महिलाओं द्वारा अपने ही जीवन का अंत करना या उनकी संदेहास्पद मौत एक दुखद घटना है लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जो ऐसे हालातों के लिए स्वयं महिला को ही दोषी ठहराते हैं. ऐसे लोगों का मत है कि अति महत्वकांक्षाओं और अपने हित साधने के चक्कर में महिलाएं सही-गलत जैसी बातों को नजरअंदाज कर देती हैं. अपनी असीम इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह सारी हदें पार कर जाती हैं. अपने भविष्य को सुधारने के लिए महिला यह कदम उठाती है लेकिन धीरे-धीरे वही कदम उसके लिए एक अभिशाप बनने लगता है. नाम और शोहरत पाने की लालसा में महिलाओं को लगता है कि वह अपने फायदे के लिए पुरुष का इस्तेमाल कर रही हैं लेकिन जब उपभोग करने के बाद महिला को दूध में से मक्खी की तरह बाहर फेंक दिया जाता है तब उसके पास अपने जीवन को समाप्त करने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचता. इस तरह के मामलों में महिलाओं को पीड़िता ना मानने वाले लोगों का कहना है कि आत्महत्या करने वाली या संदेहास्पद मृत्यु की शिकार हर महिला को पीड़िता की नजर से देखना और पुरुष को दोषी ठहराना नासमझी होगी.
वहीं दूसरी ओर महिलाओं हितों के साथ पूर्ण सहमति रखने वाले लोगों का कहना है कि कोई व्यक्ति अपनी खुशी से अपने ही जीवन का अंत नहीं करता. अगर कोई महिला ऐसा कदम उठाने के लिए विवश होती है तो हमें उसकी मनोदशा पर विचार करना चाहिए. महत्वाकांक्षा रखना या किसी से प्रेम करना किसी भी रूप में गलत नहीं है, बल्कि यह तो मनुष्य का अधिकार है कि वह अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रयासरत रहे. लेकिन पुरुष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु की समझा जाता है. यही वजह है कि उसे झूठे सपने दिखाकर, उसका मनचाहा शोषण करने के बाद उसे तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता है. हालातों का सामना ना कर पाने के कारण महिला अवसाद ग्रस्त हो जाती है और समाज के ताने उसे आत्महत्या करने के लिए विवश कर देते हैं. महिलाओं को पीड़िता की नजर से देखने वाले लोगों का मत है कि महिला के आत्महत्या करने या उनकी संदेहास्पद ढंग से मृत्यु के बाद अगर उन्हीं को ही अपराधी ठहरा दिया जाता है तो इससे विकृत पुरुष मानसिकता को और अधिक बल मिलेगा और आगे ना जाने कितनी ही भोली-भाली, मासूम महिलाएं शातिर पुरुषों की शिकार बनती रहेंगी.
उपरोक्त चर्चा और वर्तमान परिदृश्य पर विचार करने के बाद हमारे सामने निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:
1. क्या भविष्य को सुधारने के लिए महिलाओं का महत्वाकांक्षी होना उनके चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाता है?
2. क्या किसी महिला का पुरुष से प्रेम करना या उस पर विश्वास करना गलत है?
3. स्त्रियों के साथ होने वाली ज्यादतियों के लिए पुरुषों को ही अपराधी समझा जाता है लेकिन वर्तमान हालातों के अनुसार क्या हमें अपनी इस धारणा में बदलाव नहीं लाना चाहिए?
