Sunday, October 28, 2012

Precious

महोदया /महोदय मानवहित में हमें आपकी सहायता चाहिए।जो लडकियां अनाथ हैं,असहाय हैं और  जिन लडकियों को लोग बोझ समझ कर पैदा होते ही कूड़े में फेक देते हैं जानवरों को नोचने के लिए , उन्हें पालने के लिए हम अनाथालयों का निर्माण करना चाहते हैं।उन्हें हम अच्छी परवरिश करके एक कामयाब इंसान बनायेंगे । ताकि उन्हें अपने लड़की होने पर अफ़सोस नहीं बल्कि नाज हो।अगर आप इस मेसेज को पढ़ रहें हैं और  आप अपनी माँ की इज्जत करते हैं,महिलावों की इज्जत करते हैं,मानवता में विश्वास रखतें हैं   तो कृपया हमें सहयोग दे।आपकी इस सहायता से बहुत अनाथों का जीवन कामयाब हो जायेगा और वो  लड़कियां आपको दिल से दुयाएँ देंगी।आप एक पुण्य के भागीं बनेंगे।उम्मीद है आप हमें निराश नहीं करेंगे/करेंगी| धन्यवाद ।
womenhelp1@gmail.com

Saturday, October 27, 2012

महिलाओं के जीवन का दर्दनाक अंत


महिलाओं द्वारा अपने ही जीवन का अंत करना या उनकी संदेहास्पद मौत एक दुखद घटना है लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जो ऐसे हालातों के लिए स्वयं महिला को ही दोषी ठहराते हैं. ऐसे लोगों का मत है कि अति महत्वकांक्षाओं और अपने हित साधने के चक्कर में महिलाएं सही-गलत जैसी बातों को नजरअंदाज कर देती हैं. अपनी असीम इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह सारी हदें पार कर जाती हैं. अपने भविष्य को सुधारने के लिए महिला यह कदम उठाती है लेकिन धीरे-धीरे वही कदम उसके लिए एक अभिशाप बनने लगता है. नाम और शोहरत पाने की लालसा में महिलाओं को लगता है कि वह अपने फायदे के लिए पुरुष का इस्तेमाल कर रही हैं लेकिन जब उपभोग करने के बाद महिला को दूध में से मक्खी की तरह बाहर फेंक दिया जाता है तब उसके पास अपने जीवन को समाप्त करने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचता. इस तरह के मामलों में महिलाओं को पीड़िता ना मानने वाले लोगों का कहना है कि आत्महत्या करने वाली या संदेहास्पद मृत्यु की शिकार हर महिला को पीड़िता की नजर से देखना और पुरुष को दोषी ठहराना नासमझी होगी.


वहीं दूसरी ओर महिलाओं हितों के साथ पूर्ण सहमति रखने वाले लोगों का कहना है कि कोई व्यक्ति अपनी खुशी से अपने ही जीवन का अंत नहीं करता. अगर कोई महिला ऐसा कदम उठाने के लिए विवश होती है तो हमें उसकी मनोदशा पर विचार करना चाहिए. महत्वाकांक्षा रखना या किसी से प्रेम करना किसी भी रूप में गलत नहीं है, बल्कि यह तो मनुष्य का अधिकार है कि वह अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रयासरत रहे. लेकिन पुरुष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु की समझा जाता है. यही वजह है कि उसे झूठे सपने दिखाकर, उसका मनचाहा शोषण करने के बाद उसे तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता है. हालातों का सामना ना कर पाने के कारण महिला अवसाद ग्रस्त हो जाती है और समाज के ताने उसे आत्महत्या करने के लिए विवश कर देते हैं. महिलाओं को पीड़िता की नजर से देखने वाले लोगों का मत है कि महिला के आत्महत्या करने या उनकी संदेहास्पद ढंग से मृत्यु के बाद अगर उन्हीं को ही अपराधी ठहरा दिया जाता है तो इससे विकृत पुरुष मानसिकता को और अधिक बल मिलेगा और आगे ना जाने कितनी ही भोली-भाली, मासूम महिलाएं शातिर पुरुषों की शिकार बनती रहेंगी.


उपरोक्त चर्चा और वर्तमान परिदृश्य पर विचार करने के बाद हमारे सामने निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या भविष्य को सुधारने के लिए महिलाओं का महत्वाकांक्षी होना उनके चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाता है?

2. क्या किसी महिला का पुरुष से प्रेम करना या उस पर विश्वास करना गलत है?

3. स्त्रियों के साथ होने वाली ज्यादतियों के लिए पुरुषों को ही अपराधी समझा जाता है लेकिन वर्तमान हालातों के अनुसार क्या हमें अपनी इस धारणा में बदलाव नहीं लाना चाहिए?

4. अगर प्रेम और विश्वास का नतीजा मौत है तो इसके लिए हमें किसे दोषी कहना चाहिए?
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तू बेचारी नहीं

हमारा समाज बहुत आगे बढ़ रहा है. दुनिया में हर जगह विकास हो रहा है. अमेरिका हो या भारत या पाकिस्तान हो विकास का नाम आज हर जगह बड़े जोश के साथ लिया जा रहा है. पर हम कौन से विकास की बात कर रहे हैं जहां विकास को केवल पुरुष के नाम के साथ जोड़ा जा रहा है और महिलाओं का विकास बस नाम के लिए रह गया है. सोचिए जरा जब नौ साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया गया होगा और जब उस बच्ची के घर वालों को इन्साफ का इंतजार करते हुए उनके जीवन के 20 वर्ष बीत गए होंगे. सुनने में भी डर लगता है कि ना जाने कैसे उन लोगों ने वो 20 वर्ष बिताए होंगे. ऐसी एक घटना नहीं है जो महिलाओं के साथ घटी हो और भी ना जाने ऐसी कितनी घटनाएं होंगी जो आपके दिल को दहला देंगी.


आपकी नजरों में किसी रिश्ते को तोड़ने की कीमत क्या होती होगी ज्यादा से ज्यादा दुख और निराशा में अपना पूरा जीवन बिता देना. पर अब आपको डर के साथ-साथ धक्का भी लगेगा क्योंकि एक महिला ने रिश्ता तोड़ने की कीमत में अपनी आंखें गंवाई हैं. जिस दिन उसने सोचा कि वो अपने पति के अत्याचार और नहीं सह सकती उस दिन उसने अपने पति से अलग होने का फैसला कर लिया. फिर क्या था उसे फैसला करने की सजा सुनाई गई और सजा में जीवन भर का अंधापन, पूरे शरीर पर तेजाब के दाग दिए गए. कभी किसी महिला ने तो अपने पति को रिश्ता तोड़ने की ऐसी सजा नहीं दी होगी.

'सवाल असभ्य का नहीं संस्कृति का है'


क्या महिलाओं के विकास के बिना संपूर्ण विकास संभव है
हम बात करते हैं कि विकास करना है और समाज को बदलना है पर 'क्या महिलाओं के विकास के बिना संपूर्ण विकास संभव है. नहीं विकास का अर्थ समाज में रहने वाले सभी वर्गो के विकास से संबंधित होता है. हम शायद यह सोचने लगे हैं कि महिलाओं का विकास से कोई नाता नहीं हैं पर यह सोचना गलत है क्योंकि महिलाएं भी समाज का ही एक हिस्सा हैं जिनके बिना विकास संभव नहीं है. सोचिए जब आपके शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द होता है या कोई हिस्सा खराब हो जाता है तो आप क्या अपने आपको पूर्ण रूप से स्वस्थ कहेंगे. इसी तरह वो समाज भी लंगड़ा है जहां महिलाएं विकास का हिस्सा नहीं हैं.


मानसिक सोच छोटी है समाज के झूठे रक्षकों की
पुरुष चाहे कितना भी कह ले कि हम तो चाहते हैं कि महिलाएं विकास करें पर महिलाओं को भी अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए. कुछ पुरुष कहते हैं कि महिलाएं केवल घर के काम के लिए होती हैं और सही रूप में उनकी जिम्मेदारी घर ही है. उन पुरुषों को समझना होगा कि महिलाओं के विकास का मतलब उन्हें केवल ऑफिस भेजना ही नहीं है. महिलाओं के विकास से मतलब उस विकास से है जहां वो अपनी बातों को खुलकर सामने रख सकें, जहां वो अपने लिए जरूरी फैसले ले सकें और उनकी जिन्दगी में उनका उतना ही हक हो जितना पुरूष का अपनी जिन्दगी पर होता है.

क्या महिलाएं अपने लिए आवाज उठाना नहीं चाहतीं?

अगर आज हर बात पर गहराई से चिंतन किया जाए तो सच सामने आता है जिसे जानने के बाद चिंतन और गहरा हो जाता है. कुछ पुरुष जो यह कहते हैं कि महिलाएं खुद के विकास से डरती हैं शायद यह बात कुछ हद तक सही हो सकती है पर सच तो यही है कि महिलाएं खुद के विकास से डरती नहीं हैं बल्कि उनके ऊपर उन्हीं पुरुषों का दबाव होता हैं जो समाज के रक्षक बनते हैं और महिलाओं को समाज के विकास की बाधा समझते हैं.

संकल्प कीजिए कि "अब अपने फैसले मैं खुद लूंगी"
क्या सही है क्या गलत है बचपन से ही आपको भी सिखाया गया है तो फिर आपके लिए फैसले लेने का हक किसी और को क्यों है? हां, किसी से राय लेना गलत नहीं है पर किसी पर अपनी राय थोप देना गलत है जो अकसर सिर्फ महिलाओं के साथ होता है और यह होता भी रहेगा जब तक महिलाएं अपने लिए आवाज उठाना शुरू नहीं करेंगी. महिलाओं को याद रखना होगा कि अपने लिए कदम खुद उठाए जाते हैं कोई भी आपके जीवन में बदलाव के लिए मदद नहीं कर सकता है.
 
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महिलाओं को पीछे
 
प्रकृति ने महिला और पुरुष को एक-दूसरे के सहयोगी और पूरक के रूप में पेश किया है लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इन दो अनमोल कृतियों को हम हमेशा प्रतिस्पर्धा और भेदभाव जैसे मसलों में ही उलझा हुआ देखते हैं. निश्चित रूप से इसके पीछे महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमतर और दूसरे दर्जे का मानने जैसी प्रवृत्ति विद्यमान रही है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में महिला उत्थान और उन्हें समान अधिकार दिलवाने जैसी मुहिम में तेजी आई है लेकिन जमीनी स्तर पर महिलाओं के हालातों में आज भी हम बहुत अधिक परिमार्जन नहीं देख सकते क्योंकि आज के आधुनिक युग में भी महिलाओं को अपनी प्रॉपर्टी समझने वाले पुरुषों की कोई कमी नहीं है.
 
समाज अभी भी पुरुष प्रधान है

 

देश हो या विदेश प्राय: सभी समाज अपने मौलिक रूप में पुरुष प्रधान रहे हैं जिसका खामियाजा हमेशा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है. यूं तो प्रारंभिक समय से ही महिलाओं को पुरुषों के अधीनस्थ रखने का प्रचलन रहा है लेकिन हाल ही की एक घटना इस परंपरा को और अधिक पुख्ता करते हुए यह प्रमाणित कर रही है कि भले ही समय बदल गया हो लेकिन मानव स्वभाव और नजरिया कभी परिवर्तित नहीं हो सकता.

 

महिलाएं खुद तय करें अपने कर्तव्य

 

हां, यह बात जरूर है कि महिलाओं को भी अपने हितों की ओर ध्यान देने का पूरा अधिकार है लेकिन क्या अपने हितों को साधते हुए उनका अपने परिवार के प्रति उदासीन रवैया रखना उचित है? वैसे भी अधिकांश परिवारों में महिलाएं ही अपने बच्चों और पति की देखभाल करती हैं क्योंकि स्वाभाविक तौर पर ही पुरुषों को अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई हैव्यवहारिक रूप में अगर देखा जाए तो जिस प्रकार व्यक्ति का स्वभाव अलग-अलग होता है उसी प्रकार उसकी प्राथमिकताएं और जरूरतें भी अलग होती हैंबहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जो अपने व्यक्तिगत जीवन से ज्यादा परिवार और बच्चों को महत्व नहीं देतीं. वहीं कुछ का जीवन केवल अपने परिवार तक ही सीमित रहता है. निश्चित तौर पर यह व्यक्तिगत निर्णय है, जिसका पालन करने के लिए कोई डिक्शनरी या फरमान बाध्य नहीं कर सकते.

 

पत्नी की मदद से नाबालिग से रेप


15 साल की लड़की को पड़ोस में रहने वाले पति-पत्नी ने अगवा कर लिया। इस मुलजिम ने अपनी पत्नी की मदद से लड़की के साथ रेप किया। इसके बाद दोनों लड़की को रोहिणी में कोठी मालिक ऋषि अरोड़ा को बेच आए। उसने भी लड़की के साथ रेप किया। उसकी पत्नी ने लड़की की पिटाई कर दी। लड़की किसी तरह भागने में कामयाब हो गई। लड़की के पड़ोसी पति-पत्नी गिरफ्तार कर लिए गए। अरोड़ा फरार हो गया।

यह वारदात उत्तर-पश्चिम दिल्ली के भलस्वा डेरी और रोहिणी के इलाकों में हुई। बुधवार रात 8:10 बजे पीड़ित लड़की बीना (बदला नाम) ने पीसीआर को फोन कर वारदात की जानकारी दी। पुलिस टीम उसके पास पहुंची। बीना ने बताया कि उसके पड़ोस में रहने वाले सुनील और उसकी पत्नी आरती ने उसका अपहरण कर लिया था। सुनील ने आरती की मदद से उसका रेप किया। सुनील ने बीना को धमकी दी कि अगर इस बारे में किसी को बताया तो वह उसे जान से मार देगा। धमकी से बीना डर गई।

सुनील और आरती अपने साथ बीना को रोहिणी ले गए। बीना ने बताया कि वहां उसे एक कोठी में ले जाया गया। उस कोठी के मालिक का नाम ऋषि अरोड़ा है। बीना ने बताया कि सुनील और आरती ने उसे बेचकर ऋषि से रकम ली और चले गए। उनके जाने के बाद ऋषि अरोड़ा ने उससे अनगिनत बार रेप किया। परेशान हाल बीना ने इस बारे में ऋषि की पत्नी को बताया। उस महिला ने बीना को बुरी तरह डांटा और पीटा। किसी तरह उनके चंगुल से छूटकर बीना अपने घर आने में कामयाब हो गई। फिर उसने पुलिस को फोन कर आपबीती के बारे में बताया।पुलिस ने बीना का बयान दर्ज कर उसका मेडिकल चेकअप कराया। रेप की पुष्टि हो गई। गुरुवार को भलस्वा डेरी थाने में अपहरण, रेप, मार-पीट, जबरन बंधक बनाने, धमकी देने, जूवेनाइल जस्टिस ऐक्ट और मानव तस्करी के आरोप में एफआईआर दर्ज कर ली गई। सुनील (28) और आरती (25) को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों मुकुंदपुर के 'बी' ब्लॉक में रहते हैं। सुनील को दो दिन के रिमांड पर ले लिया गया है। आरती को जेल भेज दिया गया है।
दो बच्चियों से दुष्कर्म:दूसरी ओर दिल्ली के रनहोला और ख्याला इलाकों में भी बच्चियों से रेप की वारदातें हुई। रनहोला में एक मकान की ऊपरी मंजिल पर निर्माण कार्य चल रहा था। मिस्त्री ने मकान मालिक से पानी मांगा। मकान मालकिन ने तीन साल की बच्ची को पानी लेकर ऊपर भेज दिया। मिस्त्री ने बच्ची से रेप कर दिया। मिस्त्री की हरकत के बारे में पता चलने के बाद उसकी पिटाई कर दी गई। उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। मिस्त्री को गिरफ्तार कर लिया गया। ख्याला में नाबालिग लड़की से रेप के आरोप में उसके पड़ोस में रहने वाले युवक को गिरफ्तार किया गया।
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रैगिंग के नाम पर छात्र से किया गया कुकर्म
आगरा के इंजिनियरिंग कॉलेज में एक स्टूडेंट से रैगिंग के दौरान कुकर्म करने का मामला सामने आया है। छात्र को बेहद गंभीर हालत में दिल्ली के एम्स में एडमिट कराया गया है। उधर, पीड़ित स्टूडेंट के कमरे से भी यौनवर्धक दवाएं मिलने से अब पुलिस दूसरे ऐंगल से भी इस मामले की तफ्तीश में जुट गई है।

हरियाणा के रेवाड़ी का 20 वर्षीय बलराम गिरि बरौली अहीर के साईंनाथ इंजिनियरिंग कॉलेज में मकैनिकल इंजिनियरिंग के सेकेंड सेमेस्टर का स्टूडेंट है। आरोप है कि 23 जुलाई की रात बलराम टॉइलेट के लिए निकला, तो कुछ छात्र उसे जबरन अपने कमरे में ले गए जहां उसके साथ कुकर्म किया गया।

बलराम के बड़े भाई विश्वनाथ ने कॉलेज के सीनियर छात्रों पर बलराम से दुष्कर्म करने आरोप लगाया है। विश्वनाथ के मुताबिक बलराम के दोस्तों ने उन्हें बताया कि उस रात वह जैसे-तैसे लड़खड़ाता हुआ कमरे तक पहुंचा। उसने बताया कि सीनियर ने उसके साथ बहुत बुरा किया है। 25 जुलाई को उसका प्रैक्टिकल था, लेकिन वह इसमें भी शामिल नहीं हो सका। हालत गंभीर होने पर उसे एम्स में भर्ती कराया गया।
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टीचर ने की छेड़छाड़,छात्रा हुई बीमार
बीकानेर। बीकानेर के नयाशहर थाना क्षेत्र में एक स्कूली छात्रा से एक अध्यापक द्वारा छेड़छाड़ का मामला प्रकाश में आया है।

पुलिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार सुमेरसिंह ने शनिवार रात दर्ज कराई प्राथमिकी में बताया कि
उसकी 13 वर्षीय पुत्री क्षेत्र के बंगलानगर में स्थित साईनाथ स्कूल में पढ़ती है। करीब 20 दिन पूर्व गणित पढ़ाने वाले अध्यापक ने छुट्टी के बाद उसकी पुत्री का हाथ पकड़ लिया और छेड़छाड़ की।

इससे उसकी पुत्री सदमे से बीमार पड़ गई। जिससे उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। बाद में पूछताछ करने पर उसकी बेटी ने उक्त अध्यापक की करतूत बताई। वह उसका नाम नहीं जानती। पुलिस ने आरोपी अध्यापक के खिलाफ मामला दर्ज करके जांच शुरू कर दी है।
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स्कीम के बहाने बुजुर्ग ने महिला अधिकारी को दिखाई ब्लू फिल्म

मल्टिनैशनल कंपनी के बुजुर्ग कंसल्टेंट ने सीनियर सिटीजन स्कीम पर बातचीत के बहाने महिला बैंक अधिकारी को अपने फ्लैट में बुलाकर छेड़छाड़ की। युवती ने मुकाबला कर खुद को बचाया और पुलिस केस दर्ज करा दिया। पुलिस बुजुर्ग को गिरफ्तार करने उनके फ्लैट पर पहुंची, लेकिन तब तक वह चेन्नै जाने वाले विमान में सवार हो चुके थे।

यह वारदात ग्रेटर कैलाश पार्ट 1 इलाके में हुई। यहां कैलाश अपार्टमेंट में रहने वाले रामचंद्रन (67) प्राइवेट कंपनी में कंसल्टेंट हैं। उन्होंने मल्टीनैशनल बैंक की सीनियर सिटीजन स्कीम पर बातचीत के लिए बैंक की एग्जेक्युटिव को बुलाया। ग्रेटर कैलाश पार्ट 2 से बैंक की 24 साल की लेडी एग्जेक्युटिव उनके फ्लैट में आई। उसे यह मालूम नहीं था कि बुजुर्ग अपने फ्लैट में अकेले रहते हैं। ड्रॉइंग रूम में रामचंद्रन ने युवती को बिठाने के बाद उनके परिवार और जॉब के बारे में सवाल करने शुरू किए।

