने से रोग का प्रारंभिक अवस्था में पता चल जाता है. प्रारंभिक अवस्था में अधिकांश कैंसर पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, बशर्ते आप पूरी तरह से मन लगाकर उपचार में जुट जाएं.
कैंसर से दूर रहने के सरल तरीके
अगर हम अपनी जीवनशैली में थोड़ा-बहुत भी परिवर्तन करते हैं तो कैंसर से बच सकते हैं. डॉक्टर कैंसर से दूर रहने के कुछ बेहद सरल तरीके बताते हैं जो निम्न हैं:

कैंसर की रोकथाम
ध्रूमपान न करें: विश्‍व में कैंसर से बचने के लिए तम्‍बाकू से बचाव एकमात्र उपाय है.
मोटापा: कैंसर नियंत्रण के लिए भोजन में सुधार दूसरी महत्‍वपूर्ण पहल है. कई प्रकार के कैंसर का वजन अधिक होने और मोटापे से सीधा संबंध है. यही नहीं, फलों और सब्जियों की अधिकता वाला भोजन लेने से कई प्रकार के कैंसर से लड़ने में सहायता मिलती है.
नियमित व्यायाम: नियमित शारीरिक व्‍यायाम और सही शारीरिक वजन और संतुलित भोजन निश्चित रूप से कैंसर के खतरे को कम करता है.
किरणों से बचना: सूर्य की किरणों से बचना. सनस्‍क्रीन और सुरक्षित वस्‍त्र का उपयोग विभिन्‍न प्रकार के कैंसर की रोकथाम के लिए प्रभावी उपाय है.

