आमतौर पर यह माना जाता है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष शारीरिक संबंधों के प्रति अधिक आकर्षित रहते हैं. महिलाएं उनके लिए इच्छापूर्ति का एक साधन मात्र हैं. प्रेम संबंधों में भी पुरुष अपनी जरूरत के हिसाब से महिलाओं की भावनाओं को आंकते हैं. महिलाएं जिन्हें हम भावुक ज्यादा मानते हैं, वह जल्दी ही उनके बहकावे में आ जाती हैं और विवाह के पहले ही स्वयं को अपने प्रेमी के प्रति समर्पित कर देती हैं. भोग और विलास से परिपूर्ण पुरुष अगर अपनी प्रेमिका को शारीरिक संबंध बनाने के लिए राजी नहीं कर पाता तो इसके लिए वह अपने संबंध से बाहर का रुख करता है. आम बोलचाल में इसे पेड-सेक्स कहते हैं. महिलाओं को भोग की वस्तु समझने वाले पुरुष शारीरिक संबंधों के प्रति इतना आसक्त हो जाते हैं कि वे इसके लिए भारी-भरकम कीमत चुकाने को भी तैयार रहते हैं. ऐसे पुरुष के लिए यह कतई मायने नहीं रखता कि किसी की प्रेम भावनाएं उससे जुड़ी हुई हैं.
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लेकिन जैसे-जैसे समय बदल रहा है, व्यक्ति का चरित्र, उसका स्वभाव भी महत्वपूर्ण ढंग के परिवर्तित हो रहा है. पहले जहां विवाह से पूर्व पुरुष के साथ संबंध स्थापित करना तक निंदनीय और पूर्णत: निषेध माना जाता था. वही आधुनिक होते समाज में यह एक आम बात बन गई है. पुरुष तो स्वभाव से ही भोग और विलास भरे जीवन में विश्वास रखते थे. उनके लिए शारीरिक संबंध बनाने के लिए विवाह तक का इंतजार करना जरूरी नहीं था. वैवाहिक संबंध के बाहर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए चाहे कितना ही खर्च क्यों ना करना पड़े, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए वे इसकी ज्यादा फिक्र नहीं करते थे. लेकिन अब महिलाएं भी विवाह पूर्व संबंध स्थापित करने में कोई बुराई नहीं समझतीं. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उनका प्रेमी उन्हें किस तरह राजी करता है.
एक नए अध्ययन के अनुसार लगभग 25 प्रतिशत महिलाएं प्रेम-संबंध की शुरूआती चरण में ही शारीरिक संबंध स्थापित कर लेती हैं. उनका यह कदम दूसरी महिलाओं पर दबाव डालता है. महिलाएं नहीं चाहतीं कि उनका प्रेमी उन्हें छोड़कर किसी अन्य महिला के पास चला जाए इसीलिए वह उसके साथ शारीरिक संबंध बना लेती हैं. निश्चित तौर पर महिलाओं का यह व्यवहार पुरुषों की अपेक्षाओं को नकारात्मक स्वरूप में विस्तृत कर रहा है.
कई समाज मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाएं अपने संबंध के स्थायित्व को लेकर आश्वस्त हुए बिना ही संबंध बना लेती हैं. उन्हें ना तो प्रतिबद्धता से कोई लेना-देना होता है और ना ही संबंध की निश्चितता से.
शारीरिक संबंध बस इस बात पर निर्भर करते हैं कि पुरुष अपनी पार्टनर को कितनी जल्दी और किस तरह सेक्स के प्रति लुभा सकता है. यह मूल्य एक बढ़िया सा गिफ्ट या फिर संबंध को आगे बढ़ाने के प्रतीक के रूप में दी गई अंगूठी भी हो सकती हैं. मुख्य तौर पर यह इस बात पर निर्भर करता है कि महिलाओं का स्वभाव और उनकी प्राथमिकता क्या है.