इनका जवाब देने के बाद जब युवती ने सीनियर सिटीजन स्कीम के बारे में बताना शुरू किया तो वह उठकर अंदर वाले कमरे से लैपटॉप उठा लाए। रामचंद्रन ने लैपटॉप में ब्लू फिल्म चालू कर दी। एग्जेक्युटिव घबरा कर खड़ी हो गई। रामचंद्रन ने उसका हाथ पकड़ लिया। अपना हाथ छुड़ा कर वह फ्लैट से बाहर निकलने के लिए गेट की ओर जाने लगी। पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज युवती के बयान के मुताबिक, रामचंद्रन ने उसे पीछे से दबोच लिया और छेड़छाड़ की। एग्जेक्युटिव बुजुर्गवार से मुकाबला कर किसी तरह खुद को छुड़ाकर बाहर निकल
गई।युवती ने पहले अपने बैंक के अधिकारियों को इस वारदात के बारे में बताया। उनसे बातचीत के बाद उसने गुरुवार को ग्रेटर कैलाश थाने में कंप्लेंट दी। पुलिस ने आईपीसी के सेक्शन 354 यानी छेड़छाड़ और 342 यानी जबरन रोकने के तहत एफआईआर दर्ज कर ली।

पुलिस रामचंद्रन को गिरफ्तार करने कैलाश अपार्टमेंट पहुंची, लेकिन उनके फ्लैट का लॉक बंद मिला। सोसायटी के सिक्युरिटी गार्ड ने बताया कि रामचंद्रन ने एयरपोर्ट जाने के लिए टैक्सी मंगाई थी। पुलिस को जानकारी मिली है कि अभियुक्त चेन्नै गया है। साउथ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट के अडिशनल पुलिस कमिश्नर अजय चौधरी के मुताबिक केस दर्ज कर तहकीकात की जा रही है।

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पैसों लिए बेटी को जिस्म की मंडी में धकेला 
केरल में एक पिता ने ही अपनी 14 साल की बेटी का रेप करा और पैसों के लिए जबरन उसे जिस्म की मंडी में उतार दिया तथा करीब 200 लोगों के साथ संबंध बनाने को मजबूर करा। बीते साल उजागर हुए इस मामले में आरोपी पिता को कोर्ट ने अब सजा सुनाई है।

फिलहाल किशोरों के लिए बने सरकारी आवास में रह रही इस लड़की ने बीते साल एक न्यूज चैनल से कहा था कि पहले मेरे पिता ने उस समय मेरे संग रेप करा जब मां घर पर नहीं थी। बाद में पिता मुझे अलग-अगल जगह यह कहकर ले जाने लगे कि मुझे फिल्मों में काम मिल जाएगा।

बेटी से रेप तथा छोटे बेटे को उल्टा लटकाकर जान से मारने की धमकी देने का आरोप सिद्ध हो जाने के बाद केरल की एक कोर्ट ने आरोपी पिता सुधीर को एक मामले में आजीवन कारावास की सजा दी है और उस पर 50 हजार रूपए जुर्माना भी लगाया गया है। उस पर 49 मामले अब भी चल रहे हैं। दीगर बात यह है कि कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के 46 गवाहों में से सुधीर की बीबी और छोटा बेटा बयान से पलट गए।

सुधीर की करतूतों का खुलासा खुद बेटी ने पुलिस को दिए बयानों में किया है। पुलिस का कहना है कि सुधीर अपनी बेटी को एक नदी के पुल पर ले गया और उसे नदी में फेंकने की धमकी दी। जब उसने पिता की बात नहीं मानी तो छोटे भाई को पुल से नीचे लटका दिया। मजबूरन उसे पिता की बात मानने को मजबूर होना पड़ा। इसके बाद उससे देह व्यापार करवाया जाने लगा।

पिता खुद भी उसके साथ रेप करता तथा अन्य लोगों के साथ जबरन सम्बंध बनाने को मजबूर करता था। जब पड़ोस के लोगों को शक होने लगा तो वह उनसे यह कह देता था कि उसकी बेटी को फिल्मों में छोटे रोल मिल रहे हैं इसलिए अकसर उसे लेकर बाहर जाना पड़ता है। लेकिन यह मामला ज्यादा दिन दबा नहीं रह सका। रिश्तेदारों के जरिए यह मामला पुलिस तक पहुंच गया।

कलयुगी पिताओं के 26 मामले
इस मामले में आरोपी पिता सुधीर को सजा सुनाने वाली अर्नाकुलम अतिरिक्त सत्र न्यायालय के जज पीजी अजित कुमार ने कहा कि कहा कि भारत में कुल 26 ऎसे मामले हैं जिसमें बेटियों से रेप किया गया। लेकिन सुधीर का मामला ऎसा है जिसमें न केवल उसने बेटी से रेप करा बल्कि पैसे के लिए उसे अन्य लोगों से भी शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर करा। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह पीडित लड़की को जमीन आवंटित करे ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सके। पूरे मामले में 44 गवाहों के बयान लिए गए तथा कोर्ट के सामने 43 दस्तावेज रखे गए। इस मामले में 106 लोग गिरफ्तार किए गए थे। गिरफ्तार लोगों में एक वकील, एक फिल्म प्रोडयूसर और कारोबारी भी शामिल है। कोर्ट ने इस पूरे मामले में 44 गवाहों और 43 दस्तावेजों के आधार पर फैसला सुनाया है।
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इज्जत बचाते-बचाते बन गई हत्यारिन
उत्तर प्रदेश में शामली जिले के झिंझाना थाना क्षेत्र के बान्नीपुर गांव में गुरूवार को एक महिला ने दुष्कर्म का कथित प्रयास करने वाले अपने ससुर की फावड़े से हत्या कर दी।

पुलिस के अनुसार इस महिला के पति का देहांत कुछ वर्ष पहले हो गया था और इसके चार बच्चे हैं। पुलिस को दिए बयान में उसने कहा कि उसका ससुर विक्रम(60) उस पर बुरी नीयत रखता था और गुरूवार को उसने दुष्कर्म का प्रयास किया तो महिला ने विरोध करते हुए फावड़े से उस पर प्रहार किया जिससे उसकी मौत हो गई। पुलिस के अनुसार इस महिला को गिरफ्तार कर लिया गया है तथा वह फावड़ा भी बरामद कर लिया।
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लड़कियों ने खुद की पंचायत, जींस नहीं पहनेंगी

बागपत की एक पंचायत के महिलाओं के मोबाइल फोन इस्तेमाल करने, अकेले बाजार न जाने के तालिबानी फरमान के समर्थन में अब खुद लड़कियां उतर आई हैं। हालांकि लड़कियों का कहना है कि पंचायत उन पर किसी तरह का फरमान न थोपे।
गौरतलब है कि हाल ही में आरएलडी पार्टी चीफ अजित सिंह के बेटे और युवा सांसद जयंत चौधरी ने पंचायत के फैसले का समर्थन करते हुए कहा था कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

अब मुजफ्फरनगर के एक गांव की लड़कियों ने खुद पंचायत करके जींस न पहनने, नाखून न रखने व मोबाइल का यूज़ न करने के संकल्प लिए। यह पंचायत मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर के गांव दूधाहेड़ी में सोमवार को लड़कियों ने की। हालांकि पंचायत में लड़कियों ने फरमान जारी करने वाली पंचायतों से कहा कि उन पर फैसले न थोपे, क्योंकि वह खुद जानती हैं कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। लड़कियों ने कहा,'हमें पता है कि हमारे संस्कार और परंपराएं क्या हैं। इसलिए हम खुद अपने भले का सोच सकती हैं।'
इस पंचायत में गांव की पढ़ी-लिखी लड़कियां शामिल हुईं। पंचायत में करीब 50 लड़कियों ने हिस्सा लिया। इसमें कई लड़कियां ऐसी थीं जो कॉलेजों में पढ़ाई कर रही हैं। पंचायत में शामिल एक लड़की ने कहा, 'लड़कियों को मां-बाप की इज्जत करनी चाहिए, उन्हें कभी पलट कर जवाब नहीं देना चाहिए।' उसने कहा, 'लड़कियों को नाखून नहीं बढ़ाने चाहिए और न ही बाल कटवाने चाहिए।' वहीं, एक दूसरी लड़की ने कहा, टजींस एक खराब पहनावा है, इसके साथ दुपट्टे का भी मेल नहीं है और मोबाइल भी युवतियों के लिए अभिशाप बन रहा है।'

पंचायत में यह भी फैसला लिया गया कि दूसरे गांवों में भी ऐसी पंचायत की जाएगी और लड़कियों को इन फैसलों पर राजी किया जाएगा। अगली पंचायत नौवा गांव करने का फैसला किया गया है।
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बीवी ने गुंडों से करवाई शौहर की ठुकाई
मुंबई में एक बीवी ने अपने ही पति की गुंडों से पिटाई करवा दी। पत्नी को शक था कि पति के अवैध संबंध हैं। 45 साल की महिला ने गुंडों से कहा था कि वे उसके पति के हाथ पैर तोड़ दें। इस बात का खुलासा तब हुआ तब दो आरोपी पुलिस के हत्थे चढ़े। पुलिस ने अशोक कोडकांति और घोषपाक शेख को गिरफ्तार किया है। इन दोनों ने 19 जून को बालकृष्ण नायक पर हमला बोला था। इन्होंने नायक को लूटा था। मुख्य आरोपी आशा नायक को भी पुलिस ने हिरासत में लिया है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक 19 जून को करीब 3.30 बजे सीजीएस कॉलोनी में दो लोगों ने बालकृष्ण नायक पर डंडों से हमला किया।

उन्होंने नायक से 22 हजार 550 रूपए भी लूट लिए। नायक टैक्सी ड्राइवर है। उसने पुलिस में एनटॉप हिल पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई। अलग से मामले की जांच करने वाली क्राइम ब्रांच की यूनिट 4 ने शुक्रवार को दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया। पूछताछ में शेख ने बताया कि नायक की पत्नी आशा ने उन्हें पति की पिटाई करने को कहा था। इसके लिए उसने 20 हजार रूपए भी दिए थे। आशा को लगता था कि पिटाई के बाद नायक दूसरी औरत के पास जाना बंद कर देगा।

पारिवारिक सुख के लिए



 आज बड़े परिवार बिखर रहे हैं। एकल परिवार भी तनाव में जी रहे हैं। बदलते माहौल में पारिवारिक सौहार्द का ग्राफ लगातार नीचे गिर रहा है। यह एक गंभीर समस्या है। इससे परिवार के मूल आधार स्नेह में भी खटास पड़ जाती है। समस्या आदिकाल से है, किंतु वह अब तक इसलिए है क्योंकि अधिकांश परिवारों ने समाधान के अति सरल उपायों पर विचार ही नहीं किया। स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता का सूत्र ही समाधान का मूलमंत्र है। यदि तीनों का आपसी संबंध समझकर लोग उसे अपने आचरण में उतार लें तो घर 'स्वर्ग' बन जाएगा। दुनिया भर की धन दौलत इंसान को वह सुकून नहीं दे सकती, जो स्नेह और सम्मान का मधुर भाव देता है।


सास बहू के संबंध में ही नहीं, पिता और पुत्र, मां और बेटी, देवरानी-जेठानी, ननद और भाभी, भाई-भाई आदि हर रिश्ते पर यह बात लागू होती है। आप सामने वाले को स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता दीजिए, आपको भी उससे यही मिलेगा। आप जरा यह सोचे कि पारिवारिक सुख शांति अधिक महत्वपूर्ण है या रूढि़वादिता? बंधी-बंधाई लीक पर चलकर कोई उपलब्धि भी हासिल न हो बल्कि जो कुछ अच्छा था, वह भी छूटता जाए, तो फिर ऐसा नियम पालन किस काम का? साड़ी और सिर पर पल्लू की अनिवार्यता, पति समेत घर के सभी सदस्यों से पहले भोजन न करने की कड़ाई, सास ससुर से हास-परिहास न करने की हिदायत, ननद देवर के छोटे-छोटे बच्चों को जी और आप कहने की औपचारिकता, पति के साथ घूमने और मनोरंजन न करने और महत्वपूर्ण फैसलों में भागीदारी न होने की संस्कारशीलता से आज तक कौन सा परिवार कोई महान उपलब्धि हासिल कर पाया है।


जिस प्रकार आयुर्वेद में निरोगी काया के लिए वात, पित्त और कफ का संतुलन जरूरी बताया गया है, उसी प्रकार पारिवारिक सुख और शांति के लिए स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता का संतुलन जरूरी है। 'जैसा बोया, वैसा काटोगे' के सर्वकाल सत्य के आधार पर कहा जा सकता है कि जो भाव और व्यवहार हमारा दूसरों के प्रति होगा, वही हमें भी प्रतिफल में मिलेगा। तभी 'सुख' अपनी पूर्णता को पाएगा। सुखद पारिवारिक जीवन के लिए संस्कार और सहिष्णुता भी जरूरी है। गृहस्थ समाज में सुखी गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए सहिष्णुता की बहुत अपेक्षा है, जिसकी आज कमी होती जा रही है। लगता है जैसे हम सहन करना जानते ही नहीं। सभी में सहिष्णुता की शक्ति में कमी हो रही है।


व्यक्ति अपने भाई को सहन नहीं करता, माता-पिता को सहन नहीं करता और पड़ोसी को सहन कर लेता है, अपने मित्र को सहन कर लेता है। सहन करना अच्छी बात है। लेकिन घर में भी एक सीमा तक एक-दूसरे को सहन करना चाहिए। इंसान की पहचान उसके संस्कारों से बनती है। संस्कार उसके समूचे जीवन को जाहिर करते हैं। संस्कार हमारी जीवनी शक्ति है, यह एक लगातार जलने वाली ऐसी दीपशिखा है जो अंधेरे मोड़ों पर भी प्रकाश बिछा देती है। असल में बच्चे तो कच्चे घड़े के समान होते हैं उन्हें आप उन्हें जैसे आकार में ढालेंगे वे उसी आकार में ढल जाएंगे। मां के उच्च संस्कार बच्चों के संस्कार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि सबसे पहले परिवार संस्कारवान बने, माता-पिता संस्कार वाले बनें, तभी बच्चे चरित्रवान बनकर घर की, परिवार की प्रतिष्ठा को और बढ़ा सकेंगे।
आज की भोगवादी संस्कृति ने खरीद-फरोख्त को जिस तरह से बढ़ावा दिया है उससे बाहरी चमक-दमक से ही आदमी को पहचाना जाता है। यह ठीक नहीं है। ये तमाम स्थितियां पारिवारिक बिखराव का बड़ा कारण बन रही है। इसे रोकने के लिए सांस्कृतिक मूल्य के महत्व को समझना जरूरी है। भारत को आज सांस्कृतिक क्रांति का इंतजार है। यह काम सरकारी तंत्र पर नहीं छोड़ा जा सकता। सही शिक्षा और सही संस्कारों से ही परिवार, समाज और राष्ट्र को स्वतंत्र बनाया जा सकता है।
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विश्वास का रिश्ता
विश्वास का रिश्ता होता है, पति-पत्नी का। जिंदगी भर साथ रहने का वादा, एक दूसरे के दुःख-सुख में साथ निभाने का वादा, एक दूसरे की देखभाल का वादा, अगली पीढ़ी को जन्म देने का वादा, साथ-साथ बच्चों के पालन पोषण करने का वादा, धार्मिक अनुष्ठानों को साथ-साथ पूरा करने का वादा, आदि-आदि वादों के साथ शुरुआत होती है वैवाहिक जीवन की। अगर प्रेम विवाह होता है, तब तो वायदों को गिना भी नहीं जा सकता है। लेकिन विश्वास पर टिका रिश्ता तो तभी तक रहता है, जब तक विश्वास टूटता नहीं है। विश्वास ख़त्म होने पर यह रिश्ता भी एक कच्चे धागे की तरह टूट जाता है।जितना मजबूत विश्वास उतना ही अधिक उसके टूटने का खतरा। विश्वास टूटने के बाद भी कुछ लोग सामाजिक मान्यताओं, बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर इस रिश्ते को घसीटते रहते है। परन्तु कुछ लोग घुट घुट कर जीनें से बेहतर अपने अपने रास्ते अलग कर लेना ही उचित समझते है। कभी-कभी तो एक दूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं। वैशे तो यह रिश्ता निहायद व्यक्तिगत होता है , फिर भी इस रिश्ते में बेहतरी की आशा से मै कुछ प्रश्न पतियों एवं पत्नियों से पूछना चाहूँगा जिसके उत्तर अपेच्छित नहीं है। लेकिन इन प्रश्नों के माध्यम से यह जानने का प्रयास कर सकतें हैं कि आप अपने जीवन साथी के साथ जो किए थे, उसका कितना प्रतिशत निभा रहे रहे हैं। तो लीजिये प्रश्न -
@- आपने शादी से पहले अपने पति या पत्नी से कौन से वादे किये थे? याद हैं या नहीं?
@- यदि याद हैं, तो कौन कौन से वायदे थे?
@- यदि नहीं याद हैं, तो क्यों?
@- क्या आप अपने वैवाहिक जीवन से खुस हैं? यानि कि शादी के बाद भी पति-पत्नी के बीच पहले जैसा विश्वास है, बल्कि आपसी विश्वास और अधिक मजबूत हुआ है। आप अपने पति या पत्नी को खुस रखने के लिए क्या क्या प्रयास करते है? अभी जो करते हैं क्या उससे भी अधिक प्रयास किया जा सकता है?
@- यदि खुस नहीं है तो इसके क्या कारण हैं? और इसके लिए दोषी कौन है? आप या आपका जीवन साथी? या फिर परिस्थितियां ?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे हैं?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे है, केवल बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे हैं, केवल लोक-लाज और सामाजिक दबाव को ध्यान में रखकर?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे हैं, उपर्युक्त दोनों कारणों से? या फिर कोई और भी कारण हैं?
@- पुराने लोग अपनी अपनी बेटियों को सीख देते थे कि "बिटिया ससुराल डोली चढ़कर जाना और अर्थी चढ़कर ही निकलना", इस सीख से आप कहाँ तक सहमत हैं? नहीं तो क्यों? हाँ तो क्यों?
@- पति पत्नी के बीच सामंजस्य होना बच्चों के भविष्य के लिए कितना आवश्यक है?
@- संयुक्त परिवार में अपने जीवन साथी और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच किस प्रकार सामंजस्य बनाए रखा जा सकता है?
@- परिवार के सारे निर्णय पत्नी को लेने चाहिए या पति को? या फिर दोनों को मिलकर लेने चाहिए?
@- परिवार में लोकतान्त्रिक मूल्यों को कैसे स्थापित किया जा सकता है?
@- पति यदि पत्नी को प्रताणित करता है, तो पत्नी को क्या करना चाहिए?
@- पत्नी यदि पति को प्रताणित करती है, तो पति को क्या करना चाहिए?
@- माता-पिता यदि झगड़ा करते हैं, तो बच्चों को क्या करना चाहिए?
@- बेटा-बहू यदि झगड़ा करते हैं, तो माता पिता को क्या करना चाहिए?
@- बेटी-दामाद यदि झगड़ा करते हैं, तो माता पिता को क्या करना चाहिए?
@- पति-पत्नी को अपने आपसी विश्वास को कायम रखने के लिए क्या प्रयास करने चाहिए?
@- घर के सरे कार्य पत्नी को करने चाहिए? या पति-पत्नी दोनों को मिलकर करने चाहिए?
@- पैसा केवल पति को कमाना चाहिए ?या पति-पत्नी दोनों को मिलकर कमाने चाहिए?
@- पति-पत्नी के बीच सामंजस्य के सारे रास्ते बंद हो जाये तो उन्हें क्या करना चाहिए?
@- पति-पत्नी के बीच सामंजस्य के सारे रास्ते बंद हो जाये तो उन्हें क्या उन्हें प्रयोग के तौर पर कुछ दिन अलग रहना चाहिए? या फिर एकदम से तलाक ले लेना चाहिए?
@- पति-पत्नी यदि तलाक ले लेते है, तो क्या बच्चों को पिता के पास रहना चाहिए?
@- पति-पत्नी यदि तलाक ले लेते है, तो क्या बच्चों को माता के पास रहना चाहिए?
@- पति-पत्नी यदि तलाक ले लेते है, तो क्या बच्चों को अनाथ आश्रम चाहिए?
@- आखिर बच्चों को करना क्या चाहिए?
अंत में मै यही कहना चाहता हूँ कि पति-पत्नी के बीच अगर सामंजस्य है तो वह आदर के पात्र है। और यदि नहीं है तो सहानुभूति के पात्र है। परिवार, समाज यहाँ तक कि बच्चों को उन्हें एक करने का प्रयास करना चाहिए, बशर्ते की इस बीच दोनों एक दूसरे की जान के दुश्मन न बन जाये।