बस शारीरिक संबंध बनाने में ही रुचि


आमतौर पर यह माना जाता है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष शारीरिक संबंधों के प्रति अधिक आकर्षित रहते हैं. महिलाएं उनके लिए इच्छापूर्ति का एक साधन मात्र हैं. प्रेम संबंधों में भी पुरुष अपनी जरूरत के हिसाब से महिलाओं की भावनाओं को आंकते हैं. महिलाएं जिन्हें हम भावुक ज्यादा मानते हैं, वह जल्दी ही उनके बहकावे में आ जाती हैं और विवाह के पहले ही स्वयं को अपने प्रेमी के प्रति समर्पित कर देती हैं. भोग और विलास से परिपूर्ण पुरुष अगर अपनी प्रेमिका को शारीरिक संबंध बनाने के लिए राजी नहीं कर पाता तो इसके लिए वह अपने संबंध से बाहर का रुख करता है. आम बोलचाल में इसे पेड-सेक्स कहते हैं. महिलाओं को भोग की वस्तु समझने वाले पुरुष शारीरिक संबंधों के प्रति इतना आसक्त हो जाते हैं कि वे इसके लिए भारी-भरकम कीमत चुकाने को भी तैयार रहते हैं. ऐसे पुरुष के लिए यह कतई मायने नहीं रखता कि किसी की प्रेम भावनाएं उससे जुड़ी हुई हैं.
लेकिन जैसे-जैसे समय बदल रहा है, व्यक्ति का चरित्र, उसका स्वभाव भी महत्वपूर्ण ढंग के परिवर्तित हो रहा है. पहले जहां विवाह से पूर्व पुरुष के साथ संबंध स्थापित करना तक निंदनीय और पूर्णत: निषेध माना जाता था. वही आधुनिक होते समाज में यह एक आम बात बन गई है. पुरुष तो स्वभाव से ही भोग और विलास भरे जीवन में विश्वास रखते थे. उनके लिए शारीरिक संबंध बनाने के लिए विवाह तक का इंतजार करना जरूरी नहीं था. वैवाहिक संबंध के बाहर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए चाहे कितना ही खर्च क्यों ना करना पड़े, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए वे इसकी ज्यादा फिक्र नहीं करते थे. लेकिन अब महिलाएं भी विवाह पूर्व संबंध स्थापित करने में कोई बुराई नहीं समझतीं. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उनका प्रेमी उन्हें किस तरह राजी करता है.
एक नए अध्ययन के अनुसार लगभग 25 प्रतिशत महिलाएं प्रेम-संबंध की शुरूआती चरण में ही शारीरिक संबंध स्थापित कर लेती हैं. उनका यह कदम दूसरी महिलाओं पर दबाव डालता है. महिलाएं नहीं चाहतीं कि उनका प्रेमी उन्हें छोड़कर किसी अन्य महिला के पास चला जाए इसीलिए वह उसके साथ शारीरिक संबंध बना लेती हैं. निश्चित तौर पर महिलाओं का यह व्यवहार पुरुषों की अपेक्षाओं को नकारात्मक स्वरूप में विस्तृत कर रहा है.
कई समाज मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाएं अपने संबंध के स्थायित्व को लेकर आश्वस्त हुए बिना ही संबंध बना लेती हैं. उन्हें ना तो प्रतिबद्धता से कोई लेना-देना होता है और ना ही संबंध की निश्चितता से.
शारीरिक संबंध बस इस बात पर निर्भर करते हैं कि पुरुष अपनी पार्टनर को कितनी जल्दी और किस तरह सेक्स के प्रति लुभा सकता है. यह मूल्य एक बढ़िया सा गिफ्ट या फिर संबंध को आगे बढ़ाने के प्रतीक के रूप में दी गई अंगूठी भी हो सकती हैं. मुख्य तौर पर यह इस बात पर निर्भर करता है कि महिलाओं का स्वभाव और उनकी प्राथमिकता क्या है.
केथलीन का कहना है कि कुछ महिलाएं भौतिकवादी ज्यादा होती हैं तो उनके लिए पार्टी या गिफ्ट देने से काम चल सकता है, वहीं कुछ भावनात्मक स्वभाव की होती हैं, झूठी ही सही उन्हें प्रतिबद्धता देने से वह आपके लिए कुछ भी कर सकती हैं.
इस सर्वेक्षण को आगे बढाते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि 30 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष अपने संबंध में सिर्फ सेक्स को ही अहमियत देते हैं. उनके लिए रोमांस करना या प्रेमिका की भावनाओं को महत्व देना कोई मायने नहीं रखता. वह अपने मंतव्यों को पूरा करने के लिए प्रेमिका से मिलते हैं.
इस सर्वेक्षण को अगर हम भारतीय युवाओं की मानसिकता के आधार पर देखें तो इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि हमारे युवाओं पर भी आधुनिकता हावी हो गई है. परिवार के बड़े जहां विवाह पूर्व युवक और युवती का मिलना तक सहन नहीं करते, वहीं हमारा युवा वर्ग सारी सीमाएं लांघने को भी गलत नहीं समझता. किसी से प्रेम करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन उसे सिर्फ शारीरिक संबंधों की कसौटी पर परखना सही नहीं कहा जा सकता. पुरुष महिलाओं को भोग की वस्तु समझने लगे हैं. जिसका प्रयोग उनकी सहूलियत के हिसाब से किया जाता है.
जहां एक ओर कुछ महिलाएं प्रेम में धोखा खाती हैं, प्रेमी के प्रति समर्पित होने के बाद उनका प्रेमी उन्हें किसी और के लिए छोड़ जाता है, वहीं दूसरी ओर् कई महिलाएं ऐसी भी हैं जो भौतिकवादी वस्तुओं को प्रमुखता देती हैं. प्रेम नहीं वह अपने प्रेमी का उपयोग करती हैं, उनके पैसों को तरजीह देती हैं. फिर चाहे इसके एवज में उन्हें कुछ भी क्यों ना करना पड़े वह इसमें कोई परहेज नहीं करतीं. संबंध की दुहाई देते हुए वह बस अपने मंतव्य साध रहे होते हैं. ऐसी महिलाओं के लिए शारीरिक संबंध कोई बड़ी बात नहीं होते. ऐसे संबंध में जब महिला और पुरुष जिनमें किसी प्रकार की आपसी भावनाएं नहीं हैं, वह संबंध के टूटने का शोक नहीं मनाते बल्कि उपयोगिता अनुसार अन्य साथी की तलाश करते हैं. लेकिन इसका सीधा प्रभाव उन महिलाओं पर पड़ता है जो अपनी सीमाएं जानती हैं और वास्तव में अपने प्रेमी से भावनात्मक लगाव रखती हैं. पुरुषों को जब अपना मनचाहा विकल्प कहीं और मिल रहा होगा तो वह कब तक खुद को बांध कर रखेंगे.अपनी साथी की भावनाओं की परवाह किए बगैर वह संबंध समाप्त कर लेते हैं.
महिलाओं को अपनी उपयोगिता समझनी चाहिए.अगर आपका प्रेमी सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने में ही रुचि रखता है तो यह बात स्पष्ट है कि आपकी जगह कोई भी ले सकता है.शारीरिक संबंध विवाह के पश्चात स्थापित किए जाए तो ही बेहतर है. प्रेम जैसी पवित्र भावना का मजाक बनाना किसी भी रूप में लाभकारी सिद्ध नहीं हो सकता.भौतिकवादी सुख-सुविधाओं को अपनी प्रमुखता समझना कुछ समय के लिए संतुष्टी जरूर दे सकता है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम बेहद घातक हो सकते हैं.
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स्त्रियों पर अंकुश लगाता लोकतांत्रिक समाज

