Thursday, February 27, 2014

अनीमिया से बचाएं खुद को

अनीमिया एक साधरण-सी लगने वाली बीमारी है। बॉडी में आयरन की कमी को हम आम बात समझकर इस पर खास ध्यान नहीं देते। हमारी यही लापरवाही खतरनाक साबित हो सकती है। 

क्या है अनीमिया हमारे शरीर के सेल्स को जिंदा रहने के लिए ऑक्सिजन की जरूरत होती है। शरीर के अलग-अलग हिस्सों में ऑक्सिजन रेड ब्लड सेल्स (आरबीसी) में मौजूद हीमोग्लोबिन पहुंचाता है। आयरन की कमी और दूसरी वजहों से रेड ब्लड सेल्स और हीमोग्लोबिन की मात्रा जब शरीर में कम हो जाती है, तो उस स्थिति को अनीमिया कहते हैं। आरबीसी और हीमोग्लोबिन की कमी से सेल्स को ऑक्सिजन नहीं मिल पाती। कार्बोहाइड्रेट और फैट को जलाकर एनर्जी पैदा करने के लिए ऑक्सिजन जरूरी है। ऑक्सीजन की कमी से हमारे शरीर और दिमाग के काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है।

कितनी तरह का अनीमिया
अनीमिया खून की सबसे सामान्य समस्या है। हमारे देश में आयरन की कमी से होने वाला अनीमिया सबसे ज्यादा पाया जाता है। करीब 90 पर्सेंट लोगों में यही अनीमिया होता है, खासकर महिलाओं और बच्चों में।

यह तीन तरह का होता है:
1. माइल्ड - अगर बॉडी में हीमोग्लोबिन 10 से 11 g/dL के आसपास हो तो इसे माइल्ड अनीमिया कहते हैं। इसमें हेल्थी और बैलेंस्ड डाइट खाने की सलाह के अलावा आयरन सप्लिमेंट्स दिए जाते हैं।
2. मॉडरेट - अगर हीमोग्लोबिन 8 से 9 g/dL होगा तो इसे मॉडरेट अनीमिया कहेंगे। इसमें डाइट के साथ-साथ इंजेक्शंस भी देने पड़ सकते हैं।
3. सीवियर - हीमोग्लोबिन अगर 8 g/dL से कम हो तो सीवियर अनीमिया कहलाता है, जो एक गंभीर स्थिति होती है। इसमें मरीज की हालत की गंभीरता को देखते हुए ब्लड भी चढ़ाना पड़ सकता है।

क्या हैं कारण - आयरन, विटामिन सी, विटामिन बी 12, प्रोटीन या फॉलिक एसिड की कमी - हेमरेज या लगातार खून बहने से खून की मात्रा कम हो जाना - ब्लड सेल्स का बहुत ज्यादा मात्रा में नष्ट हो जाना या बनने में कमी आ जाना - पेट में कीड़े (राउंड वॉर्म और हुक वॉर्म) होना - लंबी बीमारी जैसे कि पाइल्स आदि, जिनमें खून का लॉस होता हो - पीरियड्स में बुहत ज्यादा ब्लीडिंग - ल्यूकिमिया, थैलीसीमिया आदि की फैमिली हिस्ट्री है, तो 50 फीसदी तक चांस बढ़ जाते हैं - जंक फूड ज्यादा खाने से - एक्सर्साइज़ न करने से - प्रेगनेंट महिलाओं का हेल्दी डाइट न लेना

किन्हें खतरा ज्यादा - किडनी, डायबीटीज, बवासीर, हर्निया और दिल के मरीजों को - शाकाहारी लोगों को - प्रेगनेंट या स्मोकिंग करनेवाली महिलाओं को नोट : पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं क्योंकि इससे शरीर में आयरन तेजी से कम हो जाता है।

लक्षण - कमजोरी, थकान और चिड़चिड़ापन - किसी भी काम में मन या ध्यान न लगना - दिल की धड़कन नॉर्मल न होना - सांस उखड़ना और चक्कर आना - छोटे-छोटे कामों में भी थकान महसूस होना - आंखें, जीभ, स्किन और होंठ पीले पड़ना
नोट : ये सामान्य लक्षण हैं, लेकिन यह स्थिति लगातार बनी रहे तो कई गंभीर लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं। ऐसे ही लक्षण किसी दूसरी बीमारी के भी हो सकते हैं।

