बच्चों के उत्पीड़न, यौन शोषण आदि को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती
रही है। ऐसे व्यवहारों के खिलाफ कड़े कानून हैं। पर बच्चों के खिलाफ होने
वाले अपराध कम होना तो दूर, उलटे और बढ़ रहे हैं। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम
क्रियान्वयन मंत्रालय की ओर से कराए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि
2009-10 की तुलना में इसके बाद के साल में ऐसे अपराधों में करीब चौबीस
फीसद की बढ़ोतरी हुई है। राज्यों में उत्तर प्रदेश का रिकार्ड सबसे खराब
है। देश के महानगरों में बच्चों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध दिल्ली में
दर्ज हुए हैं। अब तक के तमाम अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि हिंसा और
यौन उत्पीड़न का शिकार सबसे अधिक लड़कियां होती हैं। एक बार फिर इसकी
पुष्टि हुई है। बच्चों के यौन शोषण के बहुत सारे मामलों में उनके नजदीकी
रिश्तेदार शामिल होते हैं। दूसरी तरफ उन्हें यौन-व्यापार की अंधेरी
दुनिया में धकेलने वाले कई संगठित गिरोह सक्रिय हैं। ताजा अध्ययन में ऐसे
सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में पाए गए हैं।
पढ़ाई-लिखाई और तमाम जागरूकता अभियानों के बावजूद समाज में लड़के और
लड़कियों में भेदभाव खत्म नहीं हो पाया है। मगर समस्या लड़कों को लड़कियों
पर तरजीह देने की मानसिकता तक सीमित नहीं है। खासकर कमजोर तबकों के
बच्चों के प्रति समाज में संवेदनहीनता भी बढ़ रही है और उनकी असुरक्षा भी।
उनके लापता होने के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। पुलिस ऐसे मामलों का
संज्ञान लेने और उनकी तलाश करने में कभी तत्परता नहीं दिखाती। अब तक के
अध्ययनों से यही जाहिर होता है कि गुम होने वाले अधिकतर बच्चे बदहाल
परिवारों के होते हैं। मानव तस्करों के लिए ऐसे बच्चों के माता-पिता को
बहला-फुसला कर, रोजगार का प्रलोभन देकर रजामंद करना आसान होता है। चूंकि
बहुत सारे माता-पिताओं के लिए अपने बच्चों का पेट भरना मुश्किल है, इसलिए
वे सहज ही उन्हें शहरों में घरेलू नौकर या फिर दुकान-कारखाने आदि में काम
करने के लिए भेज देते हैं। मगर इन तस्करों के चंगुल में फंसने के बाद उन
बच्चों का निकलना आसान नहीं होता। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड
आदि के आदिवासी इलाकों से घरेलू काम के नाम पर शहरों में ले जाई गई
हजारों लड़कियां लापता हैं। इसी तरह महानगरों की मलिन बस्तियों से बच्चों
के गायब होने की घटनाएं आम हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक अकेले दिल्ली में रोज सौ से ऊपर बच्चे गायब हो जाते
हैं। पुलिस उन बच्चों को तलाशने में नाकाम रहती है। सरकारें इस बात से
अनजान नहीं हैं कि इस तरह गायब होने वाले बच्चों को भीख मांगने, बंधुआ
मजदूरी, वेश्यावृत्ति, अश्लील फिल्मों आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
यहां तक कि आतंकवादी संगठन भी ऐसे बच्चों को अपने मकसद के लिए इस्तेमाल
करने लगे हैं। यह सही है कि ऐसी घटनाओं के तार सीधे गरीबी से जुड़े हैं।
मगर देश की एक बड़ी आबादी का गरीब होना कोई नई स्थिति नहीं है। इसलिए
गरीबी का हवाला देकर मानव तस्करी समेत बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों
से कड़ाई से निपटने के तकाजे को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यों बच्चों के
मौलिक अधिकारों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र पर भारत ने भी
हस्ताक्षर किए हैं। देश में कुछ साल से बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी है।
पर उनके अधिकारों और उनके लिए बने कानूनों की कोई परवाह नहीं की जाती।
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भाई की बेटी को गोद लिया, रेप कर मार डाला
इंदौर में गोद ली गई 6 साल की बच्ची से रेप और इसके बाद पीट-पीटकर उसकी
निर्मम हत्या के आरोप में पुलिस ने इंदौर में उसके चाचा और चाची को
गिरफ्तार किया।
निर्मम हत्या के आरोप में पुलिस ने इंदौर में उसके चाचा और चाची को
गिरफ्तार किया।
इस घिनौनी घटना पर भड़के आस पड़ोस के लोगों ने आरोपियों के घर में घुसकर
जमकर तोड़ फोड़ की। गुस्साए लोगों ने मामले के दोषियों को सरेआम फांसी पर
लटकाए जाने की मांग के साथ सड़क पर चक्काजाम भी कर दिया।
जमकर तोड़ फोड़ की। गुस्साए लोगों ने मामले के दोषियों को सरेआम फांसी पर
लटकाए जाने की मांग के साथ सड़क पर चक्काजाम भी कर दिया।
