हरनाम कौर 23 साल की हैं. हरनाम कौर को है जिसकी वजह से बालों का अतिरिक्त विकास होने लगता है. लेकिन वो पिछले सात सालों से चेहरे के बालों को बढ़ने दे रही हैं.
वो कहती हैं, "मैं एक आम औरत की तरह नहीं दिखना चाहती."
लेकिन हरनाम का नज़रिया हमेशा इतना सकारात्मक नहीं था.
जब वो 11 साल की थीं तो उनके चेहरे पर बाल आने शुरू हो गए. धीरे-धीरे उनके सीने और बांहों पर भी बाल आने शुरू हो गए.
इसकी वजह से उन्हें लोगों के दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता था.
वो बताती हैं, "बारहवीं तक मेरे साथ हमेशा ही दुर्व्यवहार होता था. यह बहुत डरावना था. मुझे सुबह उठने से डर लगता था."
'मैं क़ैद में थी'
"जब मैं किशोरी थी तब पत्रिकाओं और टीवी पर ख़ूबसूरत औरतों को देखकर मैं भी उनके जैसी दिखना चाहती थी."
हरनाम कौर
अपनी किशोरावस्था के दिनों में हरनाम अपनी दाढ़ी को लेकर इतनी शर्मिंदा रहती थीं कि वो हफ़्ते में दो बार वैक्सिंग करती थीं. उन्होंने ब्लिचिंग और शेविंग करने की भी कोशिश की.
वो बताती हैं कि इससे उनकी समस्या और बढ़ गई. इससे बाल मोटे होने लगे और शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैलने लगे.
14 साल की उम्र तक वो अपने आपको लेकर इतने संवेदनशील हो गईं कि उन्होंने घर से निकलना छोड़ दिया. वो खुद को नुकसान पहुंचाने यहां तक कि आत्महत्या के बारे में भी सोचने लगी थीं.
वे कहती हैं, "मैं अपने बेडरूम में क़ैद हो गई थी. मैं हमेशा वहीं रहती थी. यह सब तक़रीबन एक साल तक चला. फिर मुझे लगा कि इससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला. खुद को नुकसान पहुंचाने से फ़ायदा होने के बजाय मुझे काफ़ी भावनात्मक चोट पहुंची."
हरनाम बताती हैं, "मुझे लगता है कि जब तक कोई उस स्थिति में न हो जिसमें दूसरा है, तब तक वो उसकी बात नहीं समझ सकता."
वो कहती हैं, "जब मैं किशोरी थी तब पत्रिकाओं और टीवी पर ख़ूबसूरत औरतों को देखकर मैं भी उनके जैसी दिखना चाहती थी."
वो कहती हैं, "यह एक बहुत भयावह अनुभव था कि मेरी हर दोस्त का बॉयफ़्रेंड था लेकिन मुझे कोई पसंद नहीं करता था."
'मैं खिल गई हूं'
"मेरा आत्म-विश्वास बढ़ने के बाद मैं नए लोगों से मिलने-जुलने में ज़्यादा सहज हो गई हूं."
हरनाम कौर
हरनाम को उनके छोटे भाई और उनके दोस्तों से काफ़ी मदद मिली और उन्होंने 16 की उम्र में सिख धर्म में दीक्षित होने के बाद से रेज़र का इस्तेमाल करना छोड़ दिया.
वो कहती हैं, "मैंने बालों के साथ ख़ुद को स्वीकार करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. मैंने आखिरकार अपना प्राकृतिक स्वरूप पा लिया."
वे कहती हैं, "मैं अभी भी तक़रीबन एक महीने या उसके बाद बाल बनाती हूँ. लेकिन अब मैं दाढ़ी बढ़ाने का आध्यात्मिक महत्व समझ चुकी हूं. यह समझने के बाद ही शायद मैंने सोचा कि अब मैं यह नहीं करूंगी. मैं अपना रेज़र फेंक दूंगी."
वे कहती हैं कि उनके धर्म ने उन्हें बहुत आत्मविश्वास दिया है.
वे कहती हैं, "मुझे लगता है कि आखिर मैंने अपना वास्तविक स्वरूप पा लिया है."
वे कहती हैं, "मेरा आत्म-विश्वास बढ़ने के बाद मैं नए लोगों से मिलने-जुलने में ज़्यादा सहज हो गई हूं. मुझे लगता है कि मैं खिल गई हूं."
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