100 महिलाओं को पकाकर खाना चाहता था पुलिस अधिकारी


कोई पुलिस ऑफिसर ऐसा प्लान बना सकता है, आप हैरत में पड़ जाएंगे! न्यू यॉर्क का एक पुलिस ऑफिसर लंबे समय से 100 महिलाओं को अवन में पकाकर खाने का प्लान बना रहा था। शुक्र है कि उसके मंसूबों का समय रहते पता चल गया। उसे शुक्रवार को अरेस्ट किया गया। ई-मेल्स ने उसका सारा भांडा फोड़ दिया। अमेरिका की फेडरल अथॉरिटीज ने जानकारी दी है।

पुलिस के मुताबिक न्यू यॉर्क पुलिस में तैनात जियबैर्तो वाल्ले एक शख्स से महिलाओं की किडनैपिंग कर उनके अंगों को पकाकर खाने की प्लैनिंग कर रहा था। योजना क्लोरोफॉर्म के जरिए महिलाओं को बेहोश करने और फिर वाल्ले के 28 साल पुराने किचन में लाकर उन्हें पकाने की थी। उसने वहां बड़ा सा अवन भी रखा भी था। दोनों चर्चा कर रहे थे कि अगर किसी महिला के पैर फोल्ड कर दिए जाएं तो अवन में वह पूरी तरह से समा जाएगी। इसके अलावा, ओपन फायर में धीमे-धीमे पकाए जाने के ऑप्शन पर भी वे चर्चा कर रहे थे।

बहरहाल, वाल्ले को गुरुवार रात गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इस प्लैनिंग में शामिल दूसरे शख्स को नहीं पकड़ा गया क्योंकि उसकी शिनाख्त नहीं हो पाई। हालांकि, दोनों किसी महिला को अब तक नुकसान नहीं पहुंचा पाए।

एफबीआई की असिस्टेंट डायरेक्टर ने कहा कि यह ऐसा आरोप है जिसपर कॉमेंट करना बेहद मुश्किल है। आरोपी के खिलाफ की गई कंप्लेंट अपने आपमे सबकुछ बयान कर रही है। एफबीआई को सितंबर में वाल्ले के प्लान के बारे में पता चला। वाल्ले ने अपने होम कंप्यूटर से इस प्लान के बारे में कई महीनों तक इमेल्स और इंस्टैंट मैसेजेस के जरिए चर्चा की।

वाल्ले के कंप्यूटर से उन 100 महिलाओं का पूरा डेटाबेस मिला, जिन्हें वह अपना शिकार बनाने की योजना बना रहा था। डाटाबेस में नाम, फोटोग्राफ और पर्सनल डीटेल हर तरह का ब्यौरा था। वाल्ले ने इस डेटाबेस को तैयार करने के लिए गैरकानूनी तरीके से लॉ इंन्फोर्समेंट डेटाबेस का इस्तेमाल किया। कुछ पैसे देकर किडनैपिंग के लिए किसी एक और शख्स का इस्तेमाल करना भी उसकी योजना का हिस्सा था।

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मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती

मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है बिहार के किशनगंज जिले में .नेपाल बंगलादेश सीमा से बिलकुल सटे होने का खामियाजा जिले को उठाना पड़ रहा है जिले में चल रहे चकला घरो में जिन्दगिया बर्बाद हो रही है /नेपाल और बंगलादेश की लडकियो को जहा इन चकला घरो में धकेला जा रहा है वही जिले के ग्रामीण क्षेत्रो की लडकियो को भी बहला फुसला कर इन चकला घरो में गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर किया जा रहा है .सबसे कम साक्षरता दर वाले किशनगंज जिले में मानव तश्करी के जो आकडे सामने आये है वो बड़े ही चौकाने वाले है पिछले ६ महीने में ही दर्जनों लडकियो को बिकने से बचाया गया है कही पुलिस की तत्परता तो कही सामाजिक जागरूकता ने इन लडकियो की जिंदगियो को बर्बाद होने से बचा लिया लेकिन सब इतने भाग्यशाली नहीं है पिछले १० वर्षो में ग़ुम /लापता हुई लडकियो के आकडे(१०० से अधिक ) बेहद ही महत्व रखते है की किस तरह से सिमांचल का यह जिला बेटियो की खरीद फरोख्त का मुख्य केंद्र बन चूका है /रविया ,सोनी ,नुसरत ,फातिमा ,सीमा ,(काल्पनिक नाम )आदि कई ऐसी लडकिया है जो वर्षो से लापता है परिवार वाले ढूंढ़ – ढूंढ़ कर अंत में थक कर बैठ गए आखिर बेचारे करे तो क्या करे इन लडकियो के ग़ुम होने के पीछे कारण भी कोई और नहीं प्रेम की जाल में भोली भाली लडकियो को दलालों ने तो कही कही सगे सम्बंधियो ,पड़ोशियो ने ही कुछ रूपये की खातिर बेच डाला .उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक चकला घर से लौट कर आई एक लड़की को तो उसकी सगी नानी ने ही बेच डाला ऐसे दर्जनों मामले है जहा सौतेली माँ तो कही सौतेला बाप तो कही पति ने ही रूपये के खातिर जिंदगियो का सौदा कर डाला है जिले में दर्जनों चकला घर प्रसाशन और समाज सेवी संगठनों का मुह चिढाते दिख जायेंगे सहरी क्षेत्रो की तो बात जाने दे ग्रामीण क्षेत्रो में भी ये चकला घर मौजूद है जहा साम होते ही रंगीनिया अपने चरम पर होती है और इन रंगीनियो में बचपन को कुचलने का काम खुले आम होता है ऐसा नहीं है की इन चकला घरो के विरोध में स्वर नहीं उठे लेकिन हर उठने वाले स्वर को कुछ दिन बाद दबा देने का काम भी कर दिया जाता है तश्कारो का नेटवर्क इतना मजबूत और हमारा कानून इतना कमजोर है की इसका लाभ खुले आम तश्कारो द्वारा उठाया जाता है कुछ दिन की सजा काटने के बाद ये फिर से अपने धंधे में लग जाते है और एक नया शिकार ढूंढ़ते है /.क्या होता है बचाई गई लडकियो का ? जिन लडकियो को चकला घरो से बचाया जाता है या बच निकलती है उनके लिए सरकार द्वारा अभी तक वैसी कोई कल्याण कारी योजना नहीं बनाई गई है जिससे की उनका जीवन सुधर सके मात्र बचाई गई लडकियो को अल्प आवाश गृह में कुछ दिन के लिए रख दिया जाता है बाद में ये लडकिया यदि परिजनों ने स्वीकार किया तो अपने घर चली गई या फिर से चकला घर पहुचने को मजबूर हो जाती है यही इनकी नियति बन जाती है हलाकि कई गैर सरकारी संगठन माना तश्करी पर कार्य कर रही है लेकिन इनका काम कागजो पर ही सिमटा हुआ है ऐसे में जरुरत है की मानव तश्करी के पुरे नेटवर्क को जड़ से समाप्त किया जाये लोगो में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलया जाये जिससे की बचपन काल कोठरी में गुमनाम होने से बच सके .
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हम चाहें, तो रूकेंगे अपराध
हम आए दिन सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं सुनते रहते हैं, क्या इसके लिए हमारी नीतियां ही त्रुटिपूर्ण हैं? महिलाओं के सार्वजनिक स्थान पर खुलेआम उत्पीडित होने की घटनाएं अब अकसर होने लगी हैं। उत्पीड़न की इन अधिकांश घटनाओं के मूल में पब संस्कृति होती है और ये घटनाएं ऎसी जगहों पर होती हैं, जहां लोग फुरसत के क्षणों में मनोरंजन के लिए एकत्रित होते हैं।ज्यादातर ऎसी घटनाएं शाम के समय ही होती हैं। अब तो यह भी देखा जाने लगा है कि इन घटनाओं को लेकर लोगों का गुस्सा जब भड़कता है, तो लोग मूकदर्शक ही बने रहना ज्यादा श्रेयस्कर समझते हैं। इसमें दखल देने की न तो कोई चिंता करता है और न ही कोई परवाह करता है। हालांकि कुछ लोगों के लिए ऎसी घटनाएं एक अवसर की तरह होती हैं कि उन्होंने विरोध-प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी निभाई।

सोशल नेटवर्किग साइट्स पर ये मामले विषाणु की तरह फैल जाते हैं। मीडिया उन्हें उछालता है। टीवी चैनलों पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो जाता है। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि पुलिस हमेशा की तरह या तो देरी से पहुंचती है या चूक जाती है अथवा मामले के प्रति ढिलाई बरत देती है। मैंने कई फोरम पर इस संदर्भ में विचार-विमर्श में भाग लिया है, अपने विचार साझा किए हैं। जागरूक नागरिकों के अधिकारों को लेकर कुछ सुझाव यहां पेश कर रही हूं।

हमें यह भलीभांति मालूम है कि पुलिस का पहला कत्तüव्य अपराध रोकना है, इसके लिए उसे व्यवस्थित रूप से घरेलू स्तर पर काम करना चाहिए, खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि पुलिस के पास जो भी संसाधन मौजूद हैं, चाहे वह पुलिस बल हो या पुलिस नियंत्रण कक्ष की गाडियां, मोटरसाइकिल, स्वयंसेवी कार्यकर्ता, होमगार्ड, नागरिक सुरक्षा के लोग, वायरलैस सैट्स, कैमरा आदि, वे सब इस हालात में होने चाहिए कि जहां भी गुंडागर्दी या असामाजिक तत्वों के जमावड़े का अनुमान हो, उन्हें तुरंत ही वहां तैनात कर दिया जाए। अपराध रोकने के लिए शाम के समय पब के बाहर अथवा लड़कियों के कॉलेज की जब छुट्टी होती है, तब पुलिस पेट्रोल वाहन को खड़ा कर दिया जाए। इसका असर यह होगा कि तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित होगी।

क्षेत्र के लोगों को एकजुट होकर इसकी मांग करना चाहिए। सड़कों पर दुराचरण अथवा हमले की जो घटनाएं होती हैं, विशेषकर महिलाओं के विरूद्ध, तो ऎसी घटनाएं होने की ज्यादातर वजह पुलिस का सही समय पर नहीं पहुंचना अथवा उसकी प्रभावी मौजूदगी न होना ही होती है। ऎसे स्थानों पर पुलिस की तैनाती अत्यंत जरूरी है। काफी बुद्धिमानी और समझदारी से पुलिस की समयबद्ध तैनाती आवश्यक है और यह प्रशासन का कर्तव्य भी है। जनता को भी स्वयंसेवक के रूप में निगरानी के लिए आगे आना होगा।

जरूरी यह भी है कि पुलिस का साथ देने के लिए वे रिकॉर्डिग कैमरा भी रखें, ताकि उनका सबूत के तौर इस्तेमाल हो सके। पुलिस के पास जो संसाधन हैं, वह काफी कम हैं। इस वजह से भी अपराध रोकने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका है। असामाजिक तत्व इस कमी को जानते हैं। लिहाजा वे अपराध भी इसलिए कर देते हैं कि उन्हें दंड का भय नहीं होता। उन्हें यह अच्छी तरह मालूम होता है कि पुलिस के पास साधन नहीं है। पुलिस के काम करने का अपना तरीका है, जो ज्यादा प्रभावशाली होता नहीं दिखता।

पुलिस जांच कार्य को भी (बिना लिए या कुछ लेकर) टाल जाती है। इस निरंतरता में होता यह है कि अवांछनीय तत्वों का गुट अपनी मौजूदगी को बढ़ाता रहता है। लोग भी उनके खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत इसलिए नहीं दिखाते कि अपराधी तत्व उनसे बदला ले लेंगे। लोगों को बिना हिचक पुलिस नियंत्रण कक्ष के 100 नंबर पर शिकायत दर्ज कराना चाहिए। ई-मेल करना चाहिए और इन सबका रिकॉर्ड भी रखना चाहिए।

अगर कोई शिकायत दर्ज नहीं कराता है, तो आपराधिक तत्वों के हौसले बढ़ते जाएंगे और लोग भय में ही जीने को मजबूर होंगे। हमारे प्रावधान ही ऎसे हैं कि मीडिया अथवा जन दबाव के चलते जब भी कोई पकड़ा जाता है, तो उसे जमानत मिल जाती है। उनमें से कुछ फिर वही काम करने को उतारू हो जाते हैं। ऎसे लोग गवाहों और शिकायतकर्ताओं को डराते-धमकाते हैं, महंगे वकीलों को खड़ा कर लेते हैं और लड़की अथवा उसके परिवार के चरित्र पर लाछंन लगाना शुरू कर देते हैं। ट्रायल की प्रक्रिया अंतहीन चलती है। लोगों को हिचक त्यागकर बहादुरी से ऎसे पीडित लोगों का साथ देना चाहिए। यह संदेश दूर तक फैलेगा और दुराचारी फिर ऎसा काम कभी नहीं करेंगे।

मुकदमे के नाकाम रहने पर पुलिस लोगों को कठघरे में खड़ा करती है और लोग पुलिस को। पुलिस अदालतों पर आरोप लगाती है और अदालत पुलिस पर। और होता यह है कि महिला उत्पीड़न की घटनाएं जारी रहती हैं। असुरक्षा के हालात उत्पन्न होते हैं एवं कानून-व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर होती जाती है। समाज के लिए जरूरी है कि वह मजबूत सामुदायिक पुलिस की मांग करे। इसका अर्थ यह है कि जमीन पर ज्यादा पुलिस बल हो। पुलिसकर्मी आम आदमी के लिए पेट्रोलिंग करें न कि वीआईपी सुरक्षा में तैनात रहें।

उन्हें जनता के बीच जाकर जानकारियां एकत्रित करना चाहिए। जो अपराधी रह चुके हैं, उनकी गतिविधियों पर निगाह रखें। इसके अलावा समुदाय के लोग यह भी मांग करें कि पुलिस अधिकारी नागरिकों, व्यापारियों, निजी सुरक्षा कंपनियों समेत अन्य समाजसेवी संस्थाओं के साथ बैठक करें। ऎसा होने से पुलिस को जानकारी हासिल करने, विश्वास बहाली के उपायों में मदद मिलेगी। पुलिस और जनता के बीच संवाद बढ़ने से पुलिस को व्यवस्थित कार्य करने में प्रोत्साहन मिलेगा। यह सब तभी संभव है, जब लोग खुद को संगठित करें, अपने अधिकार जानें और "समझदार-सामुदायिक पुलिस" के लिए खुद दृढ़तापूर्वक डटे रहें।
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पहले लड़की को छेड़ा, फिर ट्रेन से फेंका
अभी गुवाहाटी में लड़की के साथ हुई छेड़छाड़ का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि एक और लड़की के साथ इसी तरह की घटना हो गई। इस बार तो छेड़छाड़ करने वाले युवकों ने उसे जान से मारना भी चाहा। मामला कर्नाटक के मदुर का है। मिली जानकारी के अनुसार पेशे से लेडीज टेलर 19 वर्षीया युवती यशवंतपुर-मैसूर एक्सप्रेस ट्रेन से अपने घर मैसूर जा रही थी, जब ट्रेन शिम्शा नदी के पास पहुंची तो उसी समय कुछ मनचले युवती की बोगी में आए और पहले उस पर भद्दी फब्तियां कसीं। उसके बाद उन लोगों ने उसके साथ शारीरिक रूप से छेड़छाड़ शुरू की, युवती पहले तो चुप रही, लेकिन जब लड़के हद से ज्यादा बढ़ने लगे तो लड़की ने उनका विरोध किया।

मगर, विरोध करके भी लड़की बच नहीं सकी। ट्रेन के बाकी यात्रियों से उसे कोई सपोर्ट नहीं मिला। लड़की के विरोध करने पर लड़के और भड़क गए। उन्होंने युवती को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। वह गंभीर रूप से घायल हो गई है। उसकी कमर, पैर और सिर के पिछले हिस्से में गंभीर चोटें आई हैं।