केथलीन का कहना है कि कुछ महिलाएं भौतिकवादी ज्यादा होती हैं तो उनके लिए पार्टी या गिफ्ट देने से काम चल सकता है, वहीं कुछ भावनात्मक स्वभाव की होती हैं, झूठी ही सही उन्हें प्रतिबद्धता देने से वह आपके लिए कुछ भी कर सकती हैं.
इस सर्वेक्षण को आगे बढाते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि 30 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष अपने संबंध में सिर्फ सेक्स को ही अहमियत देते हैं. उनके लिए रोमांस करना या प्रेमिका की भावनाओं को महत्व देना कोई मायने नहीं रखता. वह अपने मंतव्यों को पूरा करने के लिए प्रेमिका से मिलते हैं.
इस सर्वेक्षण को अगर हम भारतीय युवाओं की मानसिकता के आधार पर देखें तो इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि हमारे युवाओं पर भी आधुनिकता हावी हो गई है. परिवार के बड़े जहां विवाह पूर्व युवक और युवती का मिलना तक सहन नहीं करते, वहीं हमारा युवा वर्ग सारी सीमाएं लांघने को भी गलत नहीं समझता. किसी से प्रेम करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन उसे सिर्फ शारीरिक संबंधों की कसौटी पर परखना सही नहीं कहा जा सकता. पुरुष महिलाओं को भोग की वस्तु समझने लगे हैं. जिसका प्रयोग उनकी सहूलियत के हिसाब से किया जाता है.
जहां एक ओर कुछ महिलाएं प्रेम में धोखा खाती हैं, प्रेमी के प्रति समर्पित होने के बाद उनका प्रेमी उन्हें किसी और के लिए छोड़ जाता है, वहीं दूसरी ओर् कई महिलाएं ऐसी भी हैं जो भौतिकवादी वस्तुओं को प्रमुखता देती हैं. प्रेम नहीं वह अपने प्रेमी का उपयोग करती हैं, उनके पैसों को तरजीह देती हैं. फिर चाहे इसके एवज में उन्हें कुछ भी क्यों ना करना पड़े वह इसमें कोई परहेज नहीं करतीं. संबंध की दुहाई देते हुए वह बस अपने मंतव्य साध रहे होते हैं. ऐसी महिलाओं के लिए शारीरिक संबंध कोई बड़ी बात नहीं होते. ऐसे संबंध में जब महिला और पुरुष जिनमें किसी प्रकार की आपसी भावनाएं नहीं हैं, वह संबंध के टूटने का शोक नहीं मनाते बल्कि उपयोगिता अनुसार अन्य साथी की तलाश करते हैं. लेकिन इसका सीधा प्रभाव उन महिलाओं पर पड़ता है जो अपनी सीमाएं जानती हैं और वास्तव में अपने प्रेमी से भावनात्मक लगाव रखती हैं. पुरुषों को जब अपना मनचाहा विकल्प कहीं और मिल रहा होगा तो वह कब तक खुद को बांध कर रखेंगे.अपनी साथी की भावनाओं की परवाह किए बगैर वह संबंध समाप्त कर लेते हैं.
महिलाओं को अपनी उपयोगिता समझनी चाहिए.अगर आपका प्रेमी सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने में ही रुचि रखता है तो यह बात स्पष्ट है कि आपकी जगह कोई भी ले सकता है.शारीरिक संबंध विवाह के पश्चात स्थापित किए जाए तो ही बेहतर है. प्रेम जैसी पवित्र भावना का मजाक बनाना किसी भी रूप में लाभकारी सिद्ध नहीं हो सकता.भौतिकवादी सुख-सुविधाओं को अपनी प्रमुखता समझना कुछ समय के लिए संतुष्टी जरूर दे सकता है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम बेहद घातक हो सकते हैं.