जानकारी के अनुसार लसूडिया थाने की आवास विहार कॉलोनी में रहने वाले
राजेश सेंगर व उसकी पत्नी बेबी ने राजेश के भाई की बेटी शिवानी को करीब 6
महीने पहले ही गोद लिया था। 6 साल की शिवानी से गोद लेने के बाद से ही
राजेश मारपीट करता था। बुधवार की रात (26 सितंबर) को भी ऐसा ही कुछ हुआ
और उसे दीवार पर पटक कर मार डाला। पुलिस ने गुरुवार को पोस्टमार्टम कराया
तो शिवानी के साथ रेप होने का भी खुलासा हुआ है। राजेश व उसकी पत्नी के
खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। दोनों पर आईपीसी की
धारा 302 (हत्या), धारा 376 (रेप), धारा 377 (अनैचरल सेक्स) और अन्य
संबद्ध धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।
राजेश सेंगर व उसकी पत्नी बेबी ने राजेश के भाई की बेटी शिवानी को करीब 6
महीने पहले ही गोद लिया था। 6 साल की शिवानी से गोद लेने के बाद से ही
राजेश मारपीट करता था। बुधवार की रात (26 सितंबर) को भी ऐसा ही कुछ हुआ
और उसे दीवार पर पटक कर मार डाला। पुलिस ने गुरुवार को पोस्टमार्टम कराया
तो शिवानी के साथ रेप होने का भी खुलासा हुआ है। राजेश व उसकी पत्नी के
खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। दोनों पर आईपीसी की
धारा 302 (हत्या), धारा 376 (रेप), धारा 377 (अनैचरल सेक्स) और अन्य
संबद्ध धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।
शिवानी के असली माता-पिता उत्तर प्रदेश में रहते हैं। 6 साल पहले राजेश
और बेबी की शादी हुई थी, लेकिन बच्चा नहीं होने के कारण उन्होंने बच्ची
को गोद लिया था। पड़ोसियों के मुताबिक, दोनों बच्ची के साथ अक्सर मारपीट
करते थे और उसे फर्श पर सुलाते थे। बच्ची की चीख सुनकर बुधवार को राजेश
के पड़ोसियों ने पुलिस को मदद के लिए फोन किया। पड़ोसियों ने देखा कि
पति-पत्नी बच्ची को चादर में लपेटकर घर से बाहर ले जा रहे थे। पूछने पर
दोनों ने बताया कि बच्ची की तबियत ठीक नहीं है और उसे हॉस्पिटल लेकर जा
रहे हैं। बाद में पता चला कि उन्होंने बच्ची की हत्या कर दी गई है।
और बेबी की शादी हुई थी, लेकिन बच्चा नहीं होने के कारण उन्होंने बच्ची
को गोद लिया था। पड़ोसियों के मुताबिक, दोनों बच्ची के साथ अक्सर मारपीट
करते थे और उसे फर्श पर सुलाते थे। बच्ची की चीख सुनकर बुधवार को राजेश
के पड़ोसियों ने पुलिस को मदद के लिए फोन किया। पड़ोसियों ने देखा कि
पति-पत्नी बच्ची को चादर में लपेटकर घर से बाहर ले जा रहे थे। पूछने पर
दोनों ने बताया कि बच्ची की तबियत ठीक नहीं है और उसे हॉस्पिटल लेकर जा
रहे हैं। बाद में पता चला कि उन्होंने बच्ची की हत्या कर दी गई है।
शुक्रवार को गुस्साए लोगों ने राजेश के घर पर पहुंचकर जमकर तोड़फोड़ की
ओर सड़क पर जाम लगाकर गाड़ियों को निशाना बनाया। भीड पुलिस से मांग कर
रही थी कि आरोपी को उनके हवाले किया जाए। भीड़ ने राजेश को फांसी की सजा
देने की मांग की। पुलिस ने भीड़ को समझाने की कोशिश की और भीड़ को भरोसा
दिलाया है कि आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की कोशिश की जाएगी।
ओर सड़क पर जाम लगाकर गाड़ियों को निशाना बनाया। भीड पुलिस से मांग कर
रही थी कि आरोपी को उनके हवाले किया जाए। भीड़ ने राजेश को फांसी की सजा
देने की मांग की। पुलिस ने भीड़ को समझाने की कोशिश की और भीड़ को भरोसा
दिलाया है कि आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की कोशिश की जाएगी।
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रेप की शिकार बच्ची को अस्पतालों ने कटाए चक्कर
रेप का शिकार बनी 7 साल की एक बच्ची इलाज के लिए 5 घंटों तक हॉस्पिटलों
के चक्कर काटती रही, लेकिन किसी ने भी उसका इलाज करना मुनासिब नहीं समझा।
इलाज करने के कतरा रहे डॉक्टर उसे एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल भेजते
रहे।
के चक्कर काटती रही, लेकिन किसी ने भी उसका इलाज करना मुनासिब नहीं समझा।
इलाज करने के कतरा रहे डॉक्टर उसे एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल भेजते
रहे।
घटना गया के फतेहपुर की है, जहां पर 7 साल की एक बच्ची रेप का शिकार हुई।
परिजन आनन-फानन में बच्ची को इलाज के लिए शहर के जयप्रभा हॉस्पिटल ले गए,
लेकिन यहां की महिला डॉक्टर ने बच्ची का इलाज करने के बजाए उसे दूसरे
हॉस्पिटल में भेज दिया।
परिजन आनन-फानन में बच्ची को इलाज के लिए शहर के जयप्रभा हॉस्पिटल ले गए,
लेकिन यहां की महिला डॉक्टर ने बच्ची का इलाज करने के बजाए उसे दूसरे