हॉस्पिटल में युवती ने बताया कि चार युवकों ने इस घटना को अंजाम दिया। उसने जब उन लोगों से यह कहा कि वह इसकी शिकायत पुलिस से करेगी तो उन्होंने उसे लातों से मारते हुए चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया।
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उत्पीड़न के खिलाफ
महिलाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने, छेड़खानी, यौन हिंसा आदि के खिलाफ कड़े कानून हैं। मगर उनका अपेक्षित असर नजर नहीं आता। इसलिए सरकार ने उचित ही इन कानूनों को अधिक कड़ा बनाने का फैसला किया है। अच्छी बात है कि इस क्रम में महिलाओं पर तेजाबी हमले के खिलाफ भारी जुर्माने और कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। इस मामले में अभी तक कोई स्पष्ट कानून नहीं था। यही वजह है कि तेजाब फेंक कर किसी महिला को अपंग कर देने या जान से मार डालने वालों को सजा दिला पाना कठिन बना हुआ था। पिछले कुछ सालों में तेजाब से महिलाओं के चेहरे विकृत करने की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। इसे देखते हुए पिछले साल फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों से तेजाब की खुलेआम बिक्री पर रोक लगाने को कहा था। मगर अभी तक इस दिशा में कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाया जा सका है। हालांकि भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और दंड प्रक्रिया संहिता की महिला उत्पीड़न संबंधी धाराओं में बदलाव से ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने में मदद मिलने की उम्मीद जगी है। तेजाबी हमले के पीछे ज्यादातर घटनाओं में महिलाओं से व्यक्तिगत रंजिश देखी गई है। इसलिए दोषी की पहचान करना मुश्किल नहीं होता। मगर स्पष्ट कानूनी प्रावधान न होने के कारण उन्हें उचित न्याय नहीं मिल पाता। यही कारण है कि लंबे समय से इसके लिए विशेष कानून बनाने की मांग उठती रही है। कर्नाटक में एक नागरिक समूह लगातार तेजाबी हमले के विरोध में आंदोलन चलाता और सरकार पर इसके खिलाफ कानून बनाने का दबाव बनाता रहा है।
छेड़खानी, यौन हिंसा, तेजाबी हमले जैसी घटनाएं मानसिक विकृति की उपज हैं। तमाम सख्ती, सक्रियता और महिलाओं में जागरूकता के बावजूद इनमें कोई कमी नहीं आ रही तो इसकी एक बड़ी वजह कानून की कमजोर कड़ियां और उन पर अमल कराने वाले तंत्र की लापरवाही या दकियानूस मानसिकता है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर कई बार पुलिस की तरफ से बयान आ चुके हैं कि इसके लिए महिलाओं के परिधान ज्यादा जिम्मेदार हैं। हकीकत यह है कि महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के साठ फीसद से ऊपर मामलों की प्राथमिकी दर्ज नहीं हो पाती। इसकी एक वजह तो लोगों की मामले को तूल न देने या नाहक बदनामी से बचने की कोशिश होती है, मगर बहुत सारे मामलों में पुलिस अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाती। जिन मामलों में प्राथमिकी दर्ज होती भी है उनमें जांच और तथ्य जुटाने आदि को लेकर पुलिस की शिथिलता के चलते ज्यादातर दोषियों को सजा नहीं मिल पाती। इसके मद्देनजर यौन हिंसा से जुड़े मामलों की छानबीन महिला अधिकारियों से कराने और उनकी सुनवाई विशेष अदालतों में करने का नियम बनाया गया। फिर भी उल्लेखनीय नतीजे नहीं आ पाए हैं। ऐसे में संशोधित कानूनों में भारी जुर्माने और दंड के कड़े प्रावधान होने के बावजूद यह चुनौती खत्म नहीं हुई है। यौन उत्पीड़न का महिलाओं की मानसिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है, छिपा नहीं है। तेजाबी हमले की वजह से कई महिलाओं को जान तक गंवानी पड़ी है। जो बच जाती हैं उन्हें आजीवन हीनताबोध में जीते देखा जाता है। ऐसी घटनाओं पर काबू पाना सामाजिक चुनौती तो है ही, उन पहलुओं पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है जिनके चलते दोषियों का मनोबल तोड़ने में मदद नहीं मिल पाती। इसके लिए पुलिस के कामकाज के तरीके को सुधारने और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक तेजाब आदि की बिक्री पर कड़ी निगरानी रखने की जरूरत है।
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पंचायत ने नाबालिग से रेप की कीमत एक लाख लगाई
शर्मसार कर देने वाली एक घटना में एक नाबालिग लड़की सुमन (बदला हुआ नाम) से गांव के एक अधेड़ आदमी पन्ना लाल ने कई बार रेप किया। जब सुमन प्रेगनेंट हो गई तो पंचायत ने पन्ना लाल से 1 लाख रुपए दिलवाकर मामले को रफा-दफा करना चाहा। लड़की के पिता ने पुलिस केस किया तो आरोपी फरार हो गया।14 साल की सुमन की मां बचपन में ही गुजर गई थी। पिता कमाने के लिए दिल्ली चले गए। सुमन गांव में अपने बाबा के साथ रहती थी। जब सुमन का पेट बढ़ने लगा तो इस मामले का खुलासा हुआ। सुमन ने गांव की महिलाओं को पूरा मामला बताया।

सुमन के पड़ोस में 45 साल का पन्ना लाल अपने परिवार के साथ रहता है। पन्ना अक्सर उसे बुलाकर खाने-पीने की चीज देता था। सुमन ने बताया कि 6 महीने पहले पन्ना लाल ने उसके साथ रेप किया और यह बात किसी से न कहने की धमकी भी दी। उसके बाद से लगातार वह उसके साथ रेप करता रहा।

मामले का खुलासा हुआ तो सुमन के बाबा पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने गांव में ही मामला निपटाने की सलाह दी। गांव में पंचायत ने पन्ना लाल को एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई। इसके लिए पन्ना लाल भी तैयार हो गया लेकिन तभी सुमन के पिता मौके पर पहुंच गए। पंचायत का फैसला न मानते हुए वह थाने गए। गोला पुलिस ने पन्ना लाल के खिलाफ रेप का केस दर्ज कर लिया। केस दर्ज होने के साथ ही आरोपी गांव से भाग निकला।
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मां की गवाही से बेटे को उम्रकैद
सुप्रीम कोर्ट ने एक मां की गवाही पर पश्चिम बंगाल में पड़ोसी की बेटी से दुष्कर्म के बाद हत्या करने के जुर्म में उसके बेटे की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है। न्यायालय ने आरोपी की दलील ठुकराते हुए कहा है कि कोई भी मां अपने बेटे को इतने जघन्य अपराध में नहीं फंसा सकती है।

कोर्ट ने काशीनाथ मंडल की इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि दुष्कर्म और हत्या की वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और इस्तगासा का मामला सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है लेकिन यह भी सच है कि अपीलकर्ता की मां ने ही अदालत में गवाही दी है। काशीनाथ मंडल ने 30 अक्तूबर, 1997 को हुगली जिले में अपने पड़ोसी की बेटी से दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी थी। सत्र अदालत ने इस मामले में अभियुक्त को उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
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"गोद में बैठने पर ही पढ़ाएंगे पाठ"

बेंगलूरू। एक स्कू ल के अध्यापक ने बेशर्मी की हदें पार करते हुए छात्राओं से कहा कि उसकी गोद में आकर बैठने पर ही वह आगे पढ़ाई करवाएगा।

संगामेश्वर विद्या केन्द्र में हिन्दी पढ़ा रहे शिक्षक एचजी बसावराज के खिलाफ शनिवार को छात्राओं के अभिभावकों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उसने छात्राओं से छेड़छाड़ करने की कोशिश की। शिकायत के मुताबिक बसावराज पहले दिन से छात्राओं से दुर्व्यवहार कर रहा था।
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बाप के सामने लड़की की इज्जत से खिलवाड़
उत्तर 24 परगना जिले के बारासात स्टेशन के नजदीक रात के अंधेरे में फिर एक लड़की मनचलों की बदसलूकी का शिकार हो गई। मौके पर बेटी की इज्जत बचाने गए पिता को भी मनचलों ने नहीं छोड़ा और जमकर पिटाई कर डालीा। इस घटना ने पिछले साल छात्र राजीव दास हत्याकाण्ड की यादें ताजा कर दी है। साथ ही बारासात पुलिस की तत्परता की पोल खोल दी है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार शुक्रवार रात लगभग 8 बजे बनमाली इलाके की किशोरी ट्यूशन पढ़ कर घर लौट रही थी कि स्टेशन के नजदीक कुछ मनचलों ने उस पर अश्लील टिप्पणी की। आपत्ति करने पर युवकों ने उसका पीछा किया। डरी-सहमी किशोरी ने पिता को फोन कर घटना की जानकारी दी। खबर मिलते ही पिता मौके पर पहुंचे। उन्होंने मनचलों का विरोध किया तो वो उन पर टूट पड़े। उनकी पिटाई कर दी। मनचलों की मनमानी देख स्थानीय लोग भड़क उठे। लोगों का गुस्सा देख मनचले भागने लगे। लोगों ने खदेड़ कर उनमें से एक रमेश दास को पकड़ लिया। उसकी जमकर पिटाई की फिर पुलिस के हवाले कर दिया।

रमेश से पूछताछ के बाद बारासात थाने की पुलिस ने वारदात में शामिल शुभंकर दास नामक और एक युवक को गिरफ्तार किया। पीडित किशोरी के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
तृणमूल विधायक ने जले पर नमक छिड़का

घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए स्थानीय तृणमूल विधायक चिरंजीत चक्रवर्ती ने कहा है कि इस तरह की वारदात के लिए कुछ हद तक लड़कियां भी जिम्मेदार हैं। हर रोज स्कर्ट छोटी हो रही है। ड्रेस की डिजाइन बदल रही है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की मेहरबानी पर फिल्म जगत से राजनीति में आए चिरंजीत ने कहा कि लड़कियों से छेड़छाड़ कोई नई घटना नहीं है। प्राचीन समय से ही इस तरह की घटना हो रही है।

यह मामूली घटना है। इस तरह की घटना नहीं होगी तो फिल्म कैसे चलेगी। फिल्म में खलनायक का होना जरूरी है। रामायण में रावण तो होगा न।
विधायक के इस बयान ने पीडित परिवार और बारासात के लोगों पर जले पर नमक छिड़कने जैसा काम किया है। पश्चिम बंगाल महिला आयोग की चेयरपर्सन सुनंदा मुखोपाध्याय समेत रा`य के अनेक बुद्धिजीवियों ने विधायक के इस बयान की कड़ी निंदा की है।

राजीव हत्या काण्ड एक नजर में

बारासात का रहने वाला राजीव दास 14 फरवरी 2011 की रात अपनी बहन को स्टेशन से लेकर घर जा रहा था। रास्ते में स्टेशन के नजदीक कुछ मनचलें राजीव के सामने उसकी बहन से बदसलूकी करने लगे थे। बहन की इज्`e6त बचाने के लिए राजीव ने उनका कड़ा विरोध किया। इससे गुस्सा कर मनचलों ने चाकू मार कर राजीव की हत्या कर दी थी।
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300 करोड़ के लिए बहन को बताया कॉलगर्ल
देशभर में रक्षा बंधन का त्योहार धूमधाम से मना। बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर रखी बांधी। वहीं अमरीका में रहने वाली कुसुम हरसोरा (52) ने गुरूवार का दिन अपने एक भाई प्रदीप (48) के खिलाफ शिकायत करने में गुजारा। कुसुम ने शिकायत की है कि प्रदीप ने अपने दोस्तों में एक एसएमएस भेजा है जिसमें कहा है कि उसकी बहन एक कॉलगर्ल है।

कुसुम और उनकी मां का आरोप है कि प्रदीप अपनी बहन को इसलिए प्रताडित कर रहा है
ताकि वह परिवार की 300 करोड़ रूपए की संपत्ति हड़प सके। कुसुम आर्किटेक्चर में आने से पहले एक व्यावसायिक एअरलाइन में पायलट थीं। यह पता लगने पर कि प्रदीप अपनी मां को भोजन व दवाएं नहीं दे रहा है कुसुम अमरीका से लौट आई। कुसुम महालक्ष्मी में रह रही हैं।

कुसुम ने कहा कि उसने खुले में आने का फैसला अपने भाई को पाठ पढ़ाने के लिए किया है। एक अखबार के अनुसार कुसुम यह पीड़ा पिछले दो साल से सह रही है। इस दौरान उसे वक्त बेवक्त करीब 40 कॉल आए। कुछ ने तो अपने सही नाम भी बताए। इनमें एक कॉलर तो एक पूर्व पुलिस अधिकारी का था।

एक पुलिस का रिटायर्ड एसीपी था। सभी कॉल सैक्स की बातें करने के लिए आते थे। वे मुझे हाई प्रोफाइल प्रोस्टीट्यूट समझ रहे थे। इस पर मैं कुछ कॉलर्स से मिली तो उन्होंने बताया कि उन्हें मेरा नंबर मेरे भाई से मिला।

जब मानसिक पीड़ा हद से गुजर गई तो कुसुम की मां ने प्रदीप के खिलाफ पुलिस में शिकायत की। कुसुम के अलावा विधवा पुष्पा के तीन बेटे हैं। पुष्पा ने अपनी शिकायत में कहा है कि प्रदीप ने उसे खाना व दवाएं देना बंद कर दिया है। प्रदीप को लगता है कि कुसुम संपत्ति में हिस्सा लेने यहां आ गई है इसलिए वह उसे प्रताडित कर रहा है। परिवार इससे पहले भी प्रदीप के खिलाफ शिकायत कर चुका है। वह कोर्ट भी जा चुका है।

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शराब पिलाकर स्कूली छात्राओं से दुष्कर्म
पश्चिम बंगाल के मालदह जिले के कालियाचक गांव के एक निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूल के आवासन में शुक्रवार की रात दवा की जगह शराब पिलाकर तीन छात्राओं से दुष्कर्म का सनसनीखेज मामला सामने आया है। पीडित छात्राओं ने आरोपी प्रधान शिक्षक नाजीव शेख के खिलाफ थाने में दुष्कर्म की शिकायत दर्ज कराई है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार नाजीव शेख विद्यालय के प्रधान शिक्षक और मालिक भी हैं। विद्यालय में मालदह, मुर्शिदाबाद, उत्तर तथा दक्षिण दिनाजपुर की छात्राएं पढ़ने के लिए आती हैं। पीडित तीनों छात्राएं हॉस्टल में रहती हैं। वे नौवीं कक्षा में पढ़ती है। शुक्रवार रात तबीयत खराब होने पर प्रधान शिक्षक ने तीनों को दवा की जगह शराब पिला दी।
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प्रेगनेंट प्रेमिका को ट्रेन से सुरंग में फेंका
प्रेम और विश्वास को कलंकित करने वाली एक घटना में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में एक युवक द्वारा अपनी पांच माह की गर्भवती प्रेमिका को चलती ट्रेन से सुरंग में फेंकने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। गंभीर रूप से घायल युवती को जमशेदपुर के टाटा मेन अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

रेलवे पुलिस ने आज बताया कि चक्रधरपुर से पड़ोसी राज्य ओडिशा के राउरकेला जाने वाली सारंडा पैसेंजर ट्रेन की एक बोगी से बुधराम सुंडी ने अपनी प्रेमिका नीलमणि सोय को रविवार को हावडा-मुंबई रेलमार्ग पर गोइलकेरा के पास एक रेलवे सुरंग में धोखे से धक्का देकर नीचे गिरा दिया और खुद बाद में किसी स्टेशन पर उतर कर फरार हो गया।

बुरी तरह घायल युवती को रेल पटरी का निरीक्षण कर रहे रेलकर्मियों ने पहले गोइलकेरा फिर चक्रधरपुर अस्पताल पहुंचाया। लेकिन स्थित गंभीर होने पर रात को उसे जमशेदपुर लाया गया। बताया जाता है कि चक्रधरपुर के सुरगुड़ा पंचायत के हुड़ांगदा गांव की रहने वाली नीलमणि का पास के गांव किशुनपुर निवासी बुधराम से तीन चार वर्ष से प्रेम प्रसंग था। कुछ माह पूर्व वह गर्भवती हो गई थी और बुधराम पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी।
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किडनैपर्स से नाबालिग लड़की को छुड़ाकर पुलिसवाले ने किया रेप
 सीतापुर में किडनैप की गई एक नाबालिग लड़की को सब-इंस्पेक्टर ने छुड़ा लिया। लेकिन उसे उसके परिजनों को सौंपने से पहले 5 दिन तक अपने पास रखा और एक चौकीदार के साथ मिलकर उसका रेप किया।
अप्रैल में किडनैप हुई लड़की के मामले में कई बार शिकायत करने पर भी पुलिस आंख मूंदे रही। पुलिस ने पिछले हफ्ते इस मामले में तब कार्रवाई की, जब इससे मिलते-जुलते एक मामले में हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए लखनऊ के पुलिस चीफ को तलब किया।

2 अप्रैल को रामेश्वर की 16 साल की बेटी सुनीता (सभी नाम बदले हुए) को रजनेश ने अपने साथियों के साथ मिलकर कि़नैप कर लिया। रामेश्वर ने उसी दिन लिखित शिकायत दी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद रामेश्वर सीनियर ऑफिसर्स के पास गए, जिन्होंने पिसवान पुलिस स्टेशन को केस दर्ज करने के लिए कहा। 8 अप्रैल को पिसवान पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

इसके बाद कोई कार्रवाई न होती देख कर रामेश्वर ने 3 जून को पुलिस स्टेशन के बाहर अपनी जान दे देने की धमकी दी। यह खबर जब स्थानीय मीडिया में आई तो सीनियर ऑफिसर्स ने पिसवान पुलिस से इस केस पर काम करने के लिए कहा। इसके बाद अप्रैल से लापता सुनीता को सब-इंस्पेक्टर (एसआई) राम प्रसाद प्रेमी ने 48 घंटों के भीतर खोज लिया।

रामेश्वर के मुताबिक 5 जून को गांव के चौकीदार ने उन्हें बताया कि सुनीता मिल गई है। वह चौकीदार के साथ उस गांव गए, जहां सुनीता उस वक्त थी। वहां से एसआई के साथ रामेश्वर, सुनीता, चौकीदार और कॉन्स्टेबल पिसवान पुलिस स्टेशन के लिए चले। रामेश्वर ने बताया कि रास्ते में उन्हें गाड़ी से उतार दिया गया और उन्हें खुद पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा गया।

अगले 5 दिन तक वह पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रहे लेकिन वहां पर उन्हें कोई कुछ बताता तो कोई कुछ और। एक बार फिर रामेश्वर ने जान देने की धमकी दी तो चौकीदार उनकी बेटी को घर ले आया। रामेश्वर ने कहा, 'घर आकर उसने उन जुल्मों की दास्तान सुनाई, जो पहले किडनैपर्स ने और बाद में एसआई और चौकीदार ने उस पर ढाए थे।'

तब से रामेश्वर न्याय की भीख मांग रहे हैं लेकिन किसी पर कोई असर नहीं पड़ रहा। रामेश्वर ने हमसे बताया, 'जब लखनऊ में ऐसी ही घटना घटी तो उन्होंने मुझे बुलाकर मेरा बयान ले लिया लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ। इस बार मैं पक्का अपनी जान दे दूंगा और सीतापुर पुलिस इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार होगी।'

इस बारे में जब सीओ मिश्रीख विजय त्रिपाठी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कुछ न जानने का नाटक किया।

इस मामले में सीतापुर पुलिस कटघरे में है क्योंकि लड़की के मिलने के बाद न तो उनका मेडिकल टेस्ट कराया गया और न ही उसे तुरंत घर भेजा गया।
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जीबी रोड से मां ने बेटी को कराया आजाद

रेड लाइट एरिया जी.बी. रोड के कोठे में कैद बेटी को उसकी मां ने पुलिस की मदद से आजाद कराया। बहन की तलाश में उसका भाई कस्टमर बनकर कई कोठों में गया। एक कोठे में उसने अपनी बहन को देखकर मां के माध्यम से पुलिस को खबर दिलवाई। कोठा चलाने वालों के खिलाफ देह व्यापार कराने, रेप, अपहरण आदि धाराओं में केस दर्ज किया गया है।अडिशनल पुलिस कमिश्नर (सेंट्रल) देवेश चंद्र श्रीवास्तव के मुताबिक आंध्र प्रदेश में रहने वाली बुजुर्ग महिला ने कमला मार्केट थाने में आकर एसएचओ प्रमोद जोशी को बताया कि उनकी बेटी संगीता (बदला नाम, 27 साल) जी. बी. रोड पर कोठा नंबर 5211 के फर्स्ट फ्लोर पर कैद कर रखी गई है।

पुलिस ने कोठे पर रेड डालकर संगीता को आजाद करा लिया। उसने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि उनका परिवार आंध्र प्रदेश में धान की बुवाई कर अपना भरण-पोषण करता है। पिछले महीने एक महिला उनके गांव में आकर संगीता के परिवार से मिली थी।उस महिला ने बताया था कि उसके दिल्ली में खासे संपर्क हैं और वह संगीता की नौकरी दिल्ली में लगवा देगी। उस पर भरोसा कर संगीता को उसके मां-बाप ने उसके साथ दिल्ली भेज दिया। वह औरत नौकरी लगवाने के बजाय उसे जी.बी. रोड पर ले आई। यहां कोठा चलाने वालों से 20 हजार रुपये लेकर उसने संगीता को बेच दिया।

संगीता से कोठा मालकिन जबरन देह व्यापार करा रही थी। संगीता के पास एक दिन आंध्र प्रदेश का कस्टमर आया। उसे तेलुगू बोलते सुनकर संगीता ने उसे अपनी हालत के बारे में उसके परिवार को खबर देने की गुहार लगाई। उस कस्टमर ने आंध्र प्रदेश जाकर उसके परिवार को इस बारे में जानकारी दी। उसने कोठा नंबर भी बता दिया। नौकरी के बजाय बेटी को कोठे पर बेचे जाने की खबर से संगीता का परिवार सदमे में रह गया।