गंभीर लक्षण - सिर, छाती या पैरों में दर्द होना - जीभ में जलन होना, मुंह और गला सूखना - मुंह के कोनों पर छाले हो जाना - बालों का कमजोर होकर टूटना - निगलने में तकलीफ होना - स्किन, नाखून और मसूड़ों का पीला पड़ जाना - अनीमिया लगातार बना रहे तो डिप्रेशन का रूप ले लेता है
नोट : महिलाओं, पुरुषों और बच्चों में अनीमिया के लक्षण एक जैसे ही होते हैं।

कितना हो हीमोग्लोबिन और आरसीबी महिला - 11 से 16 g/dL के बीच, 4.5 सीएनएम पुरुष - 11 से 18 g/dL के बीच, 4.5 सीएनएम

ऐसे करें पहचान - अनीमिया के शुरुआती लक्षण बहुत सामान्य होते हैं। मरीज अपनी समस्या पहचान नहीं पाता। डॉक्टर को कमजोरी आदि की शिकायत करता है तो टेस्ट कराए जाते हैं। - इसके लिए कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी) किया जाता है। इसमें रेड ब्लड सेल और हीमोग्लोबिन का लेवल जांचा जाता है। साल में एक बार यह टेस्ट करा लेना चाहिए।

खानपान पर ध्यान जरूरी - आयरन की डिमांड पूरी करने के लिए हमें हेल्थी और बैलेंस्ड डाइट खानी चाहिए। तीनों मील्स के अलावा दो स्नैक्स भी खाएं और खाने में अंडे, साबुत अनाज, सूखे मेवे, फल और हरी पत्तेदार सब्जियां ज्यादा मात्रा में हों। - आयरन से भरपूर चीजें खाएं। जिन चीजों में ज्यादा आयरन होता है, उन्हें नीचे घटते क्रम में दिया गया है। यानी सबसे ज्यादा आयरन वाली चीजें पहले और कम वाली उसके बाद :
फल : खुमानी, अंजीर, केला, अनार, अन्नास, सेब, अमरूद, अंगूर आदि
सब्जियां : पालक, मेथी, सरसों, बथुआ, धनिया, पुदीना, चुकंदर, बीन्स, गाजर, टमाटर आदि
ड्राई फ्रूट्स : बादाम, मुनक्का, खजूर, किशमिश आदि
दूसरी चीजें : गुड़, सोयाबीन, मोठ, अंकुरित दालें, दूसरी दालें खासकर मसूर दाल, चना, गेंहू, मूंग आदि

फास्ट फूड और लाइफस्टाइल का रोल अहम अगर हम अपने खाने में बैलेंस्ड डाइट तो ले रहे हैं लेकिन जंक फूड ज्यादा खाते हैं तो भी बॉडी में आयरन की कमी हो जाती है। जंक फूड में फायदेमंद प्रोटीन, आयरन आदि नहीं होते। इसके अलावा अगर हमारा लाइफस्टाइल सही नहीं हैं यानी हम दिन भर खाते तो ज्यादा हैं लेकिन उस हिसाब से शारीरिक मेहनत नहीं करते, तो भी अनीमिक होने का चांस रहता है।
लंबा होता है इलाज- अनीमिया को ठीक होने में कुछ महीनों से लेकर कई बार बरसों लग जाते हैं। आयरन की कमी से होनेवाला अनीमिया इलाज करने पर दो से तीन महीने में ठीक हो जाता है।

ऐलॉपथी इसमें सबसे पहले मरीज की जांच कर यह पता लगाया जाता है कि मरीज को किस तरह का अनीमिया है और उसकी गंभीरता कितनी है। इसके बाद इलाज शुरू किया जाता है। अगर अनीमिया का कारण पेट में कीड़े होना है तो डीवॉर्मिंग के लिए दवा दी जाती है। अगर खान-पान सही न होने की वजह से अनीमिया है तो मरीज को हेल्थी डाइट बताई जाती है।