4. अगर प्रेम और विश्वास का नतीजा मौत है तो इसके लिए हमें किसे दोषी कहना चाहिए? तू बेचारी नहीं हमारा समाज बहुत आगे बढ़ रहा है. दुनिया में हर जगह विकास हो रहा है. अमेरिका हो या भारत या पाकिस्तान हो विकास का नाम आज हर जगह बड़े जोश के साथ लिया जा रहा है. पर हम कौन से विकास की बात कर रहे हैं जहां विकास को केवल पुरुष के नाम के साथ जोड़ा जा रहा है और महिलाओं का विकास बस नाम के लिए रह गया है. सोचिए जरा जब नौ साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया गया होगा और जब उस बच्ची के घर वालों को इन्साफ का इंतजार करते हुए उनके जीवन के 20 वर्ष बीत गए होंगे. सुनने में भी डर लगता है कि ना जाने कैसे उन लोगों ने वो 20 वर्ष बिताए होंगे. ऐसी एक घटना नहीं है जो महिलाओं के साथ घटी हो और भी ना जाने ऐसी कितनी घटनाएं होंगी जो आपके दिल को दहला देंगी. आपकी नजरों में किसी रिश्ते को तोड़ने की कीमत क्या होती होगी ज्यादा से ज्यादा दुख और निराशा में अपना पूरा जीवन बिता देना. पर अब आपको डर के साथ-साथ धक्का भी लगेगा क्योंकि एक महिला ने रिश्ता तोड़ने की कीमत में अपनी आंखें गंवाई हैं. जिस दिन उसने सोचा कि वो अपने पति के अत्याचार और नहीं सह सकती उस दिन उसने अपने पति से अलग होने का फैसला कर लिया. फिर क्या था उसे फैसला करने की सजा सुनाई गई और सजा में जीवन भर का अंधापन, पूरे शरीर पर तेजाब के दाग दिए गए. कभी किसी महिला ने तो अपने पति को रिश्ता तोड़ने की ऐसी सजा नहीं दी होगी. 'सवाल असभ्य का नहीं संस्कृति का है'क्या महिलाओं के विकास के बिना संपूर्ण विकास संभव है हम बात करते हैं कि विकास करना है और समाज को बदलना है पर 'क्या महिलाओं के विकास के बिना संपूर्ण विकास संभव है. नहीं विकास का अर्थ समाज में रहने वाले सभी वर्गो के विकास से संबंधित होता है. हम शायद यह सोचने लगे हैं कि महिलाओं का विकास से कोई नाता नहीं हैं पर यह सोचना गलत है क्योंकि महिलाएं भी समाज का ही एक हिस्सा हैं जिनके बिना विकास संभव नहीं है. सोचिए जब आपके शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द होता है या कोई हिस्सा खराब हो जाता है तो आप क्या अपने आपको पूर्ण रूप से स्वस्थ कहेंगे. इसी तरह वो समाज भी लंगड़ा है जहां महिलाएं विकास का हिस्सा नहीं हैं. मानसिक सोच छोटी है समाज के झूठे रक्षकों की पुरुष चाहे कितना भी कह ले कि हम तो चाहते हैं कि महिलाएं विकास करें पर महिलाओं को भी अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए. कुछ पुरुष कहते हैं कि महिलाएं केवल घर के काम के लिए होती हैं और सही रूप में उनकी जिम्मेदारी घर ही है. उन पुरुषों को समझना होगा कि महिलाओं के विकास का मतलब उन्हें केवल ऑफिस भेजना ही नहीं है. महिलाओं के विकास से मतलब उस विकास से है जहां वो अपनी बातों को खुलकर सामने रख सकें, जहां वो अपने लिए जरूरी फैसले ले सकें और उनकी जिन्दगी में उनका उतना ही हक हो जितना पुरूष का अपनी जिन्दगी पर होता है. क्या महिलाएं अपने लिए आवाज उठाना नहीं चाहतीं? अगर आज हर बात पर गहराई से चिंतन किया जाए तो सच सामने आता है जिसे जानने के बाद चिंतन और गहरा हो जाता है. कुछ पुरुष जो यह कहते हैं कि महिलाएं खुद के विकास से डरती हैं शायद यह बात कुछ हद तक सही हो सकती है पर सच तो यही है कि महिलाएं खुद के विकास से डरती नहीं हैं बल्कि उनके ऊपर उन्हीं पुरुषों का दबाव होता हैं जो समाज के रक्षक बनते हैं और महिलाओं को समाज के विकास की बाधा समझते हैं. संकल्प कीजिए