जिस दिन भारत में एक पंचायती फरमान महिलाओं की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगा रहा था उसके दूसरे ही दिन अमेरिका अपने देश की एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की तैयारी में जुटा था . उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक खाप पंचायत द्वारा महिलाओं पर लगाए गए अंकुश और अमेरिका में एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की घटना विकसित और विकासशील देशो के बीच मुद्दों में अंतर को रेखांकित करता है . भारतीय मूल की 46 वर्षीय अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स दूसरी बार अन्तरिक्ष में कदम रखने जा रही है और दूसरी ओर बागपत जिले के खाप पंचायत का फरमान है कि 40 वर्ष से कम उम्र की महिला बाजार में नहीं जा सकती है . क्या हम कल्पना कर सकते है कि सुनीता विलियम्स अगर भारत में होती तो क्या कर रही होती ?

क्या कारण है कि अमेरिका जैसे देशो में महिलायें इतनी स्वतंत्र है और भारत में महिलाओं के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा हो गई है . हम कह सकते है कि वे देश आर्थिक रूप से संपन्न है . लेकिन यह केवल आर्थिक सम्पन्नता का ही मुद्दा नहीं है . यहाँ वैचारिक सम्पन्नता का मुद्दा ज्यादा अहम् है . आज भारत में यदि कोई महिला आर्थिक रूप से संपन्न भी है तो वह समाज की बुरी परम्परा और समाज की लगाईं गई पाबंदियो से मुक्त नहीं है . जिस प्रकार से बागपत जिले की खाप पंचायत ने अपने तानाशाही फैसले में महिलाओं के ऊपर उनकी स्वतन्त्रता को सीमित करने के फरमान जारी की है वह समाज की संकीर्णता के साथ ही प्रशासनिक शिथिलता को भी उजागर करता है . 40 वर्ष से कम उम्र की महिला बाजार नहीं जायेगी , महिलाए मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करेंगी , सर और चेहरा ढँक कर ही कोई महिला बाहर निकलेगी जैसे फैसले क्या लोकतांत्रिक समाज की विशेषता इंगित कर सकता है ? ये फैसले हमें तालिबानी फरमानों से तुलना करने पर विवश करते है . उन समाजो का मानना है कि इस तरह की गतिविधियों से समाज में अव्यवस्था और अराजकता पैदा हो रही है . लेकिन क्या महिलाओं का ही इसमें कसूर है , इसके अलावा और कोई कारक इसमें शामिल नहीं है . क्या कोई खाप पंचायत पुरुषो के ऊपर इस तरह के फैसले लेता है ? फिर महिलाओं को ही हर बात के लिए क्यों बलिदान देना होता है ? स्त्रियाँ महज पुरुषो की गुलाम होती है और समाज में पुरुष प्रधान है जैसी मानसिकता ही इस तरह के फैसलों का समर्थन कर सकती है .
खाप पंचायत के इन फैसलों के पहले भी 9 जुलाई को असम की एक किशोरी के साथ दुराचार की घटना को देखा गया . इसके अलावा भी देश के विभिन्न हिस्सों में प्रायः रोज ही महिलाओं के साथ ऐसी घटनाएं होती रहती है . राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2011 में इस तरह की 2 .25 लाख घटनाएं दर्ज की गई है . हमारे समाज का एक बड़ा तबका नारी को उसी मध्यकालीन सोच की दृष्टि से देखता – समझता है . और यही समाज उन पर तमाम तरह के अत्याचार करता है . देश में महिलाओं पर कई तरह के अत्याचारों की घटनाएं प्रायः हम रोज सुनते है .राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ो के अनुसार भारत में प्रति 24 मिनट पर एक महिला यौन शोषण , प्रति 43 मिनट में एक महिला अपहरण , प्रति 54 मिनट में एक महिला बालात्कार , प्रति 102 मिनट में एक महिला दहेज़ प्रताड़ना की शिकार होती है . क्या ये आंकड़े किसी भी सभ्य समाज को स्वीकार्य होंगे? फिर भी हमारा समाज ही इन घटनाओं को अंजाम देता है . इसका कारण यह है कि हमारा समाज आज भी उस प्राचीन शोषणवादी मानसिकता से बाहर नहीं आ पाया है जो कि महिला को अबला का दर्जा देता है . पारंपरिक भारतीय समाज महिलाओं पर कई तरह की जन्मजात निर्योग्यताएं लागू कर दिया है जिस पर महिलाओं का कोई वश नहीं है . क्या कारण है कि आज भी हमारे समाज में बाल विवाह , दहेज़ ह्त्या , भ्रूण ह्त्या की घटनाएं प्रबल वेग से विद्यमान है ?
इन घटनाओं के दूसरी ओर प्रशासनिक शिथिलता का मुद्दा भी सामने आया ही . खाप पंचायत का फरमान और उसे मानने की विवशता क्यों है ? देश के अधिकाँश भागो में लोग अशिक्षा , गरीबी , बेरोजगारी और अज्ञानता में जी रहे है . उनके लिए लोकतंत्र , समानता , मानवाधिकार , स्त्री अधिकार जैसे शब्द समझ से परे है . विकास की अंधी दौड़ में हम यह भी भूल गए है कि देश में नागरिको की जागरूकता भी कोई चीज होती है . ग्रामीणों के यह परम्परा रही है कि पंच परमेश्वर की तरह और उनका फैसला भगवान् का फैसला होता है . परन्तु आज यह पंच अपने मूल स्वरुप में नहीं है . उनका चरित्र और उनका फैसला दोनों विकृत हो चुका है . ऐसा इसलिए है क्योकि पांचो का संगठन मजबूत है . वे इलाके के दबंग और शक्तिशाली लोग होते है . उनके फरमान को मानना बाध्यकारी होता है . उनकी पैठ प्रायः प्रशासनिक अमले में भी होती है . अतः. उनके फैसले को न मानने का मतलब है बिरादरी और प्रशासन दोनों से दुश्मनी मोल लेना . यह तश्वीर वर्तमान भारत की है जिसने आजादी के 64 वर्षो का सफ़र तय कर लिया है . गांधी जी का सपना था कि वे भारत में मजबूत लोकतंत्र पैदा करे , जिसके लिए विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन जरुरी है . लेकिन वर्तमान में यह शासन दब्वंगो का शासन बन कर रह गया है . जाग्रुक्लता के अभाव में और बेहतर प्रशासनिक पहुँच के अभाव में देश की अधिकाँश आबादी इन संकीर्ण फरमानों को मानने को विवश है जिनका कोई लोकतांत्रिक मूल्य नहीं है .