होम्यॉपैथी अगर हेल्थी फूड खाने के बाद भी बॉडी में आयरन नहीं बन रहा हो तो ये दवाएं ले सकते हैं : फेरम मेटालिकम 3x(Ferrum Metallicum 3x), 5-5 गोली दिन में तीन बार नैट्रम मर 30 (Natrum Mur 30), 5-5 गोली दिन में तीन बार फेरम फॉस 6x (Ferrum Phos 6x), 4-4 गोली दिन में चार बार कैल्केरिया फॉस 6x (Calcarea Phos 6x), 4-4 गोली दिन में चार बार

आयुर्वेद लोहासव, द्राक्षासव और अश्वगंधारिष्ट, तीनों के दो-दो छोटे चम्मच आधे गिलास सादा पानी में मिलाकर लें। खाना खाने के बाद सुबह-रात एक से तीन महीने तक लें। नोट : एलोपैथ, होम्योपैथ और आयुर्वेद में बताई गई दवाओं का सेवन डॉक्टर से सलाह लेकर ही करें।

घरेलू नुस्खे- टमाटर, गाजर और चुकंदर को बराबर मात्रा में मिलाकर एक गिलास जूस लें और उसमें चौथाई चम्मच काली मिर्च पाउडर डालकर सुबह नाश्ते के बाद एक महीने तक पिएं। दो मुट्ठी भुने चने और आधा मुट्ठी गुड़ रोजाना ब्रेकफास्ट में खाएं। इसे सुबह की चाय के साथ भी खा सकते हैं। 4 खजूर एक गिलास दूध के साथ सुबह नाश्ते में लें।

योग योग में अनीमिया के इलाज के लिए हाजमा ठीक करने पर जोर दिया जाता है। योग में माना जाता है कि अगर हमारा पाचन तंत्र सही रहेगा तो हमें कभी भी अनीमिया नहीं होगा। अगर किसी को अनीमिया हो गया हो तो उसे नीचे लिखे योगासन रोजाना करने चाहिए : उत्तानपादासन, कटिचक्रासन, पवन मुक्तासन, भुजंगासन, मंडूक आसन, अर्धमस्त्येंद्र क्रिया। साथ ही, कपालभाति, अनुलोम-विलोम, भ्रस्रिका और शीतकारी प्राणायाम करें। सर्दियों में शीतकारी प्राणायाम न करें। इन सभी का रोजाना सुबह उठकर खाली पेट 20 से 25 मिनट तक अभ्यास करें। अगर सुबह जल्दी नहीं उठ पाते हों तो डिनर से एक घंटा पहले और लंच के चार घंटे बाद इन्हें करें। अगर हम रोजाना इनका अभ्यास करें तो हमारा पाचन तंत्र सही रहेगा और हमें अनीमिया होगा ही नहीं। जिन्हें हाई बीपी (80/120 से ज्यादा) रहता हो या जिनकी बाईपास सर्जरी हुई हो, उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहिए।
नोट : योग की इन क्रियाओं को किसी अच्छे योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही करें।

आयरन की गोली खाते वक्त रखें ख्याल आयरन की गोली कभी भी खाली पेट न खाएं गोली को चबाकर न खाएं गोली खाने के साथ एक गिलास पानी जरूर पिएं बीमार होने पर गोली खाना बंद न करें बिना डॉक्टरी सलाह के खुद आयरन की गोली या सिरप न लें।
नोट : आयरन की कड़ाही में खाना पकाने से खाने में आयरन बढ़ जाएगा, यह पूरी तरह मिथ है। ऐसा करने से खाने में आयरन की मात्रा बढ़ती नहीं है।

उत्पीड़न की शिकार महिला की मौत के तीन महीनें बाद जागा प्रसाशन

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने यौन उत्पीड़न की शिकार युवती की मौत मामले में ओडिशा सरकार को आठ सप्ताह के अंदर जांच रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं. यह जानकारी एक याचिकाकर्ता ने बुधवार को दी.
कार्यकर्ता मनोज जेना और अखंड की याचिका पर एनएचआरसी ने मृतक के परिवार को पांच लाख रुपये की अंतरिम मदद देने का भी आदेश सरकार को दिया है.

