Sunday, February 2, 2014

वर्चस्व, वासना और रेप

2014 की ये जनवरी तो मानो हमारी उम्मीदों और सपनों की कम, आशंका और आक्रमण की जनवरी साबित हो रही है। इस एक महीने में पश्चिम बंगाल के वीरभूम से लेकर देश भर में जैसे वहशियों ने नई यातना पॉकेट्स तैयार कर ली हैं। 27 जनवरी नाजी यातना शिविर आउश्वित्ज से मुक्ति की 69वीं सालगिरह है। लेकिन साढ़े छह दशकों बाद हम यातना शिविर पूरी दुनिया में पाते हैं। सबसे ज्यादा महिलाएं निशाने पर हैं। ये शिविर जेहन से लेकर घर, मुहल्ला, शहर, गांव, सड़क सब जगह फैले हैं। 64 साल के गणतंत्र में ये कुत्सित अभियान क्योंकर जारी है, इस पर बोलना तो दूर, हरकत तक नहीं होती। राष्ट्रपति का देश के नाम संदेश इन घृणितों को ललकारता नहीं है। कहीं कुछ नहीं होता। एक भीषण और उबाऊ यथास्थिति पसरी हुई है। और इसी में कुछ एक्शन छिटपुट होता है तो बाजुएं फड़कने लगती हैं, अरे देखो अब क्रांति हुई। कुछ नहीं होता। एक मोमबत्ती भी पूरी नहीं पिघल पाती। इतिहास और सदी की बर्बरता आधुनिक जीवन में एक नए इरादे और नए हमले से लौट आई है। स्त्रियों का बलात्कार एक बहुत गहरी और साजिश भरी पॉलिटिकल मुहिम है। इसके तार बिखरे हुए हैं। कोई सूत्र किसी से नहीं जुड़ता। एक बढ़ती हुई बिरादरी को खामोश करने की उसे एक तय घेरेबंदी में रहने की नसीहत देने वाली पॉलिटिक्स है ये। वर्चस्ववादियों ने एक नई कॉलोनी बना दी है। वहां पूंजी की परिक्रमा करते हुए स्त्री और पुरुष हैं। उनकी हम बात नहीं करते। उन्हें और घूमना और चक्कर काटना है। लेकिन खतरनाक ये है कि उनकी फेंकी कुछ रौनकें बाकी समाज में छिटक जाती हैं। उनका उत्पात बहुआयामी है।ऐसा उस देश में है जो 19वीं सदी के समाज सुधार आंदोलनों की ऊष्मा ग्रहण कर चुका है। कानून कितना कड़ा कर लीजिए, दफ्तर से लेकर खुली सड़क तक गाइडलाइन से लेकर चौकियां दस्ते और सुरक्षा कर दीजिए। रेप को एक सनसनी बनाने वाले बाजार से भी उपकरण ले आइए। एक पिस्तौल निकाल लीजिए, इत्र, मिर्च और कुछ इसी किस्म की अजीबोगरीब पेशकशें कर लीजिए। लेकिन क्या आपको लगता है ये बलात्कार के विरुद्ध अकेली स्त्री के सबसे उपयोगी हथियार हैं। बार बार बाजार क्यों जाते हो। रेप के विरुद्ध किसी नुस्खे की तलाश में। अपने अंदर क्यों नहीं जाते, समाज और संस्कृति में जो कूड़ा करकट जमा है, उसे क्यों नहीं बीनना शुरू करते। झाड़ झंखाड़ क्यों नहीं साफ करते। आत्मा से गंदगी की सफाई का अभियान क्यों नहीं छेड देते। और ये सब कहने पर कहते हो ये क्या नैतिक तीमारदारी की बात है। सतयुग कलियुग टाइप करते हो। क्या वाकई बहुत अजीब होता है जैसे ही आप इन दिनों आत्मा या नैतिकता की बात करने लगते हैं। इन्हें बस किताबी बातें और आध्यात्म मान लिया गया है। सामाजिक व्यवहार आप कैसे बदलते हैं। डंडे और बंदूक और फांसी के दम पर? क्या इनके खौफ से बलात्कारी घर बैठ जाते हैं। क्या उनके भीतर का पशु भाग खड़ा होता है। वे मनुष्य बन जाते हैं? ऐसा नहीं होता। खूंखारी ऐसे नहीं मरती। एक बहुत ही लंबी और अलग किस्म की लड़ाई चाहिए। एक विराट अलख जगाने का कोई देशव्यापी कार्यक्रम। कोई एक ऐसा आलोडऩ चाहिए, ऐसा एक मूवमेंट और मॉमेंटम जहां हर कोई उठे और प्रतिरोध की नई चेतना बनाए। छोटे छोटे स्तरों पर ये हुआ है। लोग कर रहे हैं। स्त्री आंदोलन हैं। याद कीजिए मणिपुर की महिलाओं का निर्वस्त्र प्रदर्शन। इरोम शर्मिला को देखिए। देश के अन्य हिस्सों में हमलों और शोषणों से उबर कर आई महिलाओं को देखिए। लेकिन ये बिखरी हुई कहानियां हैं, इन्हें एक जगह एक वेग में लाने की जरूरत अब है। वरना इस समाज में तो आदमी भले रह जाएं, आदमियत नहीं रहेगी।
विदेशी महिलाओं के साथ उत्पीडऩ