हॉस्पिटल में भेज दिया।
डॉक्टर की सलाह पर जब बच्ची के परिजन उसे अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल
कॉलेज ले गए, तो वहां भी डॉक्टरों ने बच्ची का इलाज करने के बजाए उसे
वापस जयप्रभा हॉस्पिटल ले जाने को कहा। 7 साल की यह मासूम 5 घंटों तक
इलाज के लिए एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल का चक्कर काटती रही, लेकिन
डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा। एसएसपी विनय कुमार ने भी बच्ची को हॉस्पिटल
में भर्ती कराने के लिए सिविल सर्जन से बात करने की कोशिश की, लेकिन वह
फोन पर नहीं मिले। बाद में एसएसपी की कोशिशों से ही बच्ची को जयप्रभा
हॉस्पिटल में भर्ती किया जा सका। डॉक्टरों के इस लापरवाही भरे रवैये से
बच्ची की जान भी जा सकती थी।
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कॉलेज ले गए, तो वहां भी डॉक्टरों ने बच्ची का इलाज करने के बजाए उसे
वापस जयप्रभा हॉस्पिटल ले जाने को कहा। 7 साल की यह मासूम 5 घंटों तक
इलाज के लिए एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल का चक्कर काटती रही, लेकिन
डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा। एसएसपी विनय कुमार ने भी बच्ची को हॉस्पिटल
में भर्ती कराने के लिए सिविल सर्जन से बात करने की कोशिश की, लेकिन वह
फोन पर नहीं मिले। बाद में एसएसपी की कोशिशों से ही बच्ची को जयप्रभा
हॉस्पिटल में भर्ती किया जा सका। डॉक्टरों के इस लापरवाही भरे रवैये से
बच्ची की जान भी जा सकती थी।
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सरकारी बाल गृह में बच्चियों से रेप, चपरासी गिरफ्तार
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हॉस्टल में लड़कियों का शारीरिक शोषण
हॉस्टल में लड़कियों का शारीरिक शोषण
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में पिछले हफ्ते बाल सुधार गृह में
नाबिलग बçच्चयों के शोषण का मामला उजागर होने के बाद गुरूवार को कुशीनगर
के एक छात्रावास की छात्राओं के साथ शारीरिक शोषण का मामला सामने आया है।
कुशीनगर में समाज कल्याण विभाग द्वारा आश्रम पद्धति से संचालित स्कूल के
छात्रावास में रहने वाली छात्राओं ने दो कर्मचारियों पर शारीरिक शोषण का
आरोप लगाया है।
नाबिलग बçच्चयों के शोषण का मामला उजागर होने के बाद गुरूवार को कुशीनगर
के एक छात्रावास की छात्राओं के साथ शारीरिक शोषण का मामला सामने आया है।
कुशीनगर में समाज कल्याण विभाग द्वारा आश्रम पद्धति से संचालित स्कूल के
छात्रावास में रहने वाली छात्राओं ने दो कर्मचारियों पर शारीरिक शोषण का
आरोप लगाया है।
उधर, पुलिस ने शारीरिक शोषण और छेड़छाड़ का मामला दर्ज कर छात्रावास के
सुपरवाइजर ध्रुव नारायण गुप्ता और सफाई कर्मचारी राजेश चौरसिया को
गिरफ्तार कर लिया है। यह मामला तब सामने आया जब हॉस्टल में रहने वाली
छात्राओं ने स्थानीय डीएम रिग्जियान सैम्फिल को खत लिखकर इसकी जानकारी दी
थी।
सुपरवाइजर ध्रुव नारायण गुप्ता और सफाई कर्मचारी राजेश चौरसिया को
गिरफ्तार कर लिया है। यह मामला तब सामने आया जब हॉस्टल में रहने वाली
छात्राओं ने स्थानीय डीएम रिग्जियान सैम्फिल को खत लिखकर इसकी जानकारी दी
थी।
खत के अनुसार छात्राओं ने आरोप लगाया है कि कुशीनगर में समाज कल्याण
विभाग की निगरानी में चल रहे छात्रावास में रह रही छात्राओं के साथ
हॉस्टल के कर्मचारी शराब के नशे में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और उनका
शारीरिक शोषण करते हैं। इतना ही नहीं उन्हें बंधको की तरह रखा जाता है।
विभाग की निगरानी में चल रहे छात्रावास में रह रही छात्राओं के साथ
हॉस्टल के कर्मचारी शराब के नशे में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और उनका
शारीरिक शोषण करते हैं। इतना ही नहीं उन्हें बंधको की तरह रखा जाता है।
छात्राओं का आरोप है कि छात्रावास में चतुर्थ श्रेणी के दो कर्मचारी
लड़कियों को लगातार डरा-धमकाकर शारीरिक शोषण कर रहे हैं। लड़कियों को
डरा-धमकाकर चुप रखा जाता था। शिकायत करने पर छात्रावास से बाहर निकालने
की धमकी भी जाती थी। छात्राओं ने आरोप लगाया कि उन्हें मां-बाप से बात
नहीं करने दिया जाता था। छात्राओं का आरोप है कि स्कूल और छात्रावास के
अधिकारी भी उनकी शिकायतों को अनसुनी कर रहे थे। छात्रावास के अंदर
लड़कियों के साथ ये खेल लंबे समय से चल रहा था। बताया जा रहा है कि समाज