अखंड ने कहा कि रायगढ़ जिले के तिकिरी शहर के सरकारी आवासीय स्कूल में 27 वर्षीय इतिश्री प्रधान पर किरासन तेल छिड़क कर आग लगा दी गई थी, जिसके चार दिन बाद एक नवंबर को विशाखापट्टनम में उसकी मौत हो गई थी.

पीड़िता ने 18 जुलाई को पुलिस को सूचित किया था कि इलाके का उप निरीक्षक नेत्रनंद दंडसेना ने उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत को वापस न लेने पर धमकी दी है.

अखंड ने बताया कि पुलिस ने प्रधान की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके बाद उसने जिलाधिकारी, राज्य पुलिस प्रमुख, मुख्यमंत्री और राज्य महिला आयोग से गुहार लगाई थी.

दंडसेना के कथित यौन उत्पीड़न से बचने के लिए उसने स्थानांतरण की भी मांग की थी. हालांकि, न तो उप निरीक्षक के खिलाफ कार्रवाई हुई और न ही उसके बचाव के लिए कोई आया.

घटना वाले दिन प्रधान बच्चों के साथ टेलीविजन देख रही थी तभी दंडसेना कथित रूप से स्कूल के कमरे में दाखिल हुआ और किरासन तेल छिड़क कर आग लगा दी, 90 फीसदी जल चुकी प्रधान की एक नवंबर को मौत हो गई.

मानवाधिकार संस्था ने मृतक के परिवार को सरकार की तरफ से अंतरिम राहत न मिलने की खबर पर नाराजरी जाहिर की है.

एनएचआरसी ने न सिर्फ आठ सप्ताह के अंदर जांच पूरी किए जाने की मांग की है, बल्कि राज्य पुलिस महानिदेशक को निर्धारित समय के अंदर जांच के अंतिम परिणाम भी पेश करने के निर्देश दिए हैं.

आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव और राज्य सरकार को पीड़िता को अंतरिम राहत दिए जाने के सबूत आठ सप्ताह के अंदर भेजे जाने के भी आदेश दिए हैं.

इधर, राज्य सरकार का कहना है कि इसने स्कूल के जिला निरीक्षक, जांच कर रहे पुलिस अधिकारी और दारोगा को निलंबित कर दिया है.

'मां का दूध पीने वाले बच्चे होते हैं पढ़ाई में अच्छे'

जो बच्चे मां का दूध पीते हैं, वे ज्यादा तेज दिमाग होते हैं. मां के दूध में कोई ऐसा छुपा गुण होता है, जिससे बच्चे कुशाग्र हो जाते हैं. मां का दूध बच्चे के लिए सबसे पौष्टिक भोजन होता है यह बात तो हमें पता है लेकिन मां के दूध में छुपे गुणों के कारण उनके कुशाग्र होने की बात एक ताजातरीन अध्ययन में कही गई है.

 अध्ययन के मुताबिक ऐसे बच्चे स्कूल में आमतौर पर दूसरों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन करते हैं.

अभी तक शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया था कि जो बच्चे मां का दूध पीकर बड़े होते हैं, वे बुद्धि परीक्षण में अच्छा प्रदर्शन करते हैं.

ऐसा क्यों हैं, इसका पता नहीं लगाया जा सका था. लेकिन अब ताजा अध्ययन में समाजशास्त्रियों ने बच्चों की परवरिश में दो मुख्य बातों का जिक्र किया है, एक तो बच्चे के भावनात्मक संकेतो पर प्रतिक्रिया देना और दूसरा नौ महीने की उम्र से बच्चे को विभिन्न पठन सामग्रियां पढ़ कर सुनाना.

उताह की ब्रिंघम यंग यूनिवर्सिटी के प्रमुख अध्ययनकर्ता बेन गिब्स ने कहा, "अपने बच्चे को दुग्धपान कराने वाली महिलाएं दोनों चीजें करती हैं. यह बच्चे की परवरिश का ही नतीजा है, जो उसे दूसरों से अलग बनाता है."

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह भी पाया कि बच्चों के दब्बू और कमजोर होने का कारण बचपन में अनुकूल परवरिश न होना भी हो सकता है.