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कांटे की तरह चुभती है महिलाओं की आजादी
क्या बिडंवना है कि एक ओर तो हम नारी सशक्तिकरण की बात करते है,नारी को पुरुषों के समान दर्जा दिलाने का दाबा करते हैं | वहीं दूसरी ओर उसकी इज्जत को जब चाहें,जहाँ चाहें तार-तार करने से नहीं चूकते हैं | नारी पर प्रतिबन्ध लगाने के फरमान जारी करते हैं | सोमबार 9 जुलाई को असम की राजधानी गुहावटी में एक लडकी को लगभग एक दर्जन दरिंदो ने शाम को पकड़ लिया तथा सरे आम उसके साथ छेड़-छाड़ कर कपड़े भी फाड़ डाले | मौके पर मौजूद एक सिपाही तथा अन्य लोग तमाशबीन बने खड़े रहे | किसी ने उसे बचाने का साहस नही दिखाया | इसी तरह दो दिन पूर्व बिहार की राजधानी पटना में चार दरिंदों ने एक छात्रा को अगवा कर बंधक बना लिया तथा उसके साथ अनाचार किया | दरिंदों ने उसकी वीडियो क्लिप भी बना डाली | उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ भी मानवता को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनायों से अछूती नहीं रही | जहाँ एक दुखिहारी की अस्मत लूटने की कोशिश किसी और ने नहीं बल्कि कानून के रखवाले एक दरोगा ने की | वह भी थाने के भीतर | इधर,एक नया मामला उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के आसरा गाँव से आया है,जहाँ 36 बिरादरियों की खाप द्वारा महिलाओं के खिलाफ एक तुगलकी फरमान जारी किया गया | जिसके तहत 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाएं अकेले बाजार नहीं जायेंगीं |फरमान में यह भी कहा गया है कि कोई महिला मोबाईल फोन नहीं रखेगी | खाप का यह भी कहना है कि लड़कियां चुन्नी डालकर घर से बाहर निकलेंगीं | साथ ही कोई जोड़ा प्रेम विवाह नहीं करेगा | यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे बिरादरी से बाहर कर दिया जायेगा | इस फरमान के बाद शासन व प्रशासन सक्रीय हुआ तथा दो लोगो के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया | केंद्रीय गृह मंत्री चिदम्वरम ने इस फरमान की काफी निंदा की | महिलाओं के साथ हुईं उक्त घटनाएँ तथा खाप पंचायत द्वारा जारी यह फरमान कोई नई बात नहीं है | ऐसा पहले भी होता रहा है,लेकिन यहाँ एक ही सवाल मन में बार-बार कौंध रहा है,वह यह कि सारे फतवे महिलाओं के खिलाफ ही क्यों जारी किये जाते हैं ? पुरुषों के खिलाफ क्यों नहीं ? जबकि अपराधी तो पुरुष है | घिनौने कृत्य तो वह करता है और सजा महिला को सुनाई जाती है | आखिर क्यों महिला की इज्जत इतनी सस्ती लगती है कि उसे सरेआम तार-तार करते हुए जरा भी हाथ नहीं कांपते ? यह घटनाएँ यह समझने को काफी हैं कि पुरुष प्रधान समाज की आँखों में महिला की आजादी कांटे की तरह चुभती है | सो,वह उसे ही निशाना बना रहा है | यही नहीं पुरुष प्रधान समाज नारी को अपने हाथों का खिलौना बनाकर रखना चाहता है | जो भी हो,जब तक अनाचार करने वालों तथा अपने आप को कानून से ऊपर समझने वाली खाप तथा कट्टा जैसी पंचायतों के खिलाफ सरकारें कोई ठोस कदम नहीं उठातीं,सच मान लो,तब तक नारी पर होने वाले अत्याचार रुकेंगे नहीं |
पत्नी की इज्जत का सौदा
विदिशा। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में पांच हजार की उधारी चुकाने के लिए एक युवक ने अपनी पत्नी की इज्जत का ही सौदा कर दिया। महिला के परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी और पीडित महिला के पति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। मिली जानकारी के अनुसार लटेरी थाना क्षेत्र के अर्जुन अहिरवार ने लियाकत नाम के व्यक्ति के पांच हजार रूपए उधारी में लिए। अर्जुन उधारी के राशि नहीं चुका पाया तो लियाकत ने उसकी पत्नी की इज्जत की मांग कर डाली। इसके लिए दोनों के बीच समझौता भी हो गया।