कल्याण अधिकारी भी छात्रावास के कैंपस में ही रहती हैं।
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बालिकाओं के प्रति यह कैसी सोच
लड़कियों को लगातार डरा-धमकाकर शारीरिक शोषण कर रहे हैं। लड़कियों को
डरा-धमकाकर चुप रखा जाता था। शिकायत करने पर छात्रावास से बाहर निकालने
की धमकी भी जाती थी। छात्राओं ने आरोप लगाया कि उन्हें मां-बाप से बात
नहीं करने दिया जाता था। छात्राओं का आरोप है कि स्कूल और छात्रावास के
अधिकारी भी उनकी शिकायतों को अनसुनी कर रहे थे। छात्रावास के अंदर
लड़कियों के साथ ये खेल लंबे समय से चल रहा था। बताया जा रहा है कि समाज
कल्याण अधिकारी भी छात्रावास के कैंपस में ही रहती हैं।
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बालिकाओं के प्रति यह कैसी सोच
कन्या शिशुओं की हत्या भारत के लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले कई
सालों में यह अपराध एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने
बालिका शिशु के लिए भारत को सबसे घातक देशों में रखा है। कन्या शिशु की
जन्म के एक वर्ष के भीतर या तो जहरीला पदार्थ खिलाकर मार डालते हैं अथवा
गर्भ में पल रहे भ्रूण के बालिका होने की जानकारी होने पर उसे गर्भ में
ही मार दिया जाता है। एक सास को जब पता चलता है की उसकी बहू के गर्भ में
पल रहा शिशु बालिका है तो वह बहू पर गर्भपात करने के लिए दबाव डालती है।
ऐसी घटनाएं न ही काल्पनिक हैं और न ही कभी-कभार घटने वाली घटनाएं हैं।
ऐसी घटनाएं आएदिन होती रहती हैं यह अलग बात है कि इस तरफ किसी का ध्यान
शायद ही कभी जाता है। इस तरह हम बालिका शिशु के जीने का अधिकार छीन रहे
हैं या तो उन्हें इस दुनिया का दर्शन करने के पहले ही मार दिया जाता है
और नहीं तो उन्हें जन्म के तुरंत बाद हमेशा के लिए सुला दिया जाता है। यह
एक क्रूर सच्चाई है कि बालिका शिशु को जीवित रहने का बुनियादी हक तक नहीं
है। मनुष्यों में विशेषकर भारतीयों में बेटों को वरीयता देने की एक
पुरानी और विसंगत परंपरा है। बेटे संपति हैं और बेटियां कर्ज। भारतीय
परंपरा में हम सिर्फ संपति चाहते हैं, कर्ज नहीं। यह कैसी क्रूर स्थिति
है जिसमें हम जी रहे हैं। आखिर बालिकाओं के प्रति यह घातक भेदभाव क्यों
है? क्या यह अज्ञानता के चलते है अथवा ऐसा लालची होने के कारण है। इसका
एक उत्तर पैसा है। हमारी परंपरा में बहुत सी बुराइयां हैं लड़कियों के
लिए लड़कों का चयन रुपये और धन के आधार पर किया जाता है। रुपया और धन
यानी दहेज ही सबसे बड़ा दुश्मन है जो हमारी बालिकाओं की हत्या के लिए
जिम्मेदार है।
सालों में यह अपराध एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने
बालिका शिशु के लिए भारत को सबसे घातक देशों में रखा है। कन्या शिशु की
जन्म के एक वर्ष के भीतर या तो जहरीला पदार्थ खिलाकर मार डालते हैं अथवा
गर्भ में पल रहे भ्रूण के बालिका होने की जानकारी होने पर उसे गर्भ में
ही मार दिया जाता है। एक सास को जब पता चलता है की उसकी बहू के गर्भ में
पल रहा शिशु बालिका है तो वह बहू पर गर्भपात करने के लिए दबाव डालती है।
ऐसी घटनाएं न ही काल्पनिक हैं और न ही कभी-कभार घटने वाली घटनाएं हैं।
ऐसी घटनाएं आएदिन होती रहती हैं यह अलग बात है कि इस तरफ किसी का ध्यान
शायद ही कभी जाता है। इस तरह हम बालिका शिशु के जीने का अधिकार छीन रहे
हैं या तो उन्हें इस दुनिया का दर्शन करने के पहले ही मार दिया जाता है
और नहीं तो उन्हें जन्म के तुरंत बाद हमेशा के लिए सुला दिया जाता है। यह
एक क्रूर सच्चाई है कि बालिका शिशु को जीवित रहने का बुनियादी हक तक नहीं
है। मनुष्यों में विशेषकर भारतीयों में बेटों को वरीयता देने की एक
पुरानी और विसंगत परंपरा है। बेटे संपति हैं और बेटियां कर्ज। भारतीय
परंपरा में हम सिर्फ संपति चाहते हैं, कर्ज नहीं। यह कैसी क्रूर स्थिति
है जिसमें हम जी रहे हैं। आखिर बालिकाओं के प्रति यह घातक भेदभाव क्यों
है? क्या यह अज्ञानता के चलते है अथवा ऐसा लालची होने के कारण है। इसका
एक उत्तर पैसा है। हमारी परंपरा में बहुत सी बुराइयां हैं लड़कियों के
लिए लड़कों का चयन रुपये और धन के आधार पर किया जाता है। रुपया और धन
यानी दहेज ही सबसे बड़ा दुश्मन है जो हमारी बालिकाओं की हत्या के लिए
जिम्मेदार है।
वर्तमान वैश्वीकरण के युग में भी लड़कियां माता पिता पर बोझ हैं, क्योंकि
उनके विवाह के लिए महंगा दहेज देना होता है। दहेज प्रणाली एक ऐसी
सांस्कृतिक परंपरा है जो सबसे बड़ा कारण है बालिकाओं की हत्या के लिए। हम