Monday, February 24, 2014

ज्यादा उम्र में गर्भधारण मां और बेटी के लिए जानलेवा


ज्यादा उम्र में गर्भधारण यानी स्तन कैंसर को न्यौता। यह 

कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि शोध के नतीजे हैं। ताजा शोध 

से यह बात सामने आई है कि जो महिलाएं ज्यादा उम्र में 

गर्भवती होती हैं उनमें पांच गुना स्तन कैंसर का खतरा बढ़ 

जाता है। साथ ही पैदा होने वाली बेटी में भी यह खतरा 

बढ़ जाता है। खतरे का सबसे बड़ा कारण स्तन का घनत्व 

उभरकर सामने आया है।

भारतीय विशेषज्ञ भी इस शोध पर अपनी सहमति दे रहे 

हैं। अमरीकन एसोसिएशन ऑफ कैंसर रिसर्च की बैठक 

में स्तन कैंसर को लेकर कई शोध प्रस्तुत किए गए। 

जिसमें यह दिखाया गया कि जिन महिलाओं मेमोग्राफ 

घनत्व 75 फीसदी से ज्यादा है उनमें स्तन कैंसर का 

खतरा कम घनत्व वाली महिलाओं की तुलना में पांच 

गुना अधिक है। हालांकि स्तन कैंसर वंशानुगत रोग 

माना जाता है। लेकिन इसकी तह में अभी तक नहीं जा 

सका था। शोध कर्ताओं ने पाया कि हार्मोन बढ़ने के कारण 

पहले चरण में स्तन विकास होता है। वयस्क होने पर 

ट्यूमर का भी विकास हो जाता है।

प्रत्रिका स्तन कैंसर शोध और इलाज में छपी रिपोर्ट में कहा 

गया है कि शोध में 45 से 68 साल की 3575 महिलाओं 

को शामिल किया गया। शोध में यह बात सामने आई 

कि 39 साल से उपर की महिलाओं का बच्चे पैदा होने 

के बाद स्तन का घनत्व बढ़ा हुआ पाया गया। 

घनत्व में हुई वृद्धि कैंसर की संभावनाओं को भी बढ़ा 

दिया। यह बात भी सामने आई कि सामान्य लड़कियों 

की तुलना में जो लड़कियां ज्यादा लंबी और दुबली 

होती हैं उनमें भी स्तन कैंसर की संभावना ज्यादा रहती 

है। लेकिन जिन महिलाओं का स्तन छह साल के दौरान 

सिंकुड़ जाते हैं उनमें इसका खतरा कम हो जाता है।

शोध के अनुसार 35 साल की उम्र में पहला बच्चा पैदा 

करने वाले महिलाओं में 40 फीसदी इसकी संभावना रहती 

है बनिस्पत 20 साल की उम्र में बच्चे पैदा करने वाली 

महिलाओं की। क्योंकि कम उम्र की लड़कियों में इस्ट्रोजेन 

का स्तर गर्भावस्था के दौरान कम रहता है। पहली बार 

मां बनने के समय में ब्रेस्ट टिश्यू ज्यादा इस्ट्रोजेन बनाते 

हैं। इसके अतिरिक्त जीन के द्वारा ब्रेस्ट सेल को 

क्षतिग्रस्त होने की संभावना भी ज्यादा रहती है। गर्भावस्था 

के दौरान जब ये सेल तेजी से बढ़ता है तो असामान्य तरीके 

से बढ़ोत्तरी होती है।

एम्स के कैंसर रोग विशेषज्ञ प्रो.पी.के.जुलका का कहना है 

कि ज्यादा उम्र में बच्चे पैदा होना भी स्तन कैंसर का एक 

कारण है। लंबी और दुबली पतली महिलाएं ज्यादा उम्र में 

बच्चे पैदा करती हैं उनमें स्तन कैंसर की संभावना 

ज्यादा बढ़ जाती है। रॉकलैंड अस्पताल के वरिष्ठ कैंसर 

रोग विशेषज्ञ डॉ.अरुण गिरि का कहना है कि स्तन का 

घनत्व बढ़ने पर मेमोग्राफी सही नतीजे नहीं देता है। 

सही नतीजे पाने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफी महत्वपूर्ण हो 