किसी ने नहीं की मदद
समझौते के मुताबिक अर्जुन पत्नी को दर्शन कराने के बहाने बाहर लेकर निकला। सुनसान स्थान पर पहुंचकर लियाकत को सौंप दिया। महिला ने विरोध किया और लियाकत द्वारा बलात्कार किए जाने पर वह रोई भी, मगर मदद के लिए कोई नहीं आया।


सुहागरात पर बीवी को किया दोस्तों के हवाले

लव मैरेज करने वाली एक दुल्हन को अपने प्रेमी की असली तस्वीर उस समय देखने को मिली, जब उसने सुहागरात के मौके पर उसे अपने सात दोस्तों के हवाले कर दिया। प्रेमी उसे घर से भगाकर ले गया था। दोनों ने गाजियाबाद के एक मंदिर में शादी की थी। इससे पहले युवती के पिता ने 18 अक्टूबर को औरंगाबाद थाने में तहरीर देकर गांव के ही एक युवक पर बेटी को बहला-फुसलाकर भगा ले जाने का आरोप लगाया था। पुलिस तभी से इस प्रेमी जोडे़ की तलाश कर रही थी।

पांच दिन पहले पुलिस ने लड़की को बरामद कर लिया जबकि उसका प्रेमी पुलिस को देखकर फरार हो गया। प्रेमिका का आरोप है कि सुहागरात पर उसके प्रेमी ने अपने सात दोस्तों के साथ उससे गैंगरेप किया। यह सिलसिला एक महीने तक चलता रहा।