सिर्फ लड़के और लड़कों को ही वरीयता देते हैं। भारत में यह एक ऐसी
सांस्कृतिक परंपरा है जिसे कोई भी कानून शायद ही खत्म कर सके। वर्ष 1985
से लाखों बालिकाएं इस पवित्र भूमि से गायब हैं। इन आंकड़ों की सच्चाई
जानने के बाद भी हमारा दिल नहीं पिघलता। आखिर यह मौन क्यों है और क्या
हमारा दिल पत्थर हो गया है। शायद यह एक सच्चाई बन गया है। आखिर उन लाखों
लड़कियों की गलती क्या है और क्या उन्हें इस दुनिया में जीने का अधिकार
नहीं मिलना चाहिए। यह वह देश है जहां कभी एक महिला प्रधानमंत्री थी और आज
एक महिला राष्ट्रपति हंै और कुछ राज्यों में महिलाएं मुख्यमंत्री पद पर
आसीन हैं, लेकिन बावजूद इसके हमारे देश में महिलाएं उपेक्षित हैं। लड़कों
को वरीयता देने की पुरानी परंपरा बदस्तूर जारी है तथा जन्म के पहले शिशु
के लिंग का परिक्षण के कारण देश में लड़का-लड़की का अनुपात पूरी तरह
गड़बड़ा गया है। दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां लिंगानुपात एकदम
असंतुलित है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों में यह चौंकाने वाली बात
सामने आई है। 35 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में से 28 में लड़के
और लड़कियों के अनुपात में भारी अंतर है।
हरियाणा और पंजाब ऐसे जुड़वें राज्य हैं जहां बालिका शिशु को नफरत से
देखने की प्रवृत्ति एकदम ऊंचाई पर है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा
सकता है कि इस समृद्ध राज्य में आज 15 से 45 उम्र के 36 फीसदी लोग
अविवाहित ेंहैं। इसी के चलते इन दोनों राज्यों में अविवाहित पुरुषों के
आंकडे़ समाज के संतुलन को बिगाड़ रह हैं। पंजाब में आज भी लगातार हो रही
कन्या भ्रूण हत्या के चलते यह अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। दुर्भाग्य से
पंजाब में समृद्ध, शिक्षित और शहरी क्षेत्रों में रहने वालों की संख्या
काफी है। 2006 के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता
है कि पंजाब में आई समृद्धि ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में बहुत बड़ी
भूमिका निभाई है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2001 में जहां प्रति 1000
पुरुष की तुलना में 793 महिलाएं थीं वहीं वर्ष 2006 में यह घटकर 776 हो
गया। शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात घटकर 761 तक पहुंच गया है। सस्ते और
अनियंत्रित तकनीकी विकास के चलते कन्या भ्रूण की हत्या लगातार बढ़ रही
है। विशेष कर उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों में इसके चलते कुछ एक दिन पहले
पैदा हुई नवजात बालिकाओं को झाडि़यों, सार्वजनिक शौचालयों, बगीचों और
कचरे के डिब्बों में फेंक दिया जाता है। यह सब इसलिए है, क्योंकि कोई भी
बिना बेटे के नहीं रहना चाहता है। इससे जुड़ा कोई भी कानून इसे रोक पाने
में फिलहाल समर्थ नहीं दिख रहा। इस मामले में महाराष्ट्र भी पीछे नहीं
है। यहां भी वर्ष 1961 से लगातार महिलाओं का औसत घटा है। वर्ष 1962 में
जहां प्रति 1000 पुरुष के पीछे महज 936 महिलाएं थीं वहीं वर्ष 2001 में
922 तथा 2011 में 883 महिलाएं रह गई हैं। यह निम्नतम लिंगानुपात न सिर्फ
झोपड़-पट्टियों और कम आय वर्ग वालों के बीच है, बल्कि समृद्ध लोगों में
भी है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र और बीड़ जिले में सबसे कम
लिंगानुपात है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बीड़ जिले में तो शून्य से
6 वर्ष की आयु वाले बालक- बालिकाओं का लिंगानुपात 100 के मुकाबले 801 है
जो महाराष्ट्र में सर्वाधिक है। यही औसत पूरे राज्य में 1000 की तुलना
में 833 का है।
वर्तमान आंकड़ों के मुताबिक भारत में पुरुषों की तुलना में 40 लाख
महिलाएं कम हैं। यह अंतर लिंग परीक्षण का परिणाम है और प्रत्येक माह देश
भर में 50 हजार से अधिक कन्या भ्रूण का गर्भपात किया जाता है और न जाने
कितने ही लड़कियों की या तो हत्या कर दी जाती है अथवा उन्हें लावारिस
छोड़ दिया जाता है। कन्या भ्रूण के गर्भपात की बढ़ती दर का पता आंशिक रूप
से अल्ट्रासाउंड सेवा देने वाले क्लीनिक की बढ़ती संख्या से लगाया जा
सकता है। भारत में लिंग परीक्षण तथा लिंग के आधार पर होने वाला गर्भपात
दोनों ही अपराध है, लेकिन इस पर कानूनी कार्रवाई बहुत ही कम हो पाती है।
यह सिर्फ गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चियों पर ही मंडराता खतरा नहीं है,