जाता है।

पूरी दुनिया में वर्ष 2020 तक 7.1 मिलियन महिलाएं स्तन 

कैंसर का शिकार हो जाएंगी। प्रत्येक साल 1.2 मिलियन 

नए मामले सामने आ रहे हैं जिनमें से 50 फीसदी मामले 

एशियाई देशों के है।

महानगरों में स्तन कैंसर के मामले फीसदी में
दिल्ली------------------30
मुंबई------------------30
भोपाल-----------------27
बारशी------------------16
बेंगलुरू-----------------27
चैन्नई------------------29
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बालिकाओं के प्रति यह कैसी सोच


कन्या शिशुओं की हत्या भारत के लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले कई सालों में यह अपराध एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने बालिका शिशु के लिए भारत को सबसे घातक देशों में रखा है। कन्या शिशु की जन्म के एक वर्ष के भीतर या तो जहरीला पदार्थ खिलाकर मार डालते हैं अथवा गर्भ में पल रहे भ्रूण के बालिका होने की जानकारी होने पर उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है। एक सास को जब पता चलता है की उसकी बहू के गर्भ में पल रहा शिशु बालिका है तो वह बहू पर गर्भपात करने के लिए दबाव डालती है। ऐसी घटनाएं न ही काल्पनिक हैं और न ही कभी-कभार घटने वाली घटनाएं हैं। ऐसी घटनाएं आएदिन होती रहती हैं यह अलग बात है कि इस तरफ किसी का ध्यान शायद ही कभी जाता है। इस तरह हम बालिका शिशु के जीने का अधिकार छीन रहे हैं या तो उन्हें इस दुनिया का दर्शन करने के पहले ही मार दिया जाता है और नहीं तो उन्हें जन्म के तुरंत बाद हमेशा के लिए सुला दिया जाता है। यह एक क्रूर सच्चाई है कि बालिका शिशु को जीवित रहने का बुनियादी हक तक नहीं है। मनुष्यों में विशेषकर भारतीयों में बेटों को वरीयता देने की एक पुरानी और विसंगत परंपरा है। बेटे संपति हैं और बेटियां कर्ज। भारतीय परंपरा में हम सिर्फ संपति चाहते हैं, कर्ज नहीं। यह कैसी क्रूर स्थिति है जिसमें हम जी रहे हैं। आखिर बालिकाओं के प्रति यह घातक भेदभाव क्यों है? क्या यह अज्ञानता के चलते है अथवा ऐसा लालची होने के कारण है। इसका एक उत्तर पैसा है। हमारी परंपरा में बहुत सी बुराइयां हैं लड़कियों के लिए लड़कों का चयन रुपये और धन के आधार पर किया जाता है। रुपया और धन यानी दहेज ही सबसे बड़ा दुश्मन है जो हमारी बालिकाओं की हत्या के लिए जिम्मेदार है।


वर्तमान वैश्वीकरण के युग में भी लड़कियां माता पिता पर बोझ हैं, क्योंकि उनके विवाह के लिए महंगा दहेज देना होता है। दहेज प्रणाली एक ऐसी सांस्कृतिक परंपरा है जो सबसे बड़ा कारण है बालिकाओं की हत्या के लिए। हम सिर्फ लड़के और लड़कों को ही वरीयता देते हैं। भारत में यह एक ऐसी सांस्कृतिक परंपरा है जिसे कोई भी कानून शायद ही खत्म कर सके। वर्ष 1985से लाखों बालिकाएं इस पवित्र भूमि से गायब हैं। इन आंकड़ों की सच्चाई जानने के बाद भी हमारा दिल नहीं पिघलता। आखिर यह मौन क्यों है और क्या हमारा दिल पत्थर हो गया है। शायद यह एक सच्चाई बन गया है। आखिर उन लाखों लड़कियों की गलती क्या है और क्या उन्हें इस दुनिया में जीने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। यह वह देश है जहां कभी एक महिला प्रधानमंत्री थी और आज एक महिला राष्ट्रपति हंै और कुछ राज्यों में महिलाएं मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं, लेकिन बावजूद इसके हमारे देश में महिलाएं उपेक्षित हैं। लड़कों को वरीयता देने की पुरानी परंपरा बदस्तूर जारी है तथा जन्म के पहले शिशु के लिंग का परिक्षण के कारण देश में लड़का-लड़की का अनुपात पूरी तरह गड़बड़ा गया है। दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां लिंगानुपात एकदम असंतुलित है। वर्ष 2011की जनगणना के आंकड़ों में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है। 35राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में से 28में लड़के और लड़कियों के अनुपात में भारी अंतर है।