युवती ने बताया कि वह थाना औरंगाबाद क्षेत्र के गांव अशरफपुर की रहने वाली है। वह पिछले 4 साल से गांव के युवक मोनू से बेहद प्यार करती थी। 18 अक्टूबर की रात को प्रेमी की प्लैनिंग के तहत वह घर से ढाई लाख कीमत के सोने-चांदी के गहने लेकर भाग गई। प्रेमी ने गाजियाबाद में किराये पर कमरा ले रखा था।20 अक्टूबर को दोनों ने एक मंदिर में जाकर शादी रचा ली। शादी के बाद जब वह अपने कमरे पर पहुंची तो उसका प्रेमी उसे छोड़कर दोस्तों के साथ शराब पीने चला गया। आरोप है कि देर रात वह अपने सात दोस्तों के साथ आया और उसे दोस्तों के हवाले कर दिया। लड़की का आरोप है कि एक महीने तक बंधक बनाकर उसके साथ सभी आठ आरोपियों ने गैंगरेप किया।

परिजनों की मदद से बुलंदशहर पुलिस ने युवती को 10 नवंबर को गाजियाबाद के बस स्टैंड चौराहा से बरामद कर लिया। एसपी सिटी श्रीकांत यादव ने बताया कि लड़की अपने बयान कई बार बदल चुकी है। शुरुआती पूछताछ में उसने पुलिस को भी गुमराह करने की कोशिश की। दो दिन पहले लड़की ने मैजिस्ट्रेट के सामने अपने साथ हुए गैंगरेप का खुलासा किया। पुलिस ने लड़की का मेडिकल कराया है। पुलिस लड़की के बयानों के आधार पर रिपोर्ट दर्ज कर मुख्य आरोपी की तलाश कर रही है।

प्यार ठुकराया तो फेक अकाउंट बना पोस्ट कर दीं अश्लील तस्वीरें

 प्यार का प्रपोजल ठुकराए जाने पर एक युवक ने ऐसा कदम उठाया कि उसे जेल की हवा खानी पड़ी। बदला लेने के लिए मकसद से युवक उस लड़की के नाम से फेसबुक पर फेक अकाउंट बनाकर अश्लील फोटो पोस्ट कर रहा था।

तलेगांव के रहने वाले भूपेश ने इंजिनियरिंग की एक स्टूडेंट से प्यार का इजहार किया, लेकिन उसने मना कर दिया। इस पर गुस्साए भूपेश ने लड़की से बदला लेने की ठान ली। उसने लड़की के नाम से फेसबुक पर फेक प्रोफाइल बनाकर अश्लील तस्वीरें और मैसेज अपडेट करना शुरू कर दिया।

उधर लड़की सो समझ नहीं आ रहा था कि यह हरकत कौन कर रहा है। आखिरकार लड़की ने पुलिस की मदद ली और साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद साइबर सेल ने फेक आईडी ऑपरेट करने वाले का आईपी अड्रेस ढूंढ निकाला। इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर की मदद से पुलिस ने रायगढ़ जिले के नवी पोसरी के उस साइबर कैफे पहुंची, जहां से उस आईडी को ऑपरेट किया जाता था। साइबर कैफे में पूछताछ करने पर पता चला कि वहां पर काम करने वाली लड़की का भाई अक्सर वहां आया करता है। उस लड़की का भाई कोई और नहीं बल्कि भूपेश ही था।

फोन पर प्रेम हुआ था, मिली तो बेहोश हो गई

आजकल इंटरनेट और फोन आदि के माध्यम से अक्सर लोग संपर्क में आते हैं। फोन और दूसरे संचार के माध्यम से वे एक-दूसरे के करीब भी आ जाते हैं, पर अक्सर इसमें ऐसा भी धोखा हो जाता है कि सिवाय अफसोस करने के कुछ नहीं बचता। केरल में कनूर जिले में 23 साल की एक इंजीनियर का मामला भी कुछ ऐसा ही निकला। उसको उस वक्त शॉक लगा जब वह अपने 'प्रेमी' से मिली।