बल्कि इसका असर अकेले पड़ते पुरुषों के विवाह की समस्या तक जा पहुंचा है।
इस वजह से कितने ही परिवार अपने बेटों के लिए ब्लैक मार्केट से दुल्हन
खरीदते हैं जो आगे चलकर मानव तस्करी को बढ़ावा देने का काम करते हैं।
हरियाणा में अल्ट्रासाउंड के जरिये शिशु के लिंग का पता लगाने का प्रचलन
जोरों पर है। यहां की सरकार इससे पूरी तरह वाकिफ भी है, लेकिन उसके प्रति
उदासीन है। हरियाणा में लड़की दुर्लभ और अवांछित चीज है। भारत के लगभग
सभी राज्यों में कुछ ऐसा ही हाल है। यह लड़कियों की जानबूझकर संख्या
घटाने का परिणाम है। आश्चर्य की बात यह है कि पंजाब के तमाम अनाथालयों
में 70 फीसदी से अधिक लड़कियां ऐसी हैं जो अपने परिवार द्वारा त्याग दी
गई हैं।
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खंडहर में छोड़ गए मासूम बेटी
खंडेला। वह मां-बाप थे...? या कोई और...? दो वर्ष की मासूम बेटी को साथ
लेकर आए। कुछ देर खंंडहर में बैठे। मासूम को पिटाई कर सुला दिया और बाद
में उठकर चले गए। मामला कस्बे के घाटेश्वर क्षेत्र का है। बच्ची की उम्र
लगभग दो वर्ष है। वह पिछले दो दिन से पड़ौसी के घर में हैं। उसके
घर-परिवार का अभी तक पता नहीं चल पाया है। क्षेत्र के लोगों ने बताया कि
गुरूवार दोपहर करीब एक बजे एक महिला और पुरूष बच्ची को लेकर घाटेश्वर के
खंडहर के बरामदे में बैठे थे।
लेकर आए। कुछ देर खंंडहर में बैठे। मासूम को पिटाई कर सुला दिया और बाद
में उठकर चले गए। मामला कस्बे के घाटेश्वर क्षेत्र का है। बच्ची की उम्र
लगभग दो वर्ष है। वह पिछले दो दिन से पड़ौसी के घर में हैं। उसके
घर-परिवार का अभी तक पता नहीं चल पाया है। क्षेत्र के लोगों ने बताया कि
गुरूवार दोपहर करीब एक बजे एक महिला और पुरूष बच्ची को लेकर घाटेश्वर के
खंडहर के बरामदे में बैठे थे।
वहां खेल रहे बच्चों ने उन्हें देखा। बाद में महिला और पुरूष वहां से
उठकर चले गए। कुछ समय बाद बच्ची रोते हुए बाहर आई तो वहां खेल रहे बच्चों
ने इसकी जानकारी अपने परिजनों को दी। पड़ोसी सुभाष वर्मा बच्ची को अपने
घर ले गया। सुभाष व उसके भाई रोहित ने बताया कि बच्ची के बारे में पुलिस
को सूचना कर दी गई है। पुलिस अभी तक वहां नहीं आई।
उठकर चले गए। कुछ समय बाद बच्ची रोते हुए बाहर आई तो वहां खेल रहे बच्चों
ने इसकी जानकारी अपने परिजनों को दी। पड़ोसी सुभाष वर्मा बच्ची को अपने
घर ले गया। सुभाष व उसके भाई रोहित ने बताया कि बच्ची के बारे में पुलिस
को सूचना कर दी गई है। पुलिस अभी तक वहां नहीं आई।
खंडहर की तरफ जाने से डरती है
सुभाष का परिवार बच्ची की अच्छी तरह देखरेख कर रहा है। लेकिन बच्ची को
खंडहर की तरफ ले जाने पर वह डरती है। उसके मुंह पर भी चोट के निशान थे।
ऎसे में माना जा रहा है उसे पिटाई कर सुलाया गया है। सुभाष के परिवार के
लोगों ने बताया कि बच्ची किसी भी मोटरसाइकिल सवार को देखते ही
पापा...पापा पुकारती है। लेकिन अभी तक उसे लेने के लिए कोई नहीं आया है।
सुभाष का परिवार बच्ची की अच्छी तरह देखरेख कर रहा है। लेकिन बच्ची को
खंडहर की तरफ ले जाने पर वह डरती है। उसके मुंह पर भी चोट के निशान थे।
ऎसे में माना जा रहा है उसे पिटाई कर सुलाया गया है। सुभाष के परिवार के
लोगों ने बताया कि बच्ची किसी भी मोटरसाइकिल सवार को देखते ही
पापा...पापा पुकारती है। लेकिन अभी तक उसे लेने के लिए कोई नहीं आया है।
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छात्राओं को दुराचार के बाद बेचने की कोशिश
बैतूल। मानव तस्करी के लिए चर्चित मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की
बालिग-नाबालिग लड़कियों को बहला फुसलाकर काम दिलाने के नाम पर उनके साथ
दुराचार एवं उन्हें बेचने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। ताजा मामला
हमलापुर क्षेत्र की दो नाबालिग छात्राओं को काम दिलवाने का झांसा देकर
सामूहिक दुराचार और बेचने की कोशिश करने का है।
बालिग-नाबालिग लड़कियों को बहला फुसलाकर काम दिलाने के नाम पर उनके साथ
दुराचार एवं उन्हें बेचने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। ताजा मामला
हमलापुर क्षेत्र की दो नाबालिग छात्राओं को काम दिलवाने का झांसा देकर
सामूहिक दुराचार और बेचने की कोशिश करने का है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार हमलापुर क्षेत्र निवासी कक्षा आठवीं एवं
सातवीं की दो नाबालिग छात्राओं को पवन नामक युवक ने बताया कि उसकी मौसी
झांसी में रहती है, उन्हें काम दिला सकती है। दोनों नाबालिग लड़कियां