हरियाणा और पंजाब ऐसे जुड़वें राज्य हैं जहां बालिका शिशु को नफरत से देखने की प्रवृत्ति एकदम ऊंचाई पर है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस समृद्ध राज्य में आज 15 से 45 उम्र के 36 फीसदी लोग अविवाहित ेंहैं। इसी के चलते इन दोनों राज्यों में अविवाहित पुरुषों के आंकडे़ समाज के संतुलन को बिगाड़ रह हैं। पंजाब में आज भी लगातार हो रही कन्या भ्रूण हत्या के चलते यह अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। दुर्भाग्य से पंजाब में समृद्ध,शिक्षित और शहरी क्षेत्रों में रहने वालों की संख्या काफी है। 2006के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि पंजाब में आई समृद्धि ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2001 में जहां प्रति 1000 पुरुष की तुलना में 793 महिलाएं थीं वहीं वर्ष 2006 में यह घटकर 776 हो गया। शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात घटकर 761तक पहुंच गया है। सस्ते और अनियंत्रित तकनीकी विकास के चलते कन्या भ्रूण की हत्या लगातार बढ़ रही है। विशेष कर उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों में इसके चलते कुछ एक दिन पहले पैदा हुई नवजात बालिकाओं को झाडि़यों, सार्वजनिक शौचालयों, बगीचों और कचरे के डिब्बों में फेंक दिया जाता है। यह सब इसलिए है, क्योंकि कोई भी बिना बेटे के नहीं रहना चाहता है। इससे जुड़ा कोई भी कानून इसे रोक पाने में फिलहाल समर्थ नहीं दिख रहा। इस मामले में महाराष्ट्र भी पीछे नहीं है। यहां भी वर्ष 1961 से लगातार महिलाओं का औसत घटा है। वर्ष 1962 में जहां प्रति 1000 पुरुष के पीछे महज 936 महिलाएं थीं वहीं वर्ष 2001 में 922 तथा 2011 में 883 महिलाएं रह गई हैं। यह निम्नतम लिंगानुपात न सिर्फ झोपड़-पट्टियों और कम आय वर्ग वालों के बीच है, बल्कि समृद्ध लोगों में भी है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र और बीड़ जिले में सबसे कम लिंगानुपात है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बीड़ जिले में तो शून्य से 6 वर्ष की आयु वाले बालक- बालिकाओं का लिंगानुपात 100 के मुकाबले 801 है जो महाराष्ट्र में सर्वाधिक है। यही औसत पूरे राज्य में 1000 की तुलना में 833 का है।


वर्तमान आंकड़ों के मुताबिक भारत में पुरुषों की तुलना में 40 लाख महिलाएं कम हैं। यह अंतर लिंग परीक्षण का परिणाम है और प्रत्येक माह देश भर में 50 हजार से अधिक कन्या भ्रूण का गर्भपात किया जाता है और न जाने कितने ही लड़कियों की या तो हत्या कर दी जाती है अथवा उन्हें लावारिस छोड़ दिया जाता है। कन्या भ्रूण के गर्भपात की बढ़ती दर का पता आंशिक रूप से अल्ट्रासाउंड सेवा देने वाले क्लीनिक की बढ़ती संख्या से लगाया जा सकता है। भारत में लिंग परीक्षण तथा लिंग के आधार पर होने वाला गर्भपात दोनों ही अपराध है, लेकिन इस पर कानूनी कार्रवाई बहुत ही कम हो पाती है। यह सिर्फ गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चियों पर ही मंडराता खतरा नहीं है, बल्कि इसका असर अकेले पड़ते पुरुषों के विवाह की समस्या तक जा पहुंचा है। इस वजह से कितने ही परिवार अपने बेटों के लिए ब्लैक मार्केट से दुल्हन खरीदते हैं जो आगे चलकर मानव तस्करी को बढ़ावा देने का काम करते हैं। हरियाणा में अल्ट्रासाउंड के जरिये शिशु के लिंग का पता लगाने का प्रचलन जोरों पर है। यहां की सरकार इससे पूरी तरह वाकिफ भी है, लेकिन उसके प्रति उदासीन है। हरियाणा में लड़की दुर्लभ और अवांछित चीज है। भारत के लगभग सभी राज्यों में कुछ ऐसा ही हाल है। यह लड़कियों की जानबूझकर संख्या घटाने का परिणाम है। आश्चर्य की बात यह है कि पंजाब के तमाम अनाथालयों में 70 फीसदी से अधिक लड़कियां ऐसी हैं जो अपने परिवार द्वारा त्याग दी गई हैं।