उसकी मां और भाई दिल्ली आए। इस बीच शक हो जाने पर संगीता को दूसरे कोठे पर शिफ्ट कर दिया गया। संगीता का भाई कस्टमर बनकर कई कोठों में गया, लेकिन कई दिन तक कोशिश करने पर भी उसे अपनी बहन नहीं मिली। आखिरकार सोमवार को उसे कोठा नंबर 5211 में संगीता मिल गई।

बहन से बात करने के बाद भाई ने बाहर आकर अपनी मां को खबर दी। वह कमला मार्केट थाने गई। इसके बाद पुलिस ने संगीता को आजाद कराया। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है, लेकिन अभी मुलजिमों को गिरफ्तार नहीं किया गया है। गिरफ्तारी से पहले पुलिस कोर्ट में धारा 164 के तहत संगीता के बयान दर्ज कराना चाहती है। पुलिस ने संगीता को नारी निकेतन भेज दिया है।


100 महिलाओं को अवन में पकाकर खाने का प्लान

कोई पुलिस ऑफिसर ऐसा प्लान बना सकता है, आप हैरत में पड़ जाएंगे! न्यू यॉर्क का एक पुलिस ऑफिसर लंबे समय से 100 महिलाओं को अवन में पकाकर खाने का प्लान बना रहा था। शुक्र है कि उसके मंसूबों का समय रहते पता चल गया। उसे शुक्रवार को अरेस्ट किया गया। ई-मेल्स ने उसका सारा भांडा फोड़ दिया। अमेरिका की फेडरल अथॉरिटीज ने जानकारी दी है।

पुलिस के मुताबिक न्यू यॉर्क पुलिस में तैनात जियबैर्तो वाल्ले एक शख्स से महिलाओं की किडनैपिंग कर उनके अंगों को पकाकर खाने की प्लैनिंग कर रहा था। योजना क्लोरोफॉर्म के जरिए महिलाओं को बेहोश करने और फिर वाल्ले के 28 साल पुराने किचन में लाकर उन्हें पकाने की थी। उसने वहां बड़ा सा अवन भी रखा भी था। दोनों चर्चा कर रहे थे कि अगर किसी महिला के पैर फोल्ड कर दिए जाएं तो अवन में वह पूरी तरह से समा जाएगी। इसके अलावा, ओपन फायर में धीमे-धीमे पकाए जाने के ऑप्शन पर भी वे चर्चा कर रहे थे।

बहरहाल, वाल्ले को गुरुवार रात गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इस प्लैनिंग में शामिल दूसरे शख्स को नहीं पकड़ा गया क्योंकि उसकी शिनाख्त नहीं हो पाई। हालांकि, दोनों किसी महिला को अब तक नुकसान नहीं पहुंचा पाए।

एफबीआई की असिस्टेंट डायरेक्टर ने कहा कि यह ऐसा आरोप है जिसपर कॉमेंट करना बेहद मुश्किल है। आरोपी के खिलाफ की गई कंप्लेंट अपने आपमे सबकुछ बयान कर रही है। एफबीआई को सितंबर में वाल्ले के प्लान के बारे में पता चला। वाल्ले ने अपने होम कंप्यूटर से इस प्लान के बारे में कई महीनों तक इमेल्स और इंस्टैंट मैसेजेस के जरिए चर्चा की।

वाल्ले के कंप्यूटर से उन 100 महिलाओं का पूरा डेटाबेस मिला, जिन्हें वह अपना शिकार बनाने की योजना बना रहा था। डाटाबेस में नाम, फोटोग्राफ और पर्सनल डीटेल हर तरह का ब्यौरा था। वाल्ले ने इस डेटाबेस को तैयार करने के लिए गैरकानूनी तरीके से लॉ इंन्फोर्समेंट डेटाबेस का इस्तेमाल किया। कुछ पैसे देकर किडनैपिंग के लिए किसी एक और शख्स का इस्तेमाल करना भी उसकी योजना का हिस्सा था।
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मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती

मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है बिहार के किशनगंज जिले में .नेपाल बंगलादेश सीमा से बिलकुल सटे होने का खामियाजा जिले को उठाना पड़ रहा है जिले में चल रहे चकला घरो में जिन्दगिया बर्बाद हो रही है /नेपाल और बंगलादेश की लडकियो को जहा इन चकला घरो में धकेला जा रहा है वही जिले के ग्रामीण क्षेत्रो की लडकियो को भी बहला फुसला कर इन चकला घरो में गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर किया जा रहा है .सबसे कम साक्षरता दर वाले किशनगंज जिले में मानव तश्करी के जो आकडे सामने आये है वो बड़े ही चौकाने वाले है पिछले ६ महीने में ही दर्जनों लडकियो को बिकने से बचाया गया है कही पुलिस की तत्परता तो कही सामाजिक जागरूकता ने इन लडकियो की जिंदगियो को बर्बाद होने से बचा लिया लेकिन सब इतने भाग्यशाली नहीं है पिछले १० वर्षो में ग़ुम /लापता हुई लडकियो के आकडे(१०० से अधिक ) बेहद ही महत्व रखते है की किस तरह से सिमांचल का यह जिला बेटियो की खरीद फरोख्त का मुख्य केंद्र बन चूका है /रविया ,सोनी ,नुसरत ,फातिमा ,सीमा ,(काल्पनिक नाम )आदि कई ऐसी लडकिया है जो वर्षो से लापता है परिवार वाले ढूंढ़ – ढूंढ़ कर अंत में थक कर बैठ गए आखिर बेचारे करे तो क्या करे इन लडकियो के ग़ुम होने के पीछे कारण भी कोई और नहीं प्रेम की जाल में भोली भाली लडकियो को दलालों ने तो कही कही सगे सम्बंधियो ,पड़ोशियो ने ही कुछ रूपये की खातिर बेच डाला .उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक चकला घर से लौट कर आई एक लड़की को तो उसकी सगी नानी ने ही बेच डाला ऐसे दर्जनों मामले है जहा सौतेली माँ तो कही सौतेला बाप तो कही पति ने ही रूपये के खातिर जिंदगियो का सौदा कर डाला है जिले में दर्जनों चकला घर प्रसाशन और समाज सेवी संगठनों का मुह चिढाते दिख जायेंगे सहरी क्षेत्रो की तो बात जाने दे ग्रामीण क्षेत्रो में भी ये चकला घर मौजूद है जहा साम होते ही रंगीनिया अपने चरम पर होती है और इन रंगीनियो में बचपन को कुचलने का काम खुले आम होता है ऐसा नहीं है की इन चकला घरो के विरोध में स्वर नहीं उठे लेकिन हर उठने वाले स्वर को कुछ दिन बाद दबा देने का काम भी कर दिया जाता है तश्कारो का नेटवर्क इतना मजबूत और हमारा कानून इतना कमजोर है की इसका लाभ खुले आम तश्कारो द्वारा उठाया जाता है कुछ दिन की सजा काटने के बाद ये फिर से अपने धंधे में लग जाते है और एक नया शिकार ढूंढ़ते है /.क्या होता है बचाई गई लडकियो का ? जिन लडकियो को चकला घरो से बचाया जाता है या बच निकलती है उनके लिए सरकार द्वारा अभी तक वैसी कोई कल्याण कारी योजना नहीं बनाई गई है जिससे की उनका जीवन सुधर सके मात्र बचाई गई लडकियो को अल्प आवाश गृह में कुछ दिन के लिए रख दिया जाता है बाद में ये लडकिया यदि परिजनों ने स्वीकार किया तो अपने घर चली गई या फिर से चकला घर पहुचने को मजबूर हो जाती है यही इनकी नियति बन जाती है हलाकि कई गैर सरकारी संगठन माना तश्करी पर कार्य कर रही है लेकिन इनका काम कागजो पर ही सिमटा हुआ है ऐसे में जरुरत है की मानव तश्करी के पुरे नेटवर्क को जड़ से समाप्त किया जाये लोगो में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलया जाये जिससे की बचपन काल कोठरी में गुमनाम होने से बच सके .
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हम चाहें, तो रूकेंगे अपराध
हम आए दिन सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं सुनते रहते हैं, क्या इसके लिए हमारी नीतियां ही त्रुटिपूर्ण हैं? महिलाओं के सार्वजनिक स्थान पर खुलेआम उत्पीडित होने की घटनाएं अब अकसर होने लगी हैं। उत्पीड़न की इन अधिकांश घटनाओं के मूल में पब संस्कृति होती है और ये घटनाएं ऎसी जगहों पर होती हैं, जहां लोग फुरसत के क्षणों में मनोरंजन के लिए एकत्रित होते हैं।ज्यादातर ऎसी घटनाएं शाम के समय ही होती हैं। अब तो यह भी देखा जाने लगा है कि इन घटनाओं को लेकर लोगों का गुस्सा जब भड़कता है, तो लोग मूकदर्शक ही बने रहना ज्यादा श्रेयस्कर समझते हैं। इसमें दखल देने की न तो कोई चिंता करता है और न ही कोई परवाह करता है। हालांकि कुछ लोगों के लिए ऎसी घटनाएं एक अवसर की तरह होती हैं कि उन्होंने विरोध-प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी निभाई।

सोशल नेटवर्किग साइट्स पर ये मामले विषाणु की तरह फैल जाते हैं। मीडिया उन्हें उछालता है। टीवी चैनलों पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो जाता है। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि पुलिस हमेशा की तरह या तो देरी से पहुंचती है या चूक जाती है अथवा मामले के प्रति ढिलाई बरत देती है। मैंने कई फोरम पर इस संदर्भ में विचार-विमर्श में भाग लिया है, अपने विचार साझा किए हैं। जागरूक नागरिकों के अधिकारों को लेकर कुछ सुझाव यहां पेश कर रही हूं।

हमें यह भलीभांति मालूम है कि पुलिस का पहला कत्तüव्य अपराध रोकना है, इसके लिए उसे व्यवस्थित रूप से घरेलू स्तर पर काम करना चाहिए, खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि पुलिस के पास जो भी संसाधन मौजूद हैं, चाहे वह पुलिस बल हो या पुलिस नियंत्रण कक्ष की गाडियां, मोटरसाइकिल, स्वयंसेवी कार्यकर्ता, होमगार्ड, नागरिक सुरक्षा के लोग, वायरलैस सैट्स, कैमरा आदि, वे सब इस हालात में होने चाहिए कि जहां भी गुंडागर्दी या असामाजिक तत्वों के जमावड़े का अनुमान हो, उन्हें तुरंत ही वहां तैनात कर दिया जाए। अपराध रोकने के लिए शाम के समय पब के बाहर अथवा लड़कियों के कॉलेज की जब छुट्टी होती है, तब पुलिस पेट्रोल वाहन को खड़ा कर दिया जाए। इसका असर यह होगा कि तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित होगी।

क्षेत्र के लोगों को एकजुट होकर इसकी मांग करना चाहिए। सड़कों पर दुराचरण अथवा हमले की जो घटनाएं होती हैं, विशेषकर महिलाओं के विरूद्ध, तो ऎसी घटनाएं होने की ज्यादातर वजह पुलिस का सही समय पर नहीं पहुंचना अथवा उसकी प्रभावी मौजूदगी न होना ही होती है। ऎसे स्थानों पर पुलिस की तैनाती अत्यंत जरूरी है। काफी बुद्धिमानी और समझदारी से पुलिस की समयबद्ध तैनाती आवश्यक है और यह प्रशासन का कर्तव्य भी है। जनता को भी स्वयंसेवक के रूप में निगरानी के लिए आगे आना होगा।

जरूरी यह भी है कि पुलिस का साथ देने के लिए वे रिकॉर्डिग कैमरा भी रखें, ताकि उनका सबूत के तौर इस्तेमाल हो सके। पुलिस के पास जो संसाधन हैं, वह काफी कम हैं। इस वजह से भी अपराध रोकने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका है। असामाजिक तत्व इस कमी को जानते हैं। लिहाजा वे अपराध भी इसलिए कर देते हैं कि उन्हें दंड का भय नहीं होता। उन्हें यह अच्छी तरह मालूम होता है कि पुलिस के पास साधन नहीं है। पुलिस के काम करने का अपना तरीका है, जो ज्यादा प्रभावशाली होता नहीं दिखता।

पुलिस जांच कार्य को भी (बिना लिए या कुछ लेकर) टाल जाती है। इस निरंतरता में होता यह है कि अवांछनीय तत्वों का गुट अपनी मौजूदगी को बढ़ाता रहता है। लोग भी उनके खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत इसलिए नहीं दिखाते कि अपराधी तत्व उनसे बदला ले लेंगे। लोगों को बिना हिचक पुलिस नियंत्रण कक्ष के 100 नंबर पर शिकायत दर्ज कराना चाहिए। ई-मेल करना चाहिए और इन सबका रिकॉर्ड भी रखना चाहिए।

अगर कोई शिकायत दर्ज नहीं कराता है, तो आपराधिक तत्वों के हौसले बढ़ते जाएंगे और लोग भय में ही जीने को मजबूर होंगे। हमारे प्रावधान ही ऎसे हैं कि मीडिया अथवा जन दबाव के चलते जब भी कोई पकड़ा जाता है, तो उसे जमानत मिल जाती है। उनमें से कुछ फिर वही काम करने को उतारू हो जाते हैं। ऎसे लोग गवाहों और शिकायतकर्ताओं को डराते-धमकाते हैं, महंगे वकीलों को खड़ा कर लेते हैं और लड़की अथवा उसके परिवार के चरित्र पर लाछंन लगाना शुरू कर देते हैं। ट्रायल की प्रक्रिया अंतहीन चलती है। लोगों को हिचक त्यागकर बहादुरी से ऎसे पीडित लोगों का साथ देना चाहिए। यह संदेश दूर तक फैलेगा और दुराचारी फिर ऎसा काम कभी नहीं करेंगे।

मुकदमे के नाकाम रहने पर पुलिस लोगों को कठघरे में खड़ा करती है और लोग पुलिस को। पुलिस अदालतों पर आरोप लगाती है और अदालत पुलिस पर। और होता यह है कि महिला उत्पीड़न की घटनाएं जारी रहती हैं। असुरक्षा के हालात उत्पन्न होते हैं एवं कानून-व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर होती जाती है। समाज के लिए जरूरी है कि वह मजबूत सामुदायिक पुलिस की मांग करे। इसका अर्थ यह है कि जमीन पर ज्यादा पुलिस बल हो। पुलिसकर्मी आम आदमी के लिए पेट्रोलिंग करें न कि वीआईपी सुरक्षा में तैनात रहें।

उन्हें जनता के बीच जाकर जानकारियां एकत्रित करना चाहिए। जो अपराधी रह चुके हैं, उनकी गतिविधियों पर निगाह रखें। इसके अलावा समुदाय के लोग यह भी मांग करें कि पुलिस अधिकारी नागरिकों, व्यापारियों, निजी सुरक्षा कंपनियों समेत अन्य समाजसेवी संस्थाओं के साथ बैठक करें। ऎसा होने से पुलिस को जानकारी हासिल करने, विश्वास बहाली के उपायों में मदद मिलेगी। पुलिस और जनता के बीच संवाद बढ़ने से पुलिस को व्यवस्थित कार्य करने में प्रोत्साहन मिलेगा। यह सब तभी संभव है, जब लोग खुद को संगठित करें, अपने अधिकार जानें और "समझदार-सामुदायिक पुलिस" के लिए खुद दृढ़तापूर्वक डटे रहें।
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पहले लड़की को छेड़ा, फिर ट्रेन से फेंका
अभी गुवाहाटी में लड़की के साथ हुई छेड़छाड़ का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि एक और लड़की के साथ इसी तरह की घटना हो गई। इस बार तो छेड़छाड़ करने वाले युवकों ने उसे जान से मारना भी चाहा। मामला कर्नाटक के मदुर का है। मिली जानकारी के अनुसार पेशे से लेडीज टेलर 19 वर्षीया युवती यशवंतपुर-मैसूर एक्सप्रेस ट्रेन से अपने घर मैसूर जा रही थी, जब ट्रेन शिम्शा नदी के पास पहुंची तो उसी समय कुछ मनचले युवती की बोगी में आए और पहले उस पर भद्दी फब्तियां कसीं। उसके बाद उन लोगों ने उसके साथ शारीरिक रूप से छेड़छाड़ शुरू की, युवती पहले तो चुप रही, लेकिन जब लड़के हद से ज्यादा बढ़ने लगे तो लड़की ने उनका विरोध किया।

मगर, विरोध करके भी लड़की बच नहीं सकी। ट्रेन के बाकी यात्रियों से उसे कोई सपोर्ट नहीं मिला। लड़की के विरोध करने पर लड़के और भड़क गए। उन्होंने युवती को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। वह गंभीर रूप से घायल हो गई है। उसकी कमर, पैर और सिर के पिछले हिस्से में गंभीर चोटें आई हैं।

हॉस्पिटल में युवती ने बताया कि चार युवकों ने इस घटना को अंजाम दिया। उसने जब उन लोगों से यह कहा कि वह इसकी शिकायत पुलिस से करेगी तो उन्होंने उसे लातों से मारते हुए चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया।
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उत्पीड़न के खिलाफ
महिलाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने, छेड़खानी, यौन हिंसा आदि के खिलाफ कड़े कानून हैं। मगर उनका अपेक्षित असर नजर नहीं आता। इसलिए सरकार ने उचित ही इन कानूनों को अधिक कड़ा बनाने का फैसला किया है। अच्छी बात है कि इस क्रम में महिलाओं पर तेजाबी हमले के खिलाफ भारी जुर्माने और कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। इस मामले में अभी तक कोई स्पष्ट कानून नहीं था। यही वजह है कि तेजाब फेंक कर किसी महिला को अपंग कर देने या जान से मार डालने वालों को सजा दिला पाना कठिन बना हुआ था। पिछले कुछ सालों में तेजाब से महिलाओं के चेहरे विकृत करने की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। इसे देखते हुए पिछले साल फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों से तेजाब की खुलेआम बिक्री पर रोक लगाने को कहा था। मगर अभी तक इस दिशा में कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाया जा सका है। हालांकि भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और दंड प्रक्रिया संहिता की महिला उत्पीड़न संबंधी धाराओं में बदलाव से ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने में मदद मिलने की उम्मीद जगी है। तेजाबी हमले के पीछे ज्यादातर घटनाओं में महिलाओं से व्यक्तिगत रंजिश देखी गई है। इसलिए दोषी की पहचान करना मुश्किल नहीं होता। मगर स्पष्ट कानूनी प्रावधान न होने के कारण उन्हें उचित न्याय नहीं मिल पाता। यही कारण है कि लंबे समय से इसके लिए विशेष कानून बनाने की मांग उठती रही है। कर्नाटक में एक नागरिक समूह लगातार तेजाबी हमले के विरोध में आंदोलन चलाता और सरकार पर इसके खिलाफ कानून बनाने का दबाव बनाता रहा है।
छेड़खानी, यौन हिंसा, तेजाबी हमले जैसी घटनाएं मानसिक विकृति की उपज हैं। तमाम सख्ती, सक्रियता और महिलाओं में जागरूकता के बावजूद इनमें कोई कमी नहीं आ रही तो इसकी एक बड़ी वजह कानून की कमजोर कड़ियां और उन पर अमल कराने वाले तंत्र की लापरवाही या दकियानूस मानसिकता है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर कई बार पुलिस की तरफ से बयान आ चुके हैं कि इसके लिए महिलाओं के परिधान ज्यादा जिम्मेदार हैं। हकीकत यह है कि महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के साठ फीसद से ऊपर मामलों की प्राथमिकी दर्ज नहीं हो पाती। इसकी एक वजह तो लोगों की मामले को तूल न देने या नाहक बदनामी से बचने की कोशिश होती है, मगर बहुत सारे मामलों में पुलिस अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाती। जिन मामलों में प्राथमिकी दर्ज होती भी है उनमें जांच और तथ्य जुटाने आदि को लेकर पुलिस की शिथिलता के चलते ज्यादातर दोषियों को सजा नहीं मिल पाती। इसके मद्देनजर यौन हिंसा से जुड़े मामलों की छानबीन महिला अधिकारियों से कराने और उनकी सुनवाई विशेष अदालतों में करने का नियम बनाया गया। फिर भी उल्लेखनीय नतीजे नहीं आ पाए हैं। ऐसे में संशोधित कानूनों में भारी जुर्माने और दंड के कड़े प्रावधान होने के बावजूद यह चुनौती खत्म नहीं हुई है। यौन उत्पीड़न का महिलाओं की मानसिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है, छिपा नहीं है। तेजाबी हमले की वजह से कई महिलाओं को जान तक गंवानी पड़ी है। जो बच जाती हैं उन्हें आजीवन हीनताबोध में जीते देखा जाता है। ऐसी घटनाओं पर काबू पाना सामाजिक चुनौती तो है ही, उन पहलुओं पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है जिनके चलते दोषियों का मनोबल तोड़ने में मदद नहीं मिल पाती। इसके लिए पुलिस के कामकाज के तरीके को सुधारने और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक तेजाब आदि की बिक्री पर कड़ी निगरानी रखने की जरूरत है।
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पंचायत ने नाबालिग से रेप की कीमत एक लाख लगाई
शर्मसार कर देने वाली एक घटना में एक नाबालिग लड़की सुमन (बदला हुआ नाम) से गांव के एक अधेड़ आदमी पन्ना लाल ने कई बार रेप किया। जब सुमन प्रेगनेंट हो गई तो पंचायत ने पन्ना लाल से 1 लाख रुपए दिलवाकर मामले को रफा-दफा करना चाहा। लड़की के पिता ने पुलिस केस किया तो आरोपी फरार हो गया।14 साल की सुमन की मां बचपन में ही गुजर गई थी। पिता कमाने के लिए दिल्ली चले गए। सुमन गांव में अपने बाबा के साथ रहती थी। जब सुमन का पेट बढ़ने लगा तो इस मामले का खुलासा हुआ। सुमन ने गांव की महिलाओं को पूरा मामला बताया।