परिजनों को बताए बगैर पवन के साथ चली गई। पवन दोनों लड़कियो को पहले
रतलाम फिर झांसी ले गया। जहां अज्ञात आरोपियों ने दोनों के साथ दुराचार
किया। पीडित लड़कियों के मुताबिक आरोपी उन्हें बेचने की बात कर रहे थे।
जिसके चलते लड़कियां आरोपियों को झांसा देकर ट्रेन से बैतूल आ गई।
सातवीं की दो नाबालिग छात्राओं को पवन नामक युवक ने बताया कि उसकी मौसी
झांसी में रहती है, उन्हें काम दिला सकती है। दोनों नाबालिग लड़कियां
परिजनों को बताए बगैर पवन के साथ चली गई। पवन दोनों लड़कियो को पहले
रतलाम फिर झांसी ले गया। जहां अज्ञात आरोपियों ने दोनों के साथ दुराचार
किया। पीडित लड़कियों के मुताबिक आरोपी उन्हें बेचने की बात कर रहे थे।
जिसके चलते लड़कियां आरोपियों को झांसा देकर ट्रेन से बैतूल आ गई।
पीडित लड़कियों ने शुक्रवार को अपने परिजनों के साथ गंज चौकी पहुंचकर
पुलिस को अपनी व्यथा सुनाई। लड़कियों के परिजनो ने छह जून को गंज पुलिस
चौकी में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वरिष्ठ पुलिस अफसरों के
निर्देश पर पीडित लड़कियों से महिला शाखा घटना के संबंध में विस्तृत
पूछताछ कर रही है। कोतवाली एवं गंज चौकी पुलिस द्वारा मामले को गंभीरता
से लेकर आरोपियों को दबोचने के प्रयास किए जा रहे है।
पुलिस को अपनी व्यथा सुनाई। लड़कियों के परिजनो ने छह जून को गंज पुलिस
चौकी में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वरिष्ठ पुलिस अफसरों के
निर्देश पर पीडित लड़कियों से महिला शाखा घटना के संबंध में विस्तृत
पूछताछ कर रही है। कोतवाली एवं गंज चौकी पुलिस द्वारा मामले को गंभीरता
से लेकर आरोपियों को दबोचने के प्रयास किए जा रहे है।
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बेटे की चाह में बाप ने 3 महीने की बेटी को बेरहमी से पीटा
बेटे की चाह रखने वाले एक पिता ने अपनी 3 महीने की बेटी को दीवार पर पटक
दिया और उसे सिगरेट से कई जगह दाग दिया। जिंदगी और मौत के बीच झूल रही
आफरीन की स्थिति काफी गंभीर है और उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया है। इस
पिता को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इस घटना ने दिल्ली में कुछ दिन
पहले बेबी फलक के साथ जो कुछ हुआ था उसकी याद ताजा कर दी।
दिया और उसे सिगरेट से कई जगह दाग दिया। जिंदगी और मौत के बीच झूल रही
आफरीन की स्थिति काफी गंभीर है और उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया है। इस
पिता को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इस घटना ने दिल्ली में कुछ दिन
पहले बेबी फलक के साथ जो कुछ हुआ था उसकी याद ताजा कर दी।
पुलिस ने बताया कि उमर फारूख (25) बेंगलुरु के सेंट्रल जिले के शिवाजीनगर
इलाके में एक दुकान पर काम करता है। फारूख बेटे की चाह रखता था पर उसके
घऱ बेटी पैदा हुई। तभी से वह गुस्से में था। उसने गुरुवार को अपनी बेटी
का सिर दीवार पर पटक दिया। उसने उसको बेरहमी से पीटा। उसने आफरीन को जलती
सिगरेट से कई जगह दाग दिया। यह पहली बार नहीं है कि फारूख ने अपनी बेटी
को पीटा हो। उसने पिछले 3 महीने में 3 बार बेटी आफरीन को मारने की कोशिश
की थी।
इलाके में एक दुकान पर काम करता है। फारूख बेटे की चाह रखता था पर उसके
घऱ बेटी पैदा हुई। तभी से वह गुस्से में था। उसने गुरुवार को अपनी बेटी
का सिर दीवार पर पटक दिया। उसने उसको बेरहमी से पीटा। उसने आफरीन को जलती
सिगरेट से कई जगह दाग दिया। यह पहली बार नहीं है कि फारूख ने अपनी बेटी
को पीटा हो। उसने पिछले 3 महीने में 3 बार बेटी आफरीन को मारने की कोशिश
की थी।
पुलिस के मुताबिक, फारूख की पत्नी रेशमा ने पुलिस से शिकायत की थी कि वह
अपनी 3 महीने की बेटी को मार डालना चाहता है। रेशमा ने इस बारे में अपने
माता-पिता और ससुराल वालों को भी बताया था।
अपनी 3 महीने की बेटी को मार डालना चाहता है। रेशमा ने इस बारे में अपने
माता-पिता और ससुराल वालों को भी बताया था।
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लड़की पैदा करने वाली को जिंदा जलाया
बहरामपुर (पश्चिम बंगाल)। पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद जिले के खरग्राम
में कथित रूप से लड़की को जन्म देने पर रविवार को एक महिला को जिंदा जला
दिया गया।
में कथित रूप से लड़की को जन्म देने पर रविवार को एक महिला को जिंदा जला
दिया गया।
पुलिस के अनुसार 25 साल की रूपाली बीबी को कथित रूप से उसके ससुराल वालों