पिछले एक साल से वह फोन पर अपने इस प्रेमी के साथ बातें कर रही थीं। साल भर बाद जब वह अपने इस फोन प्रेमी से मिली तो सारा रोमांस धरा का धरा रह गया और दिल भी टूटा सो अलग। इसलिए कि उनका यह प्रेमी तो 67 साल का निकला।
यह भी तब पता चला जब यह लड़की अपने फोन वाले प्रेमी से मिलने तिरुअनंतपुरम आई। यहां उसे जीवन का सबसे बड़ा शॉक लगा। पुलिस ने बताया कि लड़की काफी देर से उस बस स्टॉप पर टहल रही थीं जहां उसके प्रेमी ने उससे मिलना तय किया हुआ था। जब काफी देर तक वह नहीं आया और लड़की वहां परेशान होकर टहलती रही, तो पुलिस उसे थाने ले आई।थाने में उससे पूछा गया कि वह वहां क्यों टहल रही थी, तब उसने अपना किस्सा बयां किया। लड़की से उसके प्रेमी का मोबाइल नंबर लेकर पुलिस ने उसे थाने बुलाया। वह आया तो उसे देखते ही लड़की बेहोश हो गई। इसलिए कि वह आदमी निकला 67 साल का। इस आदमी ने पुलिस को बताया कि वह तो सिर्फ मनोरंजन के लिए फोन पर बातें किया करता था। उसका इरादा गलत नहीं था। बहरहाल, पुलिस ने लड़की के घरवालों से संपर्क कर उसे वापस उसके घर भेज दिया है।

Tuesday, November 13, 2012

आखिर बलात्कारी से शादी क्यों


कैसा मजाक है इस समाज का नारी के साथ कि पहले तो बलात्कारी बलात्कार करता है और फिर यह समाज नारी को इंसाफ दिलाने के बदले बलात्कारी से शादी करने का प्रस्ताव रखता है. ऐसे प्रस्ताव में यह समझ पाना मुश्किल है कि आखिरकार दंडित किसे किया जा रहा है – जिसने बलात्कार किया उसे या फिर जिसके साथ बलात्कार हुआ. ऐसे में एक पुरानी कहावत सच लगने लगती है कि 'एक नारी हमेशा दंडित होगी चाहे उसने गुनाह किया हो या नहीं'.
बलात्कार एक ऐसी पीड़ा है जिससे एक नारी शारीरिक और मानसिक स्तर पर टूट जाती है. जब एक नारी को लगने लगता है कि अब जिन्दगी का साथ छोड़ मौत को गले लगा लेना चाहिए ऐसे में यदि कोई यह कहे कि जिसने आपकी जिन्दगी को इस स्तर पर लाकर खड़ा किया है आप उससे ही जिन्दगी भर का रिश्ता जोड़ लीजिए तो शायद यह एक घटिया मजाक के सिवा कुछ और नहीं है. ऐसे में सवाल यह है कि कैसे एक नारी उस पुरुष के साथ हर रात गुजार सकती है जिसने उसकी जिन्दगी की एक रात को भयानक और डरावना बना दिया हो.जब कोई मर्द एक नारी के साथ बलात्कार करता है तो समाज यह भूल जाता है कि किसने बलात्कार किया. उसे सिर्फ यह याद रहता है कि किसका बलात्कार हुआ है.
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जन्म लेते ही मार डाला
सभी ने एक बात हमेशा गौर की होगी कि पड़ोस या घर में अगर लड़का पैदा हो तो खुशियों की जैसे बहार आ जाती है लेकिन अक्सर देखने में आता है कि लड़कियों के होने पर सब उतने खुश नहीं होते जितने लड़का पैदा होने पर होते हैं. यह हालत गांवों की तरफ अधिक है जहां कई बार तो लड़की के पैदा होते ही या तो उसे मार दिया जाता है या फिर घर के सदस्य उसे गाली दे अपनी मन की आग को शांत कर लेते हैं. लेकिन यह फर्क क्यों? क्या लड़का घरवालों को लड़की से अधिक प्यारा होता है?भारत में कन्या भ्रूण हत्या जैसा पाप काफी समय से समाज पर एक कलंक की तरह लगा हुआ है जो आज शिक्षा के अस्त्र से भी नहीं हट रहा है. "यत्र नार्यस्तु पूजयते, रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता का वास होता है, ऐसा शास्त्रों में लिखा है लेकिन विश्वास नहीं होता आज भारतीय समाज में ही इतनी कुरीतियां फैली है जिससे नारी के प्रति अत्याचारों को बढ़ावा मिला है.
जीवन की हर समस्या के लिए देवी की आराधना करने वाला भारतीय समाज कन्या के जन्म को अभिशाप मानता है. लेकिन कन्या भ्रूण हत्या में अगर देखा जाएं तो सबसे बड़ा दोष हिंदू धर्म का भी लगता है जो सिर्फ पुत्र को ही पिता या माता को मुखाग्नि देने का हक देती है और मां बाप के बाद पुत्र को ही वंश आगे बढ़ाने का काम दिया जाता है. हिंदू धर्म में लड़कियों को पिता की चिता में आग लगाने की अनुमति नहीं होती मसलन ज्यादातर लोगों को लगता है कि लड़के न होने से वंश खतरे में पड़ जाएगा. इसके साथ ही समाज में आर्थिक और सामाजिक तौर से जिस तरह समाज का विभाजन हुआ है उसमें भी लड़कियों को काम करने के लिए बाहर निकलने की अधिक आजादी नहीं है. आज भी आप देखेंगे कि लड़कियों के काम करने पर लोगों को बहुत आपत्ति होती है.