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स्त्रियों पर अंकुश लगाता लोकतांत्रिक समाज
जिस दिन भारत में एक पंचायती फरमान महिलाओं की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगा रहा था उसके दूसरे ही दिन अमेरिका अपने देश की एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की तैयारी में जुटा था . उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक खाप पंचायत द्वारा महिलाओं पर लगाए गए अंकुश और अमेरिका में एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की घटना विकसित और विकासशील देशो के बीच मुद्दों में अंतर को रेखांकित करता है . भारतीय मूल की 46 वर्षीय अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स दूसरी बार अन्तरिक्ष में कदम रखने जा रही है और दूसरी ओर बागपत जिले के खाप पंचायत का फरमान है कि 40 वर्ष से कम उम्र की महिला बाजार में नहीं जा सकती है . क्या हम कल्पना कर सकते है कि सुनीता विलियम्स अगर भारत में होती तो क्या कर रही होती ?
क्या कारण है कि अमेरिका जैसे देशो में महिलायें इतनी स्वतंत्र है और भारत में महिलाओं के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा हो गई है . हम कह सकते है कि वे देश आर्थिक रूप से संपन्न है . लेकिन यह केवल आर्थिक सम्पन्नता का ही मुद्दा नहीं है . यहाँ वैचारिक सम्पन्नता का मुद्दा ज्यादा अहम् है . आज भारत में यदि कोई महिला आर्थिक रूप से संपन्न भी है तो वह समाज की बुरी परम्परा और समाज की लगाईं गई पाबंदियो से मुक्त नहीं है . जिस प्रकार से बागपत जिले की खाप पंचायत ने अपने तानाशाही फैसले में महिलाओं के ऊपर उनकी स्वतन्त्रता को सीमित करने के फरमान जारी की है वह समाज की संकीर्णता के साथ ही प्रशासनिक शिथिलता को भी उजागर करता है . 40 वर्ष से कम उम्र की महिला बाजार नहीं जायेगी , महिलाए मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करेंगी , सर और चेहरा ढँक कर ही कोई महिला बाहर निकलेगी जैसे फैसले क्या लोकतांत्रिक समाज की विशेषता इंगित कर सकता है ? ये फैसले हमें तालिबानी फरमानों से तुलना करने पर विवश करते है . उन समाजो का मानना है कि इस तरह की गतिविधियों से समाज में अव्यवस्था और अराजकता पैदा हो रही है . लेकिन क्या महिलाओं का ही इसमें कसूर है , इसके अलावा और कोई कारक इसमें शामिल नहीं है . क्या कोई खाप पंचायत पुरुषो के ऊपर इस तरह के फैसले लेता है ? फिर महिलाओं को ही हर बात के लिए क्यों बलिदान देना होता है ? स्त्रियाँ महज पुरुषो की गुलाम होती है और समाज में पुरुष प्रधान है जैसी मानसिकता ही इस तरह के फैसलों का समर्थन कर सकती है .
खाप पंचायत के इन फैसलों के पहले भी 9 जुलाई को असम की एक किशोरी के साथ दुराचार की घटना को देखा गया . इसके अलावा भी देश के विभिन्न हिस्सों में प्रायः रोज ही महिलाओं के साथ ऐसी घटनाएं होती रहती है . राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2011 में इस तरह की 2 .25 लाख घटनाएं दर्ज की गई है . हमारे समाज का एक बड़ा तबका नारी को उसी मध्यकालीन सोच की दृष्टि से देखता – समझता है . और यही समाज उन पर तमाम तरह के अत्याचार करता है . देश में महिलाओं पर कई तरह के अत्याचारों की घटनाएं प्रायः हम रोज सुनते है .राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ो के अनुसार भारत में प्रति 24 मिनट पर एक महिला यौन शोषण , प्रति 43 मिनट में एक महिला अपहरण , प्रति 54 मिनट में एक महिला बालात्कार , प्रति 102 मिनट में एक महिला दहेज़ प्रताड़ना की शिकार होती है . क्या ये आंकड़े किसी भी सभ्य समाज को स्वीकार्य होंगे? फिर भी हमारा समाज ही इन घटनाओं को अंजाम देता है . इसका कारण यह है कि हमारा समाज आज भी उस प्राचीन शोषणवादी मानसिकता से बाहर नहीं आ पाया है जो कि महिला को अबला का दर्जा देता है . पारंपरिक भारतीय समाज महिलाओं पर कई तरह की जन्मजात निर्योग्यताएं लागू कर दिया है जिस पर महिलाओं का कोई वश नहीं है . क्या कारण है कि आज भी हमारे समाज में बाल विवाह , दहेज़ ह्त्या , भ्रूण ह्त्या की घटनाएं प्रबल वेग से विद्यमान है ?