व पति ने जला दिया। उसका जला हुआ शव घर में मिला। बीबी के परिवार वालों
ने पुलिस में मामला दर्ज कराया है। बीबी के घर वालों ने आरोप लगाया है कि
बीबी के एक के बाद दूसरी लड़की को जन्म देने पर जला कर मार डाला गया।
बीबी के ससुराल वाले घर से चले गए हैं।
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व पति ने जला दिया। उसका जला हुआ शव घर में मिला। बीबी के परिवार वालों
ने पुलिस में मामला दर्ज कराया है। बीबी के घर वालों ने आरोप लगाया है कि
बीबी के एक के बाद दूसरी लड़की को जन्म देने पर जला कर मार डाला गया।
बीबी के ससुराल वाले घर से चले गए हैं।
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बेटी पैदा होने के डर से पत्नी को मार डाला
दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल)। चौथी लड़की के जन्म की आशंका से डरे हुए एक
शख्स ने शुक्रवार को अपनी गर्भवती पत्नी और तीन बेटियों को जहर दे दिया।
पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले की इस घटना से नाराज स्थानीय लोगों ने उस
शख्स को बुरी तरह से पीटा, जिससे उसकी भी मौत हो गई।
शख्स ने शुक्रवार को अपनी गर्भवती पत्नी और तीन बेटियों को जहर दे दिया।
पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले की इस घटना से नाराज स्थानीय लोगों ने उस
शख्स को बुरी तरह से पीटा, जिससे उसकी भी मौत हो गई।
पुलिस के मुताबिक, बर्दवान जिले में दुर्गापुर के नजदीक जेमुया गांव के
बरकत अली की बीवी को सात महीने का गर्भ था। एक पड़ोसी के मुताबिक, बरकत
तीन बेटियों को जन्म देने की वजह से पत्नी से मारपीट करता था और चौथी
संतान के रूप में बेटी को जन्म देने पर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने
की धमकी देता था।
बरकत अली की बीवी को सात महीने का गर्भ था। एक पड़ोसी के मुताबिक, बरकत
तीन बेटियों को जन्म देने की वजह से पत्नी से मारपीट करता था और चौथी
संतान के रूप में बेटी को जन्म देने पर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने
की धमकी देता था।
पड़ोसी ने बताया कि अली ने बीवी व बेटियों को जहर देने के बाद खुद भी जहर
खा लिया पर उसकी मौत नहीं हुई थी। गुस्साए ग्रामीणों ने अली को बुरी तरह
पीटा, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं। बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
खा लिया पर उसकी मौत नहीं हुई थी। गुस्साए ग्रामीणों ने अली को बुरी तरह
पीटा, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं। बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
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एक ऐसा गांव जहां बेटियां ही नहीं
कन्या भ्रूण हत्या न रुकी तो भविष्य भयावह होगा यह तो हम सभी जानते हैं।
मगर लड़कियों की कमी के कारण देश के कई क्षेत्रों में उस भयावह भविष्य के
संकेत अभी से दिखने लगे हैं।
मगर लड़कियों की कमी के कारण देश के कई क्षेत्रों में उस भयावह भविष्य के
संकेत अभी से दिखने लगे हैं।
आंध्रप्रदेश के पुसुकुंटा गांव में शादी के सपने देखते-देखते कई लोग
बूढ़े हो गये लेकिन दुल्हा बनने का अरमान पूरा नहीं हुआ। इनका मानना है
कि लड़कियों का जन्म नहीं होना इस गांव के लिए श्राप है।
बूढ़े हो गये लेकिन दुल्हा बनने का अरमान पूरा नहीं हुआ। इनका मानना है
कि लड़कियों का जन्म नहीं होना इस गांव के लिए श्राप है।
जाति को बचाए रखने का संकट
पुसुकुंटा गांव में कोंड रेड्डी जाति के आदिवासी निवास करते हैं। इस पूरे
गांव या कहें तो उनकी पूरी बिरादरी में किसी भी घर में बेटियां नहीं है।
इसलिए लोगों की शादी नहीं हो पा रही है।
पुसुकुंटा गांव में कोंड रेड्डी जाति के आदिवासी निवास करते हैं। इस पूरे
गांव या कहें तो उनकी पूरी बिरादरी में किसी भी घर में बेटियां नहीं है।
इसलिए लोगों की शादी नहीं हो पा रही है।
गांव में सिर्फ तीन विवाहित जोड़े हैं मगर उनके घर भी लड़कियां पैदा नहीं
हुई। इसलिए इन आदिवासियों के सामने अपनी जाति को बचाये रखने का संकट बना
हुआ है। इनका कहना है कि किसी की शादी ही नहीं होगी तो बच्चे नहीं होंगे
और धीरे-धीरे इनका वजूद समाप्त हो जाएगा।
हुई। इसलिए इन आदिवासियों के सामने अपनी जाति को बचाये रखने का संकट बना
हुआ है। इनका कहना है कि किसी की शादी ही नहीं होगी तो बच्चे नहीं होंगे
और धीरे-धीरे इनका वजूद समाप्त हो जाएगा।
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