सुमन के पड़ोस में 45 साल का पन्ना लाल अपने परिवार के साथ रहता है। पन्ना अक्सर उसे बुलाकर खाने-पीने की चीज देता था। सुमन ने बताया कि 6 महीने पहले पन्ना लाल ने उसके साथ रेप किया और यह बात किसी से न कहने की धमकी भी दी। उसके बाद से लगातार वह उसके साथ रेप करता रहा।

मामले का खुलासा हुआ तो सुमन के बाबा पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने गांव में ही मामला निपटाने की सलाह दी। गांव में पंचायत ने पन्ना लाल को एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई। इसके लिए पन्ना लाल भी तैयार हो गया लेकिन तभी सुमन के पिता मौके पर पहुंच गए। पंचायत का फैसला न मानते हुए वह थाने गए। गोला पुलिस ने पन्ना लाल के खिलाफ रेप का केस दर्ज कर लिया। केस दर्ज होने के साथ ही आरोपी गांव से भाग निकला।
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मां की गवाही से बेटे को उम्रकैद
सुप्रीम कोर्ट ने एक मां की गवाही पर पश्चिम बंगाल में पड़ोसी की बेटी से दुष्कर्म के बाद हत्या करने के जुर्म में उसके बेटे की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है। न्यायालय ने आरोपी की दलील ठुकराते हुए कहा है कि कोई भी मां अपने बेटे को इतने जघन्य अपराध में नहीं फंसा सकती है।

कोर्ट ने काशीनाथ मंडल की इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि दुष्कर्म और हत्या की वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और इस्तगासा का मामला सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है लेकिन यह भी सच है कि अपीलकर्ता की मां ने ही अदालत में गवाही दी है। काशीनाथ मंडल ने 30 अक्तूबर, 1997 को हुगली जिले में अपने पड़ोसी की बेटी से दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी थी। सत्र अदालत ने इस मामले में अभियुक्त को उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
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"गोद में बैठने पर ही पढ़ाएंगे पाठ"

बेंगलूरू। एक स्कू ल के अध्यापक ने बेशर्मी की हदें पार करते हुए छात्राओं से कहा कि उसकी गोद में आकर बैठने पर ही वह आगे पढ़ाई करवाएगा।

संगामेश्वर विद्या केन्द्र में हिन्दी पढ़ा रहे शिक्षक एचजी बसावराज के खिलाफ शनिवार को छात्राओं के अभिभावकों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उसने छात्राओं से छेड़छाड़ करने की कोशिश की। शिकायत के मुताबिक बसावराज पहले दिन से छात्राओं से दुर्व्यवहार कर रहा था।
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बाप के सामने लड़की की इज्जत से खिलवाड़
उत्तर 24 परगना जिले के बारासात स्टेशन के नजदीक रात के अंधेरे में फिर एक लड़की मनचलों की बदसलूकी का शिकार हो गई। मौके पर बेटी की इज्जत बचाने गए पिता को भी मनचलों ने नहीं छोड़ा और जमकर पिटाई कर डालीा। इस घटना ने पिछले साल छात्र राजीव दास हत्याकाण्ड की यादें ताजा कर दी है। साथ ही बारासात पुलिस की तत्परता की पोल खोल दी है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार शुक्रवार रात लगभग 8 बजे बनमाली इलाके की किशोरी ट्यूशन पढ़ कर घर लौट रही थी कि स्टेशन के नजदीक कुछ मनचलों ने उस पर अश्लील टिप्पणी की। आपत्ति करने पर युवकों ने उसका पीछा किया। डरी-सहमी किशोरी ने पिता को फोन कर घटना की जानकारी दी। खबर मिलते ही पिता मौके पर पहुंचे। उन्होंने मनचलों का विरोध किया तो वो उन पर टूट पड़े। उनकी पिटाई कर दी। मनचलों की मनमानी देख स्थानीय लोग भड़क उठे। लोगों का गुस्सा देख मनचले भागने लगे। लोगों ने खदेड़ कर उनमें से एक रमेश दास को पकड़ लिया। उसकी जमकर पिटाई की फिर पुलिस के हवाले कर दिया।

रमेश से पूछताछ के बाद बारासात थाने की पुलिस ने वारदात में शामिल शुभंकर दास नामक और एक युवक को गिरफ्तार किया। पीडित किशोरी के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
तृणमूल विधायक ने जले पर नमक छिड़का

घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए स्थानीय तृणमूल विधायक चिरंजीत चक्रवर्ती ने कहा है कि इस तरह की वारदात के लिए कुछ हद तक लड़कियां भी जिम्मेदार हैं। हर रोज स्कर्ट छोटी हो रही है। ड्रेस की डिजाइन बदल रही है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की मेहरबानी पर फिल्म जगत से राजनीति में आए चिरंजीत ने कहा कि लड़कियों से छेड़छाड़ कोई नई घटना नहीं है। प्राचीन समय से ही इस तरह की घटना हो रही है।

यह मामूली घटना है। इस तरह की घटना नहीं होगी तो फिल्म कैसे चलेगी। फिल्म में खलनायक का होना जरूरी है। रामायण में रावण तो होगा न।
विधायक के इस बयान ने पीडित परिवार और बारासात के लोगों पर जले पर नमक छिड़कने जैसा काम किया है। पश्चिम बंगाल महिला आयोग की चेयरपर्सन सुनंदा मुखोपाध्याय समेत रा`य के अनेक बुद्धिजीवियों ने विधायक के इस बयान की कड़ी निंदा की है।

राजीव हत्या काण्ड एक नजर में

बारासात का रहने वाला राजीव दास 14 फरवरी 2011 की रात अपनी बहन को स्टेशन से लेकर घर जा रहा था। रास्ते में स्टेशन के नजदीक कुछ मनचलें राजीव के सामने उसकी बहन से बदसलूकी करने लगे थे। बहन की इज्`e6त बचाने के लिए राजीव ने उनका कड़ा विरोध किया। इससे गुस्सा कर मनचलों ने चाकू मार कर राजीव की हत्या कर दी थी।
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300 करोड़ के लिए बहन को बताया कॉलगर्ल
देशभर में रक्षा बंधन का त्योहार धूमधाम से मना। बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर रखी बांधी। वहीं अमरीका में रहने वाली कुसुम हरसोरा (52) ने गुरूवार का दिन अपने एक भाई प्रदीप (48) के खिलाफ शिकायत करने में गुजारा। कुसुम ने शिकायत की है कि प्रदीप ने अपने दोस्तों में एक एसएमएस भेजा है जिसमें कहा है कि उसकी बहन एक कॉलगर्ल है।

कुसुम और उनकी मां का आरोप है कि प्रदीप अपनी बहन को इसलिए प्रताडित कर रहा है
ताकि वह परिवार की 300 करोड़ रूपए की संपत्ति हड़प सके। कुसुम आर्किटेक्चर में आने से पहले एक व्यावसायिक एअरलाइन में पायलट थीं। यह पता लगने पर कि प्रदीप अपनी मां को भोजन व दवाएं नहीं दे रहा है कुसुम अमरीका से लौट आई। कुसुम महालक्ष्मी में रह रही हैं।

कुसुम ने कहा कि उसने खुले में आने का फैसला अपने भाई को पाठ पढ़ाने के लिए किया है। एक अखबार के अनुसार कुसुम यह पीड़ा पिछले दो साल से सह रही है। इस दौरान उसे वक्त बेवक्त करीब 40 कॉल आए। कुछ ने तो अपने सही नाम भी बताए। इनमें एक कॉलर तो एक पूर्व पुलिस अधिकारी का था।

एक पुलिस का रिटायर्ड एसीपी था। सभी कॉल सैक्स की बातें करने के लिए आते थे। वे मुझे हाई प्रोफाइल प्रोस्टीट्यूट समझ रहे थे। इस पर मैं कुछ कॉलर्स से मिली तो उन्होंने बताया कि उन्हें मेरा नंबर मेरे भाई से मिला।

जब मानसिक पीड़ा हद से गुजर गई तो कुसुम की मां ने प्रदीप के खिलाफ पुलिस में शिकायत की। कुसुम के अलावा विधवा पुष्पा के तीन बेटे हैं। पुष्पा ने अपनी शिकायत में कहा है कि प्रदीप ने उसे खाना व दवाएं देना बंद कर दिया है। प्रदीप को लगता है कि कुसुम संपत्ति में हिस्सा लेने यहां आ गई है इसलिए वह उसे प्रताडित कर रहा है। परिवार इससे पहले भी प्रदीप के खिलाफ शिकायत कर चुका है। वह कोर्ट भी जा चुका है।

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शराब पिलाकर स्कूली छात्राओं से दुष्कर्म
पश्चिम बंगाल के मालदह जिले के कालियाचक गांव के एक निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूल के आवासन में शुक्रवार की रात दवा की जगह शराब पिलाकर तीन छात्राओं से दुष्कर्म का सनसनीखेज मामला सामने आया है। पीडित छात्राओं ने आरोपी प्रधान शिक्षक नाजीव शेख के खिलाफ थाने में दुष्कर्म की शिकायत दर्ज कराई है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार नाजीव शेख विद्यालय के प्रधान शिक्षक और मालिक भी हैं। विद्यालय में मालदह, मुर्शिदाबाद, उत्तर तथा दक्षिण दिनाजपुर की छात्राएं पढ़ने के लिए आती हैं। पीडित तीनों छात्राएं हॉस्टल में रहती हैं। वे नौवीं कक्षा में पढ़ती है। शुक्रवार रात तबीयत खराब होने पर प्रधान शिक्षक ने तीनों को दवा की जगह शराब पिला दी।
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प्रेगनेंट प्रेमिका को ट्रेन से सुरंग में फेंका
प्रेम और विश्वास को कलंकित करने वाली एक घटना में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में एक युवक द्वारा अपनी पांच माह की गर्भवती प्रेमिका को चलती ट्रेन से सुरंग में फेंकने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। गंभीर रूप से घायल युवती को जमशेदपुर के टाटा मेन अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

रेलवे पुलिस ने आज बताया कि चक्रधरपुर से पड़ोसी राज्य ओडिशा के राउरकेला जाने वाली सारंडा पैसेंजर ट्रेन की एक बोगी से बुधराम सुंडी ने अपनी प्रेमिका नीलमणि सोय को रविवार को हावडा-मुंबई रेलमार्ग पर गोइलकेरा के पास एक रेलवे सुरंग में धोखे से धक्का देकर नीचे गिरा दिया और खुद बाद में किसी स्टेशन पर उतर कर फरार हो गया।

बुरी तरह घायल युवती को रेल पटरी का निरीक्षण कर रहे रेलकर्मियों ने पहले गोइलकेरा फिर चक्रधरपुर अस्पताल पहुंचाया। लेकिन स्थित गंभीर होने पर रात को उसे जमशेदपुर लाया गया। बताया जाता है कि चक्रधरपुर के सुरगुड़ा पंचायत के हुड़ांगदा गांव की रहने वाली नीलमणि का पास के गांव किशुनपुर निवासी बुधराम से तीन चार वर्ष से प्रेम प्रसंग था। कुछ माह पूर्व वह गर्भवती हो गई थी और बुधराम पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी।
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किडनैपर्स से नाबालिग लड़की को छुड़ाकर पुलिसवाले ने किया रेप
सीतापुर में किडनैप की गई एक नाबालिग लड़की को सब-इंस्पेक्टर ने छुड़ा लिया। लेकिन उसे उसके परिजनों को सौंपने से पहले 5 दिन तक अपने पास रखा और एक चौकीदार के साथ मिलकर उसका रेप किया।
अप्रैल में किडनैप हुई लड़की के मामले में कई बार शिकायत करने पर भी पुलिस आंख मूंदे रही। पुलिस ने पिछले हफ्ते इस मामले में तब कार्रवाई की, जब इससे मिलते-जुलते एक मामले में हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए लखनऊ के पुलिस चीफ को तलब किया।

2 अप्रैल को रामेश्वर की 16 साल की बेटी सुनीता (सभी नाम बदले हुए) को रजनेश ने अपने साथियों के साथ मिलकर कि़नैप कर लिया। रामेश्वर ने उसी दिन लिखित शिकायत दी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद रामेश्वर सीनियर ऑफिसर्स के पास गए, जिन्होंने पिसवान पुलिस स्टेशन को केस दर्ज करने के लिए कहा। 8 अप्रैल को पिसवान पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

इसके बाद कोई कार्रवाई न होती देख कर रामेश्वर ने 3 जून को पुलिस स्टेशन के बाहर अपनी जान दे देने की धमकी दी। यह खबर जब स्थानीय मीडिया में आई तो सीनियर ऑफिसर्स ने पिसवान पुलिस से इस केस पर काम करने के लिए कहा। इसके बाद अप्रैल से लापता सुनीता को सब-इंस्पेक्टर (एसआई) राम प्रसाद प्रेमी ने 48 घंटों के भीतर खोज लिया।

रामेश्वर के मुताबिक 5 जून को गांव के चौकीदार ने उन्हें बताया कि सुनीता मिल गई है। वह चौकीदार के साथ उस गांव गए, जहां सुनीता उस वक्त थी। वहां से एसआई के साथ रामेश्वर, सुनीता, चौकीदार और कॉन्स्टेबल पिसवान पुलिस स्टेशन के लिए चले। रामेश्वर ने बताया कि रास्ते में उन्हें गाड़ी से उतार दिया गया और उन्हें खुद पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा गया।

अगले 5 दिन तक वह पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रहे लेकिन वहां पर उन्हें कोई कुछ बताता तो कोई कुछ और। एक बार फिर रामेश्वर ने जान देने की धमकी दी तो चौकीदार उनकी बेटी को घर ले आया। रामेश्वर ने कहा, 'घर आकर उसने उन जुल्मों की दास्तान सुनाई, जो पहले किडनैपर्स ने और बाद में एसआई और चौकीदार ने उस पर ढाए थे।'

तब से रामेश्वर न्याय की भीख मांग रहे हैं लेकिन किसी पर कोई असर नहीं पड़ रहा। रामेश्वर ने हमसे बताया, 'जब लखनऊ में ऐसी ही घटना घटी तो उन्होंने मुझे बुलाकर मेरा बयान ले लिया लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ। इस बार मैं पक्का अपनी जान दे दूंगा और सीतापुर पुलिस इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार होगी।'

इस बारे में जब सीओ मिश्रीख विजय त्रिपाठी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कुछ न जानने का नाटक किया।

इस मामले में सीतापुर पुलिस कटघरे में है क्योंकि लड़की के मिलने के बाद न तो उनका मेडिकल टेस्ट कराया गया और न ही उसे तुरंत घर भेजा गया।
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जीबी रोड से मां ने बेटी को कराया आजाद

रेड लाइट एरिया जी.बी. रोड के कोठे में कैद बेटी को उसकी मां ने पुलिस की मदद से आजाद कराया। बहन की तलाश में उसका भाई कस्टमर बनकर कई कोठों में गया। एक कोठे में उसने अपनी बहन को देखकर मां के माध्यम से पुलिस को खबर दिलवाई। कोठा चलाने वालों के खिलाफ देह व्यापार कराने, रेप, अपहरण आदि धाराओं में केस दर्ज किया गया है।अडिशनल पुलिस कमिश्नर (सेंट्रल) देवेश चंद्र श्रीवास्तव के मुताबिक आंध्र प्रदेश में रहने वाली बुजुर्ग महिला ने कमला मार्केट थाने में आकर एसएचओ प्रमोद जोशी को बताया कि उनकी बेटी संगीता (बदला नाम, 27 साल) जी. बी. रोड पर कोठा नंबर 5211 के फर्स्ट फ्लोर पर कैद कर रखी गई है।

पुलिस ने कोठे पर रेड डालकर संगीता को आजाद करा लिया। उसने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि उनका परिवार आंध्र प्रदेश में धान की बुवाई कर अपना भरण-पोषण करता है। पिछले महीने एक महिला उनके गांव में आकर संगीता के परिवार से मिली थी।उस महिला ने बताया था कि उसके दिल्ली में खासे संपर्क हैं और वह संगीता की नौकरी दिल्ली में लगवा देगी। उस पर भरोसा कर संगीता को उसके मां-बाप ने उसके साथ दिल्ली भेज दिया। वह औरत नौकरी लगवाने के बजाय उसे जी.बी. रोड पर ले आई। यहां कोठा चलाने वालों से 20 हजार रुपये लेकर उसने संगीता को बेच दिया।

संगीता से कोठा मालकिन जबरन देह व्यापार करा रही थी। संगीता के पास एक दिन आंध्र प्रदेश का कस्टमर आया। उसे तेलुगू बोलते सुनकर संगीता ने उसे अपनी हालत के बारे में उसके परिवार को खबर देने की गुहार लगाई। उस कस्टमर ने आंध्र प्रदेश जाकर उसके परिवार को इस बारे में जानकारी दी। उसने कोठा नंबर भी बता दिया। नौकरी के बजाय बेटी को कोठे पर बेचे जाने की खबर से संगीता का परिवार सदमे में रह गया।

उसकी मां और भाई दिल्ली आए। इस बीच शक हो जाने पर संगीता को दूसरे कोठे पर शिफ्ट कर दिया गया। संगीता का भाई कस्टमर बनकर कई कोठों में गया, लेकिन कई दिन तक कोशिश करने पर भी उसे अपनी बहन नहीं मिली। आखिरकार सोमवार को उसे कोठा नंबर 5211 में संगीता मिल गई।