हाल के दिनों में भारत में विदेशी महिलाओं के साथ उत्पीडऩ के कई मामले सामने आए हैं। इसी साल पोलैंड की एक महिला ने आरोप लगाया था कि दिल्ली में एक टैक्सी ड्राइवर ने उसे धोखे से नशा करा दिया, जिसके बाद उसके साथ बलात्कार हुआ। हालांकि इस मामले को लेकर कुछ गलतफहमियां भी फैली हैं। पिछले महीने एक विदेशी महिला के बलात्कार के मामले में नेपाल के एक युवक को 20 साल कैद की सजा सुनाई गई है। हिमाचल प्रदेश में 39 साल की अमेरिकी महिला के बलात्कार के मामले में भी पिछली जुलाई में छह लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुई है। दिल्ली में 2012 के दिसंबर में एक छात्रा के साथ चलती बस में बलात्कार का मामला सामने आने के बाद भारत सरकार ने बलात्कार के मामलों पर गंभीर कदम उठाए हैं और सख्त कानून बनाए गए हैं। हालांकि इसके बाद भी बलात्कार की घटनाओं में बहुत कमी नहीं आई है।
हर 22 मिनट पर बलात्कार
अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित समझी जाने वाली मुम्बई में पिछले आठ माह में बलात्कार की 237 घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें से आठ घटनाएं सामूहिक बलात्कार की थीं। जहां तक पूरे देश का सवाल है, भारत में हर 22 मिनट में एक बलात्कार होता है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख नवी पिल्लै का कहना है कि बलात्कार भारत की राष्ट्रीय समस्या है।अक्सर गांवों और कस्बों में होने वाले यौन उत्पीडऩ और बलात्कार की घटनाओं की तो कहीं रिपोर्ट तक नहीं होती और इस तरह वे आधिकारिक आंकड़ों से बाहर रहती हैं। अधिकांश मामलों में पीडि़ता शर्म और संकोच के कारण कुछ बोल ही नहीं पाती और उसे रोकने के पीछे समाज का दबाव भी काम करता है। ऐसे मामलों में अक्सर दोष उसी के सर मढ़ दिया जाता है। जिन मामलों में पीडि़त लड़की हिम्मत दिखाती भी है, उनमें भी उसे न्याय मिलने की राह कांटों से भारी होती है। पिछले कुछ दिनों के भीतर दो ऐसे मामले प्रकाश में आये हैं जिन्होंने इस समस्या से सरोकार रखने वालों की नींद तो उड़ा ही दी है, साथ ही यह भी उजागर कर दिया है कि समाज के प्रभावशाली वर्ग के सदस्यों के दुष्कर्मों का पर्दाफाश करना कितना मुश्किल है।
एक सामाजिक परेशानी
यौन उत्पीडऩ का संबंध सत्ता और अधिकार से है और बलात्कार इसका चरम रूप है। यौन उत्पीडऩ की घटनाएं शक्ति प्रदर्शन के प्रयास से पैदा होती हैं और इनमें दूसरे पक्ष की इच्छा या सहमति को कोई महत्व नहीं दिया जाता। अक्सर इनमें एक पक्ष ताकतवर और दूसरा कमजोर होता है। यह शक्ति शारीरिक भी हो सकती है और आर्थिक एवं सामाजिक भी। यह दूसरे के अस्तित्व को नकारने और उसे कुचलने का भी प्रयास है। इसलिए आपसी रंजिश का बदला लेने और जातीय एवं सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में भी बलात्कार का सहारा लिया जाता है। जो लोग यह मानते हैं कि महिलाएं पश्चिमी वस्त्र पहन कर पुरुषों को आकर्षित करती हैं और एक अर्थ में स्वयं ही यौन उत्पीडऩ को आमंत्रित करती हैं, उन्हें इस सच्चाई को देखना चाहिए कि भारत में बलात्कार की शिकार होने वाली अधिकांश महिलाएं पारंपरिक वस्त्र ही पहनती हैं और यौन उत्पीडऩ का संबंध सत्ता विमर्श से है, वस्त्रों से नहीं। इसलिए तरुण तेजपाल, आसाराम बापू और न्यायमूर्ति गांगुली के मामले अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे पता चलेगा कि भारतीय न्यायव्यवस्था प्रभावशाली लोगों को सजा देने में सक्षम है या नहीं।
पंचायत ने दिया रेप का आदेश
कागजों पर विकास के गगनचुंबी दावों और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को पीछे छोड़ देने की होड़ के बीच भारत में एक गांव की परिषद ने सजा के तौर पर दर्जन भर लोगों को युवती का बलात्कार करने का आदेश दिया।मामला वही पुराना है। 20 साल की लड़की किसी और जाति के लड़के से प्रेम करती थी और मंगलवार रात दोनों को एक साथ बैठे देख लिया गया। आपाधापी में चार लोगों की पंचायत बैठी। उन्होंने तय किया कि लड़की वालों को 25,000 रुपये का जुर्माना देना होगा। पुलिस के मुताबिक जब परिवार वालों ने कहा कि उनके पास पैसे नहीं हैं तो जुर्माना बलात्कार की कीमत पर वसूला गया। पुलिस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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