कि "अब अपने फैसले मैं खुद लूंगी" क्या सही है क्या गलत है बचपन से ही आपको भी सिखाया गया है तो फिर आपके लिए फैसले लेने का हक किसी और को क्यों है? हां, किसी से राय लेना गलत नहीं है पर किसी पर अपनी राय थोप देना गलत है जो अकसर सिर्फ महिलाओं के साथ होता है और यह होता भी रहेगा जब तक महिलाएं अपने लिए आवाज उठाना शुरू नहीं करेंगी. महिलाओं को याद रखना होगा कि अपने लिए कदम खुद उठाए जाते हैं कोई भी आपके जीवन में बदलाव के लिए मदद नहीं कर सकता है. ------------------------- महिलाओं को पीछे प्रकृति ने महिला और पुरुष को एक-दूसरे के सहयोगी और पूरक के रूप में पेश किया है लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इन दो अनमोल कृतियों को हम हमेशा प्रतिस्पर्धा और भेदभाव जैसे मसलों में ही उलझा हुआ देखते हैं. निश्चित रूप से इसके पीछे महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमतर और दूसरे दर्जे का मानने जैसी प्रवृत्ति विद्यमान रही है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में महिला उत्थान और उन्हें समान अधिकार दिलवाने जैसी मुहिम में तेजी आई है लेकिन जमीनी स्तर पर महिलाओं के हालातों में आज भी हम बहुत अधिक परिमार्जन नहीं देख सकते क्योंकि आज के आधुनिक युग में भी महिलाओं को अपनी प्रॉपर्टी समझने वाले पुरुषों की कोई कमी नहीं है. समाज अभी भी पुरुष प्रधान है
देश हो या विदेश प्राय: सभी समाज अपने मौलिक रूप में पुरुष प्रधान रहे हैं जिसका खामियाजा हमेशा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है. यूं तो प्रारंभिक समय से ही महिलाओं को पुरुषों के अधीनस्थ रखने का प्रचलन रहा है लेकिन हाल ही की एक घटना इस परंपरा को और अधिक पुख्ता करते हुए यह प्रमाणित कर रही है कि भले ही समय बदल गया हो लेकिन मानव स्वभाव और नजरिया कभी परिवर्तित नहीं हो सकता.
महिलाएं खुद तय करें अपने कर्तव्य हां, यह बात जरूर है कि महिलाओं को भी अपने हितों की ओर ध्यान देने का पूरा अधिकार है लेकिन क्या अपने हितों को साधते हुए उनका अपने परिवार के प्रति उदासीन रवैया रखना उचित है? वैसे भी अधिकांश परिवारों में महिलाएं ही अपने बच्चों और पति की देखभाल करती हैं क्योंकि स्वाभाविक तौर पर ही पुरुषों को अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई हैव्यवहारिक रूप में अगर देखा जाए तो जिस प्रकार व्यक्ति का स्वभाव अलग-अलग होता है उसी प्रकार उसकी प्राथमिकताएं और जरूरतें भी अलग होती हैंबहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जो अपने व्यक्तिगत जीवन से ज्यादा परिवार और बच्चों को महत्व नहीं देतीं. वहीं कुछ का जीवन केवल अपने परिवार तक ही सीमित रहता है. निश्चित तौर पर यह व्यक्तिगत निर्णय है, जिसका पालन करने के लिए कोई डिक्शनरी या फरमान बाध्य नहीं कर सकते. |
ये उनसभी महिलावों को समर्पित है जो एक माँ हैं,बहन हैं,बीबी हैं,बेटी हैं,दोस्त हैं,प्रेमिका हैं,सहयोगी हैं तथा अन्य हैं।पुज्नीय हैं।जिस घर में महिला की इज्जत नहीं होती वो घर भी नहीं बचता,खान-दान का नाश हो जाता है । आज जो महिलावों पर अपनी मर्दानगी साबित कर रहें हैं तथा दहेज़ हत्या ,भ्रूण हत्या,बलात्कार,छेड़-छाड़ ,मारपीट तथा अन्य घृणित अपराध करते हैं वो असल में अपनी माँ के कोख को गाली देते हैं ।उनके खून में अवश्य कोई गन्दगी होगी। कब तक सहेंगी।कब तक ....
Saturday, October 27, 2012
महिलाओं के जीवन का दर्दनाक अंत
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