बहन से बात करने के बाद भाई ने बाहर आकर अपनी मां को खबर दी। वह कमला मार्केट थाने गई। इसके बाद पुलिस ने संगीता को आजाद कराया। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है, लेकिन अभी मुलजिमों को गिरफ्तार नहीं किया गया है। गिरफ्तारी से पहले पुलिस कोर्ट में धारा 164 के तहत संगीता के बयान दर्ज कराना चाहती है। पुलिस ने संगीता को नारी निकेतन भेज दिया है।

100 महिलाओं को पकाकर खाना चाहता था पुलिस अधिकारी


कोई पुलिस ऑफिसर ऐसा प्लान बना सकता है, आप हैरत में पड़ जाएंगे! न्यू यॉर्क का एक पुलिस ऑफिसर लंबे समय से 100 महिलाओं को अवन में पकाकर खाने का प्लान बना रहा था। शुक्र है कि उसके मंसूबों का समय रहते पता चल गया। उसे शुक्रवार को अरेस्ट किया गया। ई-मेल्स ने उसका सारा भांडा फोड़ दिया। अमेरिका की फेडरल अथॉरिटीज ने जानकारी दी है।

पुलिस के मुताबिक न्यू यॉर्क पुलिस में तैनात जियबैर्तो वाल्ले एक शख्स से महिलाओं की किडनैपिंग कर उनके अंगों को पकाकर खाने की प्लैनिंग कर रहा था। योजना क्लोरोफॉर्म के जरिए महिलाओं को बेहोश करने और फिर वाल्ले के 28 साल पुराने किचन में लाकर उन्हें पकाने की थी। उसने वहां बड़ा सा अवन भी रखा भी था। दोनों चर्चा कर रहे थे कि अगर किसी महिला के पैर फोल्ड कर दिए जाएं तो अवन में वह पूरी तरह से समा जाएगी। इसके अलावा, ओपन फायर में धीमे-धीमे पकाए जाने के ऑप्शन पर भी वे चर्चा कर रहे थे।

बहरहाल, वाल्ले को गुरुवार रात गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन इस प्लैनिंग में शामिल दूसरे शख्स को नहीं पकड़ा गया क्योंकि उसकी शिनाख्त नहीं हो पाई। हालांकि, दोनों किसी महिला को अब तक नुकसान नहीं पहुंचा पाए।

एफबीआई की असिस्टेंट डायरेक्टर ने कहा कि यह ऐसा आरोप है जिसपर कॉमेंट करना बेहद मुश्किल है। आरोपी के खिलाफ की गई कंप्लेंट अपने आपमे सबकुछ बयान कर रही है। एफबीआई को सितंबर में वाल्ले के प्लान के बारे में पता चला। वाल्ले ने अपने होम कंप्यूटर से इस प्लान के बारे में कई महीनों तक इमेल्स और इंस्टैंट मैसेजेस के जरिए चर्चा की।

वाल्ले के कंप्यूटर से उन 100 महिलाओं का पूरा डेटाबेस मिला, जिन्हें वह अपना शिकार बनाने की योजना बना रहा था। डाटाबेस में नाम, फोटोग्राफ और पर्सनल डीटेल हर तरह का ब्यौरा था। वाल्ले ने इस डेटाबेस को तैयार करने के लिए गैरकानूनी तरीके से लॉ इंन्फोर्समेंट डेटाबेस का इस्तेमाल किया। कुछ पैसे देकर किडनैपिंग के लिए किसी एक और शख्स का इस्तेमाल करना भी उसकी योजना का हिस्सा था।
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मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती

मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है बिहार के किशनगंज जिले में .नेपाल बंगलादेश सीमा से बिलकुल सटे होने का खामियाजा जिले को उठाना पड़ रहा है जिले में चल रहे चकला घरो में जिन्दगिया बर्बाद हो रही है /नेपाल और बंगलादेश की लडकियो को जहा इन चकला घरो में धकेला जा रहा है वही जिले के ग्रामीण क्षेत्रो की लडकियो को भी बहला फुसला कर इन चकला घरो में गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर किया जा रहा है .सबसे कम साक्षरता दर वाले किशनगंज जिले में मानव तश्करी के जो आकडे सामने आये है वो बड़े ही चौकाने वाले है पिछले ६ महीने में ही दर्जनों लडकियो को बिकने से बचाया गया है कही पुलिस की तत्परता तो कही सामाजिक जागरूकता ने इन लडकियो की जिंदगियो को बर्बाद होने से बचा लिया लेकिन सब इतने भाग्यशाली नहीं है पिछले १० वर्षो में ग़ुम /लापता हुई लडकियो के आकडे(१०० से अधिक ) बेहद ही महत्व रखते है की किस तरह से सिमांचल का यह जिला बेटियो की खरीद फरोख्त का मुख्य केंद्र बन चूका है /रविया ,सोनी ,नुसरत ,फातिमा ,सीमा ,(काल्पनिक नाम )आदि कई ऐसी लडकिया है जो वर्षो से लापता है परिवार वाले ढूंढ़ – ढूंढ़ कर अंत में थक कर बैठ गए आखिर बेचारे करे तो क्या करे इन लडकियो के ग़ुम होने के पीछे कारण भी कोई और नहीं प्रेम की जाल में भोली भाली लडकियो को दलालों ने तो कही कही सगे सम्बंधियो ,पड़ोशियो ने ही कुछ रूपये की खातिर बेच डाला .उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक चकला घर से लौट कर आई एक लड़की को तो उसकी सगी नानी ने ही बेच डाला ऐसे दर्जनों मामले है जहा सौतेली माँ तो कही सौतेला बाप तो कही पति ने ही रूपये के खातिर जिंदगियो का सौदा कर डाला है जिले में दर्जनों चकला घर प्रसाशन और समाज सेवी संगठनों का मुह चिढाते दिख जायेंगे सहरी क्षेत्रो की तो बात जाने दे ग्रामीण क्षेत्रो में भी ये चकला घर मौजूद है जहा साम होते ही रंगीनिया अपने चरम पर होती है और इन रंगीनियो में बचपन को कुचलने का काम खुले आम होता है ऐसा नहीं है की इन चकला घरो के विरोध में स्वर नहीं उठे लेकिन हर उठने वाले स्वर को कुछ दिन बाद दबा देने का काम भी कर दिया जाता है तश्कारो का नेटवर्क इतना मजबूत और हमारा कानून इतना कमजोर है की इसका लाभ खुले आम तश्कारो द्वारा उठाया जाता है कुछ दिन की सजा काटने के बाद ये फिर से अपने धंधे में लग जाते है और एक नया शिकार ढूंढ़ते है /.क्या होता है बचाई गई लडकियो का ? जिन लडकियो को चकला घरो से बचाया जाता है या बच निकलती है उनके लिए सरकार द्वारा अभी तक वैसी कोई कल्याण कारी योजना नहीं बनाई गई है जिससे की उनका जीवन सुधर सके मात्र बचाई गई लडकियो को अल्प आवाश गृह में कुछ दिन के लिए रख दिया जाता है बाद में ये लडकिया यदि परिजनों ने स्वीकार किया तो अपने घर चली गई या फिर से चकला घर पहुचने को मजबूर हो जाती है यही इनकी नियति बन जाती है हलाकि कई गैर सरकारी संगठन माना तश्करी पर कार्य कर रही है लेकिन इनका काम कागजो पर ही सिमटा हुआ है ऐसे में जरुरत है की मानव तश्करी के पुरे नेटवर्क को जड़ से समाप्त किया जाये लोगो में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलया जाये जिससे की बचपन काल कोठरी में गुमनाम होने से बच सके .
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हम चाहें, तो रूकेंगे अपराध
 
हम आए दिन सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं सुनते रहते हैं, क्या इसके लिए हमारी नीतियां ही त्रुटिपूर्ण हैं? महिलाओं के सार्वजनिक स्थान पर खुलेआम उत्पीडित होने की घटनाएं अब अकसर होने लगी हैं। उत्पीड़न की इन अधिकांश घटनाओं के मूल में पब संस्कृति होती है और ये घटनाएं ऎसी जगहों पर होती हैं, जहां लोग फुरसत के क्षणों में मनोरंजन के लिए एकत्रित होते हैं।ज्यादातर ऎसी घटनाएं शाम के समय ही होती हैं। अब तो यह भी देखा जाने लगा है कि इन घटनाओं को लेकर लोगों का गुस्सा जब भड़कता है, तो लोग मूकदर्शक ही बने रहना ज्यादा श्रेयस्कर समझते हैं। इसमें दखल देने की न तो कोई चिंता करता है और न ही कोई परवाह करता है। हालांकि कुछ लोगों के लिए ऎसी घटनाएं एक अवसर की तरह होती हैं कि उन्होंने विरोध-प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी निभाई।

सोशल नेटवर्किग साइट्स पर ये मामले विषाणु की तरह फैल जाते हैं। मीडिया उन्हें उछालता है। टीवी चैनलों पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो जाता है। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि पुलिस हमेशा की तरह या तो देरी से पहुंचती है या चूक जाती है अथवा मामले के प्रति ढिलाई बरत देती है। मैंने कई फोरम पर इस संदर्भ में विचार-विमर्श में भाग लिया है, अपने विचार साझा किए हैं। जागरूक नागरिकों के अधिकारों को लेकर कुछ सुझाव यहां पेश कर रही हूं।

हमें यह भलीभांति मालूम है कि पुलिस का पहला कत्तüव्य अपराध रोकना है, इसके लिए उसे व्यवस्थित रूप से घरेलू स्तर पर काम करना चाहिए, खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि पुलिस के पास जो भी संसाधन मौजूद हैं, चाहे वह पुलिस बल हो या पुलिस नियंत्रण कक्ष की गाडियां, मोटरसाइकिल, स्वयंसेवी कार्यकर्ता, होमगार्ड, नागरिक सुरक्षा के लोग, वायरलैस सैट्स, कैमरा आदि, वे सब इस हालात में होने चाहिए कि जहां भी गुंडागर्दी या असामाजिक तत्वों के जमावड़े का अनुमान हो, उन्हें तुरंत ही वहां तैनात कर दिया जाए। अपराध रोकने के लिए शाम के समय पब के बाहर अथवा लड़कियों के कॉलेज की जब छुट्टी होती है, तब पुलिस पेट्रोल वाहन को खड़ा कर दिया जाए। इसका असर यह होगा कि तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित होगी।

क्षेत्र के लोगों को एकजुट होकर इसकी मांग करना चाहिए। सड़कों पर दुराचरण अथवा हमले की जो घटनाएं होती हैं, विशेषकर महिलाओं के विरूद्ध, तो ऎसी घटनाएं होने की ज्यादातर वजह पुलिस का सही समय पर नहीं पहुंचना अथवा उसकी प्रभावी मौजूदगी न होना ही होती है। ऎसे स्थानों पर पुलिस की तैनाती अत्यंत जरूरी है। काफी बुद्धिमानी और समझदारी से पुलिस की समयबद्ध तैनाती आवश्यक है और यह प्रशासन का कर्तव्य भी है। जनता को भी स्वयंसेवक के रूप में निगरानी के लिए आगे आना होगा।

जरूरी यह भी है कि पुलिस का साथ देने के लिए वे रिकॉर्डिग कैमरा भी रखें, ताकि उनका सबूत के तौर इस्तेमाल हो सके। पुलिस के पास जो संसाधन हैं, वह काफी कम हैं। इस वजह से भी अपराध रोकने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका है। असामाजिक तत्व इस कमी को जानते हैं। लिहाजा वे अपराध भी इसलिए कर देते हैं कि उन्हें दंड का भय नहीं होता। उन्हें यह अच्छी तरह मालूम होता है कि पुलिस के पास साधन नहीं है। पुलिस के काम करने का अपना तरीका है, जो ज्यादा प्रभावशाली होता नहीं दिखता।

पुलिस जांच कार्य को भी (बिना लिए या कुछ लेकर) टाल जाती है। इस निरंतरता में होता यह है कि अवांछनीय तत्वों का गुट अपनी मौजूदगी को बढ़ाता रहता है। लोग भी उनके खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत इसलिए नहीं दिखाते कि अपराधी तत्व उनसे बदला ले लेंगे। लोगों को बिना हिचक पुलिस नियंत्रण कक्ष के 100 नंबर पर शिकायत दर्ज कराना चाहिए। ई-मेल करना चाहिए और इन सबका रिकॉर्ड भी रखना चाहिए।

अगर कोई शिकायत दर्ज नहीं कराता है, तो आपराधिक तत्वों के हौसले बढ़ते जाएंगे और लोग भय में ही जीने को मजबूर होंगे। हमारे प्रावधान ही ऎसे हैं कि मीडिया अथवा जन दबाव के चलते जब भी कोई पकड़ा जाता है, तो उसे जमानत मिल जाती है। उनमें से कुछ फिर वही काम करने को उतारू हो जाते हैं। ऎसे लोग गवाहों और शिकायतकर्ताओं को डराते-धमकाते हैं, महंगे वकीलों को खड़ा कर लेते हैं और लड़की अथवा उसके परिवार के चरित्र पर लाछंन लगाना शुरू कर देते हैं। ट्रायल की प्रक्रिया अंतहीन चलती है। लोगों को हिचक त्यागकर बहादुरी से ऎसे पीडित लोगों का साथ देना चाहिए। यह संदेश दूर तक फैलेगा और दुराचारी फिर ऎसा काम कभी नहीं करेंगे।

मुकदमे के नाकाम रहने पर पुलिस लोगों को कठघरे में खड़ा करती है और लोग पुलिस को। पुलिस अदालतों पर आरोप लगाती है और अदालत पुलिस पर। और होता यह है कि महिला उत्पीड़न की घटनाएं जारी रहती हैं। असुरक्षा के हालात उत्पन्न होते हैं एवं कानून-व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर होती जाती है। समाज के लिए जरूरी है कि वह मजबूत सामुदायिक पुलिस की मांग करे। इसका अर्थ यह है कि जमीन पर ज्यादा पुलिस बल हो। पुलिसकर्मी आम आदमी के लिए पेट्रोलिंग करें न कि वीआईपी सुरक्षा में तैनात रहें।

उन्हें जनता के बीच जाकर जानकारियां एकत्रित करना चाहिए। जो अपराधी रह चुके हैं, उनकी गतिविधियों पर निगाह रखें। इसके अलावा समुदाय के लोग यह भी मांग करें कि पुलिस अधिकारी नागरिकों, व्यापारियों, निजी सुरक्षा कंपनियों समेत अन्य समाजसेवी संस्थाओं के साथ बैठक करें। ऎसा होने से पुलिस को जानकारी हासिल करने, विश्वास बहाली के उपायों में मदद मिलेगी। पुलिस और जनता के बीच संवाद बढ़ने से पुलिस को व्यवस्थित कार्य करने में प्रोत्साहन मिलेगा। यह सब तभी संभव है, जब लोग खुद को संगठित करें, अपने अधिकार जानें और "समझदार-सामुदायिक पुलिस" के लिए खुद दृढ़तापूर्वक डटे रहें।
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पहले लड़की को छेड़ा, फिर ट्रेन से फेंका
अभी गुवाहाटी में लड़की के साथ हुई छेड़छाड़ का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि एक और लड़की के साथ इसी तरह की घटना हो गई। इस बार तो छेड़छाड़ करने वाले युवकों ने उसे जान से मारना भी चाहा। मामला कर्नाटक के मदुर का है। मिली जानकारी के अनुसार पेशे से लेडीज टेलर 19 वर्षीया युवती यशवंतपुर-मैसूर एक्सप्रेस ट्रेन से अपने घर मैसूर जा रही थी, जब ट्रेन शिम्शा नदी के पास पहुंची तो उसी समय कुछ मनचले युवती की बोगी में आए और पहले उस पर भद्दी फब्तियां कसीं। उसके बाद उन लोगों ने उसके साथ शारीरिक रूप से छेड़छाड़ शुरू की, युवती पहले तो चुप रही, लेकिन जब लड़के हद से ज्यादा बढ़ने लगे तो लड़की ने उनका विरोध किया।

मगर, विरोध करके भी लड़की बच नहीं सकी। ट्रेन के बाकी यात्रियों से उसे कोई सपोर्ट नहीं मिला। लड़की के विरोध करने पर लड़के और भड़क गए। उन्होंने युवती को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। वह गंभीर रूप से घायल हो गई है। उसकी कमर, पैर और सिर के पिछले हिस्से में गंभीर चोटें आई हैं।

हॉस्पिटल में युवती ने बताया कि चार युवकों ने इस घटना को अंजाम दिया। उसने जब उन लोगों से यह कहा कि वह इसकी शिकायत पुलिस से करेगी तो उन्होंने उसे लातों से मारते हुए चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया।
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उत्पीड़न के खिलाफ
 
महिलाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने, छेड़खानी, यौन हिंसा आदि के खिलाफ कड़े कानून हैं। मगर उनका अपेक्षित असर नजर नहीं आता। इसलिए सरकार ने उचित ही इन कानूनों को अधिक कड़ा बनाने का फैसला किया है। अच्छी बात है कि इस क्रम में महिलाओं पर तेजाबी हमले के खिलाफ भारी जुर्माने और कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। इस मामले में अभी तक कोई स्पष्ट कानून नहीं था। यही वजह है कि तेजाब फेंक कर किसी महिला को अपंग कर देने या जान से मार डालने वालों को सजा दिला पाना कठिन बना हुआ था। पिछले कुछ सालों में तेजाब से महिलाओं के चेहरे विकृत करने की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। इसे देखते हुए पिछले साल फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों से तेजाब की खुलेआम बिक्री पर रोक लगाने को कहा था। मगर अभी तक इस दिशा में कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाया जा सका है। हालांकि भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और दंड प्रक्रिया संहिता की महिला उत्पीड़न संबंधी धाराओं में बदलाव से ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने में मदद मिलने की उम्मीद जगी है। तेजाबी हमले के पीछे ज्यादातर घटनाओं में महिलाओं से व्यक्तिगत रंजिश देखी गई है। इसलिए दोषी की पहचान करना मुश्किल नहीं होता। मगर स्पष्ट कानूनी प्रावधान न होने के कारण उन्हें उचित न्याय नहीं मिल पाता। यही कारण है कि लंबे समय से इसके लिए विशेष कानून बनाने की मांग उठती रही है। कर्नाटक में एक नागरिक समूह लगातार तेजाबी हमले के विरोध में आंदोलन चलाता और सरकार पर इसके खिलाफ कानून बनाने का दबाव बनाता रहा है।
छेड़खानी, यौन हिंसा, तेजाबी हमले जैसी घटनाएं मानसिक विकृति की उपज हैं। तमाम सख्ती, सक्रियता और महिलाओं में जागरूकता के बावजूद इनमें कोई कमी नहीं आ रही तो इसकी एक बड़ी वजह कानून की कमजोर कड़ियां और उन पर अमल कराने वाले तंत्र की लापरवाही या दकियानूस मानसिकता है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर कई बार पुलिस की तरफ से बयान आ चुके हैं कि इसके लिए महिलाओं के परिधान ज्यादा जिम्मेदार हैं। हकीकत यह है कि महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के साठ फीसद से ऊपर मामलों की प्राथमिकी दर्ज नहीं हो पाती। इसकी एक वजह तो लोगों की मामले को तूल न देने या नाहक बदनामी से बचने की कोशिश होती है, मगर बहुत सारे मामलों में पुलिस अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाती। जिन मामलों में प्राथमिकी दर्ज होती भी है उनमें जांच और तथ्य जुटाने आदि को लेकर पुलिस की शिथिलता के चलते ज्यादातर दोषियों को सजा नहीं मिल पाती। इसके मद्देनजर यौन हिंसा से जुड़े मामलों की छानबीन महिला अधिकारियों से कराने और उनकी सुनवाई विशेष अदालतों में करने का नियम बनाया गया। फिर भी उल्लेखनीय नतीजे नहीं आ पाए हैं। ऐसे में संशोधित कानूनों में भारी जुर्माने और दंड के कड़े प्रावधान होने के बावजूद यह चुनौती खत्म नहीं हुई है। यौन उत्पीड़न का महिलाओं की मानसिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है, छिपा नहीं है। तेजाबी हमले की वजह से कई महिलाओं को जान तक गंवानी पड़ी है। जो बच जाती हैं उन्हें आजीवन हीनताबोध में जीते देखा जाता है। ऐसी घटनाओं पर काबू पाना सामाजिक चुनौती तो है ही, उन पहलुओं पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है जिनके चलते दोषियों का मनोबल तोड़ने में मदद नहीं मिल पाती। इसके लिए पुलिस के कामकाज के तरीके को सुधारने और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक तेजाब आदि की बिक्री पर कड़ी निगरानी रखने की जरूरत है।
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पंचायत ने नाबालिग से रेप की कीमत एक लाख लगाई
 