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स्त्री-पुरुष में कहां है बराबरी


आजकल स्त्री पुरुष की बराबरी की बात बहुत की जाती है। कहा जाता है कि युवा पीढ़ी ने, खासकर शहरी युवाओं ने पुरानी मान्यताओं और रूढि़यों को काफी पीछे छोड़ दिया है। अब नौजवान अपनी पत्नी या गर्ल फ्रेंड को सिर्फ अपने बराबर समझते हैं बल्कि उनकी तरक्की देखकर खुश होते हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन अगर गौर से देखे तो कुछ मामलों में स्थिति जस की तस है। इसका प्रमाण मुझे कुछ दिनों पहले हुई एक घटना से मिला।

मेरी एक छब्बीस वर्षीय सहेली के बॉयफ्रेंड को सहेली के एक दोस्त ने अपने भाई की शादी पर बुलाया। बहुत बुलाने पर वह मेरी सहेली के साथ चला तो गया लेकिन शादी में पूरे समय अनमना रहा। उसके अनुसार, उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी गर्लफ्रेंड का बॉडीगार्ड बनकर शादी में आया है। वहां वह अपनी गर्लफ्रेंड के अलावा किसी को नहीं जानता था। जबकि मेरी सहेली का कहना था कि वह उसे जानता है, यही बहुत है। जब उसके बॉयफ्रेंड के किसी दोस्त की शादी होती है तो वह भी तो बिना सवाल जवाब किए वहां चली जाती है।

जबकि ऐसी शादियों में उसकी भी यही स्थिति होती है। वह भी उन शादियों में वह अपने बॉयफ्रेंड के अलावा किसी को नहीं जानती। लेकिन वह वहां खुद को इस तरह अनमना सा महसूस नहीं करती। और अगर करती भी है तो जाहिर नहीं होने देती। फिर वह क्यों ऐसा कर रहा था? इस पर उसका जवाब बहुत अजीब था- उसका कहना था कि तुम लड़की हो। तुम्हें मेरे दोस्तों के यहां जाने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए, लेकिन मैं एक लड़का हूं इसलिए तुम्हारे साथ तुम्हारे दोस्तों के यहां जाने में कंफर्टेबल महसूस नहीं करता। मेरी सहेली ने उससे पूछा कि क्या तुम शादी के बाद भी ऐसा ही सोचोगे? उसका जवाब था- शादी के बाद तो तुम मेरी जिम्मेदारी हो जाओगी।

इसलिए तब की बात अलग है। मैंने कई बार ऐसा भी देखा है कि अगर किसी एकल परिवार में कोई दोस्त या रिश्तेदार अपने यहां किसी समारोह में निमंत्रण देने के लिए फोन करे और वह पत्नी रिसीव कर ले तो कई पुरुषों को ऐसा लगता है कि हमें तो आमंत्रित किया ही नहीं गया। खासकर तब जब निमंत्रण पत्नी के मायके की तरफ के रिश्तेदार या दोस्त की तरफ से हो।

जबकि पत्नी पर ये बात कतई लागू नहीं होती। पति को निमंत्रित करने पर वह भी स्वत: निमंत्रित हो जाती है और कभी इस बात को इशू नहीं बनाती। दरअसल हम कितनी भी तरक्की कर लें, लेकिन पुरुष का दंभ कहीं कहीं अपना सिर उठा ही लेता है। शायद इसके पीछे पुरुष के खुद को सर्वेसर्वा समझने की वही पुरातन सोच है जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक से दूसरे पुरुष में अनजाने में ही जाती है।


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MATRIMONIAL RELATION