दहेज नाम का एक अभिशाप ऐसा है जो कन्या भ्रूण हत्या के पाप को और फैलाने में सहायक होता है. लड़कियों को अच्छे घर में ब्याहने के लिए लड़की वालों को हमेशा दहेज का डर सताता है और भारत जहां महंगाई और गरीबी इतनी व्याप्त है वहां कैसे कोई गरीब अपने परिवार का पेट पालने के साथ लड़की को दहेज दे सकता है. एक गरीब के लिए दहेज का बोझ इतना अधिक होता है कि वह चाह कर भी अपनी देवी रुपी बेटी को प्यार नहीं दे पाता.

लेकिन यह स्त्री-विरोधी नज़रिया किसी भी रूप में गरीब परिवारों तक ही सीमित नहीं है. भेदभाव के पीछे सांस्कृतिक मान्यताओं एवं सामाजिक नियमों का अधिक हाथ होता है. यदि इस प्रथा को बन्द करनी है तो इन नियमों को ही चुनौती देनी होगी.
कन्या भ्रूण हत्या में पिता और समाज की भागीदारी से ज्यादा चिंता का विषय है इसमें मां की भी भागीदारी. एक मां जो खुद पहले कभी स्त्री होती है, वह कैसे अपने ही अस्तितव को नष्ट कर सकती है और यह भी तब जब वह जानती हो कि वह लड़की भी उसी का अंश है. औरत ही औरत के ऊपर होने वाले अत्याचार की जड़ होती है यह कथन गलत नहीं है. घर में सास द्वारा बहू पर अत्याचार, गर्भ में मां द्वारा बेटी की हत्या और ऐसे ही कई चरण हैं जहां महिलाओं की स्थिति ही शक के घेरे में आ जाती है.
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टीवी देखने के बहाने बच्ची से रेप, लाश कूड़ेदान में

 महिलाओं के प्रति अपराधों का गढ़ बनती जा रही दिल्ली में रेप और हत्या का एक और मामला सामने आया है। 10 साल की बच्ची का न सिर्फ रेप किया गया बल्कि उसे पीट-पीट कर मार भी डाला गया। रेप के आरोपी पर बिहार में पहले भी रेप और छेड़छाड़ का केस चल चुका है।

दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर इलाके में एक 10 साल की बच्ची का उसके पड़ोसी ने ही रेप किया और फिर मौत के घाट उतार दिया। बच्ची की खून से लथपथ लाश कूड़े के ढेर से मिली।

शनिवार रात को बच्ची की बॉडी बरामद की गई। घर पर मिले खून के निशानों का पीछा करते-करते लोग कूड़े के ढेर के पास पहुंचे जहां बच्ची की लाश मिली। पुलिस ने गोपाल नाम के पड़ोसी को गिरफ्तार कर लिया है जिसने अपना अपराध कबूल कर लिया है।गोपाल मजदूर है। उसने पुलिस को बताया कि जब बच्ची घर पर अकेली थी,तब उसके घर जाकर उसने रेप किया।  बच्ची ने जब उसे अपने भाई का नाम लेकर धमकाया (कि वह सारी बात अपने भाई को बता देगी) तो गोपाल ने उसे बेलन मार कर बेहोश कर दिया और खींच कर कूड़ेदान तक ले गया। जहां, उसने पत्थर मारकर उसकी हत्या कर दी और लाश को छुपा दिया।

पुलिस रेप की पुष्टि के लिए पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इतंजार कर रही है। बच्ची बिहार के कटिहार जिले की है और  दिन पहले ही दिल्ली इलाज के लिए आई थी। रेलवे कॉलोनी के स्लम में वह अपने भाई के साथ रह रही थी।


MATRIMONIAL RELATION