शर्मसार कर देने वाली एक घटना में एक नाबालिग लड़की सुमन (बदला हुआ नाम) से गांव के एक अधेड़ आदमी पन्ना लाल ने कई बार रेप किया। जब सुमन प्रेगनेंट हो गई तो पंचायत ने पन्ना लाल से 1 लाख रुपए दिलवाकर मामले को रफा-दफा करना चाहा। लड़की के पिता ने पुलिस केस किया तो आरोपी फरार हो गया।14 साल की सुमन की मां बचपन में ही गुजर गई थी। पिता कमाने के लिए दिल्ली चले गए। सुमन गांव में अपने बाबा के साथ रहती थी। जब सुमन का पेट बढ़ने लगा तो इस मामले का खुलासा हुआ। सुमन ने गांव की महिलाओं को पूरा मामला बताया।

सुमन के पड़ोस में 45 साल का पन्ना लाल अपने परिवार के साथ रहता है। पन्ना अक्सर उसे बुलाकर खाने-पीने की चीज देता था। सुमन ने बताया कि 6 महीने पहले पन्ना लाल ने उसके साथ रेप किया और यह बात किसी से न कहने की धमकी भी दी। उसके बाद से लगातार वह उसके साथ रेप करता रहा।

मामले का खुलासा हुआ तो सुमन के बाबा पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने गांव में ही मामला निपटाने की सलाह दी। गांव में पंचायत ने पन्ना लाल को एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई। इसके लिए पन्ना लाल भी तैयार हो गया लेकिन तभी सुमन के पिता मौके पर पहुंच गए। पंचायत का फैसला न मानते हुए वह थाने गए। गोला पुलिस ने पन्ना लाल के खिलाफ रेप का केस दर्ज कर लिया। केस दर्ज होने के साथ ही आरोपी गांव से भाग निकला।
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मां की गवाही से बेटे को उम्रकैद
सुप्रीम कोर्ट ने एक मां की गवाही पर पश्चिम बंगाल में पड़ोसी की बेटी से दुष्कर्म के बाद हत्या करने के जुर्म में उसके बेटे की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है। न्यायालय ने आरोपी की दलील ठुकराते हुए कहा है कि कोई भी मां अपने बेटे को इतने जघन्य अपराध में नहीं फंसा सकती है।

कोर्ट ने काशीनाथ मंडल की इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि दुष्कर्म और हत्या की वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और इस्तगासा का मामला सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है लेकिन यह भी सच है कि अपीलकर्ता की मां ने ही अदालत में गवाही दी है। काशीनाथ मंडल ने 30 अक्तूबर, 1997 को हुगली जिले में अपने पड़ोसी की बेटी से दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी थी। सत्र अदालत ने इस मामले में अभियुक्त को उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
 
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"गोद में बैठने पर ही पढ़ाएंगे पाठ"

बेंगलूरू। एक स्कू ल के अध्यापक ने बेशर्मी की हदें पार करते हुए छात्राओं से कहा कि उसकी गोद में आकर बैठने पर ही वह आगे पढ़ाई करवाएगा।

संगामेश्वर विद्या केन्द्र में हिन्दी पढ़ा रहे शिक्षक एचजी बसावराज के खिलाफ शनिवार को छात्राओं के अभिभावकों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उसने छात्राओं से छेड़छाड़ करने की कोशिश की। शिकायत के मुताबिक बसावराज पहले दिन से छात्राओं से दुर्व्यवहार कर रहा था।
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बाप के सामने लड़की की इज्जत से खिलवाड़
 
उत्तर 24 परगना जिले के बारासात स्टेशन के नजदीक रात के अंधेरे में फिर एक लड़की मनचलों की बदसलूकी का शिकार हो गई। मौके पर बेटी की इज्जत बचाने गए पिता को भी मनचलों ने नहीं छोड़ा और जमकर पिटाई कर डालीा। इस घटना ने पिछले साल छात्र राजीव दास हत्याकाण्ड की यादें ताजा कर दी है। साथ ही बारासात पुलिस की तत्परता की पोल खोल दी है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार शुक्रवार रात लगभग 8 बजे बनमाली इलाके की किशोरी ट्यूशन पढ़ कर घर लौट रही थी कि स्टेशन के नजदीक कुछ मनचलों ने उस पर अश्लील टिप्पणी की। आपत्ति करने पर युवकों ने उसका पीछा किया। डरी-सहमी किशोरी ने पिता को फोन कर घटना की जानकारी दी। खबर मिलते ही पिता मौके पर पहुंचे। उन्होंने मनचलों का विरोध किया तो वो उन पर टूट पड़े। उनकी पिटाई कर दी। मनचलों की मनमानी देख स्थानीय लोग भड़क उठे। लोगों का गुस्सा देख मनचले भागने लगे। लोगों ने खदेड़ कर उनमें से एक रमेश दास को पकड़ लिया। उसकी जमकर पिटाई की फिर पुलिस के हवाले कर दिया।

रमेश से पूछताछ के बाद बारासात थाने की पुलिस ने वारदात में शामिल शुभंकर दास नामक और एक युवक को गिरफ्तार किया। पीडित किशोरी के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
तृणमूल विधायक ने जले पर नमक छिड़का

घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए स्थानीय तृणमूल विधायक चिरंजीत चक्रवर्ती ने कहा है कि इस तरह की वारदात के लिए कुछ हद तक लड़कियां भी जिम्मेदार हैं। हर रोज स्कर्ट छोटी हो रही है। ड्रेस की डिजाइन बदल रही है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की मेहरबानी पर फिल्म जगत से राजनीति में आए चिरंजीत ने कहा कि लड़कियों से छेड़छाड़ कोई नई घटना नहीं है। प्राचीन समय से ही इस तरह की घटना हो रही है।

यह मामूली घटना है। इस तरह की घटना नहीं होगी तो फिल्म कैसे चलेगी। फिल्म में खलनायक का होना जरूरी है। रामायण में रावण तो होगा न।
विधायक के इस बयान ने पीडित परिवार और बारासात के लोगों पर जले पर नमक छिड़कने जैसा काम किया है। पश्चिम बंगाल महिला आयोग की चेयरपर्सन सुनंदा मुखोपाध्याय समेत रा`य के अनेक बुद्धिजीवियों ने विधायक के इस बयान की कड़ी निंदा की है।

राजीव हत्या काण्ड एक नजर में

बारासात का रहने वाला राजीव दास 14 फरवरी 2011 की रात अपनी बहन को स्टेशन से लेकर घर जा रहा था। रास्ते में स्टेशन के नजदीक कुछ मनचलें राजीव के सामने उसकी बहन से बदसलूकी करने लगे थे। बहन की इज्`e6त बचाने के लिए राजीव ने उनका कड़ा विरोध किया। इससे गुस्सा कर मनचलों ने चाकू मार कर राजीव की हत्या कर दी थी।
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300 करोड़ के लिए बहन को बताया कॉलगर्ल
देशभर में रक्षा बंधन का त्योहार धूमधाम से मना। बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर रखी बांधी। वहीं अमरीका में रहने वाली कुसुम हरसोरा (52) ने गुरूवार का दिन अपने एक भाई प्रदीप (48) के खिलाफ शिकायत करने में गुजारा। कुसुम ने शिकायत की है कि प्रदीप ने अपने दोस्तों में एक एसएमएस भेजा है जिसमें कहा है कि उसकी बहन एक कॉलगर्ल है।

कुसुम और उनकी मां का आरोप है कि प्रदीप अपनी बहन को इसलिए प्रताडित कर रहा है
ताकि वह परिवार की 300 करोड़ रूपए की संपत्ति हड़प सके। कुसुम आर्किटेक्चर में आने से पहले एक व्यावसायिक एअरलाइन में पायलट थीं। यह पता लगने पर कि प्रदीप अपनी मां को भोजन व दवाएं नहीं दे रहा है कुसुम अमरीका से लौट आई। कुसुम महालक्ष्मी में रह रही हैं।

कुसुम ने कहा कि उसने खुले में आने का फैसला अपने भाई को पाठ पढ़ाने के लिए किया है। एक अखबार के अनुसार कुसुम यह पीड़ा पिछले दो साल से सह रही है। इस दौरान उसे वक्त बेवक्त करीब 40 कॉल आए। कुछ ने तो अपने सही नाम भी बताए। इनमें एक कॉलर तो एक पूर्व पुलिस अधिकारी का था।

एक पुलिस का रिटायर्ड एसीपी था। सभी कॉल सैक्स की बातें करने के लिए आते थे। वे मुझे हाई प्रोफाइल प्रोस्टीट्यूट समझ रहे थे। इस पर मैं कुछ कॉलर्स से मिली तो उन्होंने बताया कि उन्हें मेरा नंबर मेरे भाई से मिला।

जब मानसिक पीड़ा हद से गुजर गई तो कुसुम की मां ने प्रदीप के खिलाफ पुलिस में शिकायत की। कुसुम के अलावा विधवा पुष्पा के तीन बेटे हैं। पुष्पा ने अपनी शिकायत में कहा है कि प्रदीप ने उसे खाना व दवाएं देना बंद कर दिया है। प्रदीप को लगता है कि कुसुम संपत्ति में हिस्सा लेने यहां आ गई है इसलिए वह उसे प्रताडित कर रहा है। परिवार इससे पहले भी प्रदीप के खिलाफ शिकायत कर चुका है। वह कोर्ट भी जा चुका है।

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शराब पिलाकर स्कूली छात्राओं से दुष्कर्म
पश्चिम बंगाल के मालदह जिले के कालियाचक गांव के एक निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूल के आवासन में शुक्रवार की रात दवा की जगह शराब पिलाकर तीन छात्राओं से दुष्कर्म का सनसनीखेज मामला सामने आया है। पीडित छात्राओं ने आरोपी प्रधान शिक्षक नाजीव शेख के खिलाफ थाने में दुष्कर्म की शिकायत दर्ज कराई है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार नाजीव शेख विद्यालय के प्रधान शिक्षक और मालिक भी हैं। विद्यालय में मालदह, मुर्शिदाबाद, उत्तर तथा दक्षिण दिनाजपुर की छात्राएं पढ़ने के लिए आती हैं। पीडित तीनों छात्राएं हॉस्टल में रहती हैं। वे नौवीं कक्षा में पढ़ती है। शुक्रवार रात तबीयत खराब होने पर प्रधान शिक्षक ने तीनों को दवा की जगह शराब पिला दी।
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प्रेगनेंट प्रेमिका को ट्रेन से सुरंग में फेंका
 
प्रेम और विश्वास को कलंकित करने वाली एक घटना में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में एक युवक द्वारा अपनी पांच माह की गर्भवती प्रेमिका को चलती ट्रेन से सुरंग में फेंकने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। गंभीर रूप से घायल युवती को जमशेदपुर के टाटा मेन अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

रेलवे पुलिस ने आज बताया कि चक्रधरपुर से पड़ोसी राज्य ओडिशा के राउरकेला जाने वाली सारंडा पैसेंजर ट्रेन की एक बोगी से बुधराम सुंडी ने अपनी प्रेमिका नीलमणि सोय को रविवार को हावडा-मुंबई रेलमार्ग पर गोइलकेरा के पास एक रेलवे सुरंग में धोखे से धक्का देकर नीचे गिरा दिया और खुद बाद में किसी स्टेशन पर उतर कर फरार हो गया।

बुरी तरह घायल युवती को रेल पटरी का निरीक्षण कर रहे रेलकर्मियों ने पहले गोइलकेरा फिर चक्रधरपुर अस्पताल पहुंचाया। लेकिन स्थित गंभीर होने पर रात को उसे जमशेदपुर लाया गया। बताया जाता है कि चक्रधरपुर के सुरगुड़ा पंचायत के हुड़ांगदा गांव की रहने वाली नीलमणि का पास के गांव किशुनपुर निवासी बुधराम से तीन चार वर्ष से प्रेम प्रसंग था। कुछ माह पूर्व वह गर्भवती हो गई थी और बुधराम पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी।
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किडनैपर्स से नाबालिग लड़की को छुड़ाकर पुलिसवाले ने किया रेप
 
 सीतापुर में किडनैप की गई एक नाबालिग लड़की को सब-इंस्पेक्टर ने छुड़ा लिया। लेकिन उसे उसके परिजनों को सौंपने से पहले 5 दिन तक अपने पास रखा और एक चौकीदार के साथ मिलकर उसका रेप किया।
अप्रैल में किडनैप हुई लड़की के मामले में कई बार शिकायत करने पर भी पुलिस आंख मूंदे रही। पुलिस ने पिछले हफ्ते इस मामले में तब कार्रवाई की, जब इससे मिलते-जुलते एक मामले में हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए लखनऊ के पुलिस चीफ को तलब किया।

2 अप्रैल को रामेश्वर की 16 साल की बेटी सुनीता (सभी नाम बदले हुए) को रजनेश ने अपने साथियों के साथ मिलकर कि़नैप कर लिया। रामेश्वर ने उसी दिन लिखित शिकायत दी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद रामेश्वर सीनियर ऑफिसर्स के पास गए, जिन्होंने पिसवान पुलिस स्टेशन को केस दर्ज करने के लिए कहा। 8 अप्रैल को पिसवान पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

इसके बाद कोई कार्रवाई न होती देख कर रामेश्वर ने 3 जून को पुलिस स्टेशन के बाहर अपनी जान दे देने की धमकी दी। यह खबर जब स्थानीय मीडिया में आई तो सीनियर ऑफिसर्स ने पिसवान पुलिस से इस केस पर काम करने के लिए कहा। इसके बाद अप्रैल से लापता सुनीता को सब-इंस्पेक्टर (एसआई) राम प्रसाद प्रेमी ने 48 घंटों के भीतर खोज लिया।

रामेश्वर के मुताबिक 5 जून को गांव के चौकीदार ने उन्हें बताया कि सुनीता मिल गई है। वह चौकीदार के साथ उस गांव गए, जहां सुनीता उस वक्त थी। वहां से एसआई के साथ रामेश्वर, सुनीता, चौकीदार और कॉन्स्टेबल पिसवान पुलिस स्टेशन के लिए चले। रामेश्वर ने बताया कि रास्ते में उन्हें गाड़ी से उतार दिया गया और उन्हें खुद पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा गया।

अगले 5 दिन तक वह पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रहे लेकिन वहां पर उन्हें कोई कुछ बताता तो कोई कुछ और। एक बार फिर रामेश्वर ने जान देने की धमकी दी तो चौकीदार उनकी बेटी को घर ले आया। रामेश्वर ने कहा, 'घर आकर उसने उन जुल्मों की दास्तान सुनाई, जो पहले किडनैपर्स ने और बाद में एसआई और चौकीदार ने उस पर ढाए थे।'

तब से रामेश्वर न्याय की भीख मांग रहे हैं लेकिन किसी पर कोई असर नहीं पड़ रहा। रामेश्वर ने हमसे बताया, 'जब लखनऊ में ऐसी ही घटना घटी तो उन्होंने मुझे बुलाकर मेरा बयान ले लिया लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ। इस बार मैं पक्का अपनी जान दे दूंगा और सीतापुर पुलिस इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार होगी।'

इस बारे में जब सीओ मिश्रीख विजय त्रिपाठी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कुछ न जानने का नाटक किया।

इस मामले में सीतापुर पुलिस कटघरे में है क्योंकि लड़की के मिलने के बाद न तो उनका मेडिकल टेस्ट कराया गया और न ही उसे तुरंत घर भेजा गया।
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जीबी रोड से मां ने बेटी को कराया आजाद

रेड लाइट एरिया जी.बी. रोड के कोठे में कैद बेटी को उसकी मां ने पुलिस की मदद से आजाद कराया। बहन की तलाश में उसका भाई कस्टमर बनकर कई कोठों में गया। एक कोठे में उसने अपनी बहन को देखकर मां के माध्यम से पुलिस को खबर दिलवाई। कोठा चलाने वालों के खिलाफ देह व्यापार कराने, रेप, अपहरण आदि धाराओं में केस दर्ज किया गया है।अडिशनल पुलिस कमिश्नर (सेंट्रल) देवेश चंद्र श्रीवास्तव के मुताबिक आंध्र प्रदेश में रहने वाली बुजुर्ग महिला ने कमला मार्केट थाने में आकर एसएचओ प्रमोद जोशी को बताया कि उनकी बेटी संगीता (बदला नाम, 27 साल) जी. बी. रोड पर कोठा नंबर 5211 के फर्स्ट फ्लोर पर कैद कर रखी गई है।

पुलिस ने कोठे पर रेड डालकर संगीता को आजाद करा लिया। उसने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि उनका परिवार आंध्र प्रदेश में धान की बुवाई कर अपना भरण-पोषण करता है। पिछले महीने एक महिला उनके गांव में आकर संगीता के परिवार से मिली थी।उस महिला ने बताया था कि उसके दिल्ली में खासे संपर्क हैं और वह संगीता की नौकरी दिल्ली में लगवा देगी। उस पर भरोसा कर संगीता को उसके मां-बाप ने उसके साथ दिल्ली भेज दिया। वह औरत नौकरी लगवाने के बजाय उसे जी.बी. रोड पर ले आई। यहां कोठा चलाने वालों से 20 हजार रुपये लेकर उसने संगीता को बेच दिया।

संगीता से कोठा मालकिन जबरन देह व्यापार करा रही थी। संगीता के पास एक दिन आंध्र प्रदेश का कस्टमर आया। उसे तेलुगू बोलते सुनकर संगीता ने उसे अपनी हालत के बारे में उसके परिवार को खबर देने की गुहार लगाई। उस कस्टमर ने आंध्र प्रदेश जाकर उसके परिवार को इस बारे में जानकारी दी। उसने कोठा नंबर भी बता दिया। नौकरी के बजाय बेटी को कोठे पर बेचे जाने की खबर से संगीता का परिवार सदमे में रह गया।

उसकी मां और भाई दिल्ली आए। इस बीच शक हो जाने पर संगीता को दूसरे कोठे पर शिफ्ट कर दिया गया। संगीता का भाई कस्टमर बनकर कई कोठों में गया, लेकिन कई दिन तक कोशिश करने पर भी उसे अपनी बहन नहीं मिली। आखिरकार सोमवार को उसे कोठा नंबर 5211 में संगीता मिल गई।

बहन से बात करने के बाद भाई ने बाहर आकर अपनी मां को खबर दी। वह कमला मार्केट थाने गई। इसके बाद पुलिस ने संगीता को आजाद कराया। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है, लेकिन अभी मुलजिमों को गिरफ्तार नहीं किया गया है। गिरफ्तारी से पहले पुलिस कोर्ट में धारा 164 के तहत संगीता के बयान दर्ज कराना चाहती है। पुलिस ने संगीता को नारी निकेतन भेज दिया है।
 
 
 

 
 

 
 
 
 

MATRIMONIAL RELATION