इन घटनाओं के दूसरी ओर प्रशासनिक शिथिलता का मुद्दा भी सामने आया ही . खाप पंचायत का फरमान और उसे मानने की विवशता क्यों है ? देश के अधिकाँश भागो में लोग अशिक्षा , गरीबी , बेरोजगारी और अज्ञानता में जी रहे है . उनके लिए लोकतंत्र , समानता , मानवाधिकार , स्त्री अधिकार जैसे शब्द समझ से परे है . विकास की अंधी दौड़ में हम यह भी भूल गए है कि देश में नागरिको की जागरूकता भी कोई चीज होती है . ग्रामीणों के यह परम्परा रही है कि पंच परमेश्वर की तरह और उनका फैसला भगवान् का फैसला होता है . परन्तु आज यह पंच अपने मूल स्वरुप में नहीं है . उनका चरित्र और उनका फैसला दोनों विकृत हो चुका है . ऐसा इसलिए है क्योकि पांचो का संगठन मजबूत है . वे इलाके के दबंग और शक्तिशाली लोग होते है . उनके फरमान को मानना बाध्यकारी होता है . उनकी पैठ प्रायः प्रशासनिक अमले में भी होती है . अतः. उनके फैसले को न मानने का मतलब है बिरादरी और प्रशासन दोनों से दुश्मनी मोल लेना . यह तश्वीर वर्तमान भारत की है जिसने आजादी के 64 वर्षो का सफ़र तय कर लिया है . गांधी जी का सपना था कि वे भारत में मजबूत लोकतंत्र पैदा करे , जिसके लिए विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन जरुरी है . लेकिन वर्तमान में यह शासन दब्वंगो का शासन बन कर रह गया है . जाग्रुक्लता के अभाव में और बेहतर प्रशासनिक पहुँच के अभाव में देश की अधिकाँश आबादी इन संकीर्ण फरमानों को मानने को विवश है जिनका कोई लोकतांत्रिक मूल्य नहीं है .
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कांटे की तरह चुभती है महिलाओं की आजादी
क्या बिडंवना है कि एक ओर तो हम नारी सशक्तिकरण की बात करते है,नारी को पुरुषों के समान दर्जा दिलाने का दाबा करते हैं | वहीं दूसरी ओर उसकी इज्जत को जब चाहें,जहाँ चाहें तार-तार करने से नहीं चूकते हैं | नारी पर प्रतिबन्ध लगाने के फरमान जारी करते हैं | सोमबार 9 जुलाई को असम की राजधानी गुहावटी में एक लडकी को लगभग एक दर्जन दरिंदो ने शाम को पकड़ लिया तथा सरे आम उसके साथ छेड़-छाड़ कर कपड़े भी फाड़ डाले | मौके पर मौजूद एक सिपाही तथा अन्य लोग तमाशबीन बने खड़े रहे | किसी ने उसे बचाने का साहस नही दिखाया | इसी तरह दो दिन पूर्व बिहार की राजधानी पटना में चार दरिंदों ने एक छात्रा को अगवा कर बंधक बना लिया तथा उसके साथ अनाचार किया | दरिंदों ने उसकी वीडियो क्लिप भी बना डाली | उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ भी मानवता को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनायों से अछूती नहीं रही | जहाँ एक दुखिहारी की अस्मत लूटने की कोशिश किसी और ने नहीं बल्कि कानून के रखवाले एक दरोगा ने की | वह भी थाने के भीतर | इधर,एक नया मामला उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के आसरा गाँव से आया है,जहाँ 36 बिरादरियों की खाप द्वारा महिलाओं के खिलाफ एक तुगलकी फरमान जारी किया गया | जिसके तहत 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाएं अकेले बाजार नहीं जायेंगीं |फरमान में यह भी कहा गया है कि कोई महिला मोबाईल फोन नहीं रखेगी | खाप का यह भी कहना है कि लड़कियां चुन्नी डालकर घर से बाहर निकलेंगीं | साथ ही कोई जोड़ा प्रेम विवाह नहीं करेगा | यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे बिरादरी से बाहर कर दिया जायेगा | इस फरमान के बाद शासन व प्रशासन सक्रीय हुआ तथा दो लोगो के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया | केंद्रीय गृह मंत्री चिदम्वरम ने इस फरमान की काफी निंदा की | महिलाओं के साथ हुईं उक्त घटनाएँ तथा खाप पंचायत द्वारा जारी यह फरमान कोई नई बात नहीं है | ऐसा पहले भी होता रहा है,लेकिन यहाँ एक ही सवाल मन में बार-बार कौंध रहा है,वह यह कि सारे फतवे महिलाओं के खिलाफ ही क्यों जारी किये जाते हैं ? पुरुषों के खिलाफ क्यों नहीं ? जबकि अपराधी तो पुरुष है | घिनौने कृत्य तो वह करता है और सजा महिला को सुनाई जाती है | आखिर क्यों महिला की इज्जत इतनी सस्ती लगती है कि उसे सरेआम तार-तार करते हुए जरा भी हाथ नहीं कांपते ? यह घटनाएँ यह समझने को काफी हैं कि पुरुष प्रधान समाज की आँखों में महिला की आजादी कांटे की तरह चुभती है | सो,वह उसे ही निशाना बना रहा है | यही नहीं पुरुष प्रधान समाज नारी को अपने हाथों का खिलौना बनाकर रखना चाहता है | जो भी हो,जब तक अनाचार करने वालों तथा अपने आप को कानून से ऊपर समझने वाली खाप तथा कट्टा जैसी पंचायतों के खिलाफ सरकारें कोई ठोस कदम नहीं उठातीं,सच मान लो,तब तक नारी पर होने वाले अत्याचार रुकेंगे नहीं |
पत्नी की इज्जत का सौदा
विदिशा। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में पांच हजार की उधारी चुकाने के लिए एक युवक ने अपनी पत्नी की इज्जत का ही सौदा कर दिया। महिला के परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी और पीडित महिला के पति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। मिली जानकारी के अनुसार लटेरी थाना क्षेत्र के अर्जुन अहिरवार ने लियाकत नाम के व्यक्ति के पांच हजार रूपए उधारी में लिए। अर्जुन उधारी के राशि नहीं चुका पाया तो लियाकत ने उसकी पत्नी की इज्जत की मांग कर डाली। इसके लिए दोनों के बीच समझौता भी हो गया।
किसी ने नहीं की मदद
समझौते के मुताबिक अर्जुन पत्नी को दर्शन कराने के बहाने बाहर लेकर निकला। सुनसान स्थान पर पहुंचकर लियाकत को सौंप दिया। महिला ने विरोध किया और लियाकत द्वारा बलात्कार किए जाने पर वह रोई भी, मगर मदद के लिए कोई नहीं आया।
विदिशा। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में पांच हजार की उधारी चुकाने के लिए एक युवक ने अपनी पत्नी की इज्जत का ही सौदा कर दिया। महिला के परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी और पीडित महिला के पति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। मिली जानकारी के अनुसार लटेरी थाना क्षेत्र के अर्जुन अहिरवार ने लियाकत नाम के व्यक्ति के पांच हजार रूपए उधारी में लिए। अर्जुन उधारी के राशि नहीं चुका पाया तो लियाकत ने उसकी पत्नी की इज्जत की मांग कर डाली। इसके लिए दोनों के बीच समझौता भी हो गया।
किसी ने नहीं की मदद
समझौते के मुताबिक अर्जुन पत्नी को दर्शन कराने के बहाने बाहर लेकर निकला। सुनसान स्थान पर पहुंचकर लियाकत को सौंप दिया। महिला ने विरोध किया और लियाकत द्वारा बलात्कार किए जाने पर वह रोई भी, मगर मदद के लिए कोई नहीं आया।
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