आज सुपर मॉम सरीखा फैशनेबल शब्द औरतों को कैसे नए तरह से गुलाम बना रहा है, ये वही समझ रही हैं।
वह घर में होती है तो दफ्तर के छूटे हुए काम याद आते हैं। दफ्तर जाती है तो याद आता है कि बच्चे का होमवर्क ठीक से नहीं करा पाई। घर पहुंचते ही उसकी बाट जोहती वॉशिंग मशीन उम्मीद करती है कि स्विच ऑन किया जाए, बर्तनों से भरा सिंक और बिखरा पड़ा किचन दिन भर का उलाहना देता है और बच्चे-बूढ़े शाम के नाश्ते की फ़रमाइश करते मिलते हैं....। कहां से शुरू करे....।
हालत यह होती है कि नींद में भी वह कई बार जागती है और उसे काम के ही सपने आते हैं। एक समय के बाद तनाव, सिरदर्द, थकान इस सुपर मॉम की स्थायी समस्या हो जाती है। यह स्थिति बताती है कि वह अब सुपर मॉम सिंड्रोम से पूरी तरह ग्रस्त हो चुकी है। दबाव, तनाव, बेचैनी, अनिद्रा, अवसाद, निराशा, अकेलापन....ये कुछ लक्षण हैं इस सिंड्रोम के।
लेकिन क्या ये परेशानियां स्त्रियों के लिए संकेत हैं कि उन्हें बाहर नहीं निकलना चाहिए, घर की जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाना चाहिए? यह तो फिर से वापस लौटने की तरह होगा। आत्मनिर्भरता की जिस लड़ाई में ये इतना आगे तक बढ़ चुकी हैं क्या उन्हें फिर से पीछे जाना होगा? माना कि उन पर कई तरह के दबाव हैं, वे एक संक्रमण-काल से गुजर रही हैं, लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वे बाहर नहीं निकलना चाहतीं। उन्हें सिर्फ घर और कार्यस्थल का माहौल अपने अनुकूल चाहिए, जो अभी संभव नहीं हो पा रहा है। समस्या की जड़ यही है।
परिवारों का ढांचा परंपरागत है और बाहरी दुनिया में अभी उनकी कामकाजी छवि को लोग मन से स्वीकार नहीं पा रहे हैं। ख़ुद स्त्रियों को भी मानना होगा कि वे हर जगह पर्फेक्ट नहीं हो सकतीं। अगर बच्चों को मनचाहा समय नहीं दे पा रही हैं तो इसमें ग्लानि क्यों? जितना भी समय दे रही हैं-उसे भरपूर देने की कोशिश तो कर रही हैं। पर्फेक्ट कुक नहीं हैं तो क्यों अपने हाथों को लानत भेजें, दफ्तर में तो कुछ अच्छे प्रोजेक्ट्स तैयार कर रही हैं।
इस सिंड्रोम से बचने का एक ही रास्ता है-थोड़ा सा समय। यह थोड़ा सा समय जिसमें स्त्री ख़ुद के लिए कुछ करे। ख़ुद को अच्छा लगने के लिए कुछ करे। डांस करे, गुनगुनाए, एक्सर्साइज़ करे, वॉक करे, पेंटिंग करे....। हर काम के लिए समय निकाल रहे हैं तो थोड़े से पल अपने लिए निकालने में कंजूसी या अपराधबोध क्यों हो?
सबसे बड़ी चीज है प्राथमिकता तय करना, बच्चे छोटे हैं तो घर के कोने-कोने की सफाई से ज्यादा जरूरी है बच्चों को समय देना। स्वास्थ्य खराब है तो भी दूसरों की सेवा-टहल करते रहने के बजाय खुद को डॉक्टर को दिखाना ज्यादा जरूरी होना चाहिए। बच्चे को हर सुविधा देना क्यों जरूरी है? उनके खराब मार्क्स आने या घरेलू अव्यवस्थाओं के लिए वे खुद को ही दोषी क्यों समझें? किसी भी स्त्री के लिए यह याद रखना जरूरी है कि वह पत्नी, बहू या मां होने से पहले एक इंसान हैं और उसे भी एक इंसान की तरह जीने का हक भी है। खुद को मशीन न मानें। खुद को दूसरे की नजर में अच्छा बनाने से पहले अपनी नजर में अच्छी बनें। हर काम में पर्फेक्ट होना इतना भी जरूरी नहीं कि उसके लिए जिंदगी दांव पर लगा दी जाए।
ये सारे काम किए जा सकते हैं लेकिन ये सारे काम एक साथ नहीं किए जा सकते। स्त्री किसी परिवार का दिल है और इस दिल को हमेशा धड़कते रहने के लिए उसका सिर्फ मां होना काफी है, उसे सुपर मॉम या पर्फेक्ट मॉम बनने की कोशिश करने की जरूरत नहीं।
वह घर में होती है तो दफ्तर के छूटे हुए काम याद आते हैं। दफ्तर जाती है तो याद आता है कि बच्चे का होमवर्क ठीक से नहीं करा पाई। घर पहुंचते ही उसकी बाट जोहती वॉशिंग मशीन उम्मीद करती है कि स्विच ऑन किया जाए, बर्तनों से भरा सिंक और बिखरा पड़ा किचन दिन भर का उलाहना देता है और बच्चे-बूढ़े शाम के नाश्ते की फ़रमाइश करते मिलते हैं....। कहां से शुरू करे....।
हालत यह होती है कि नींद में भी वह कई बार जागती है और उसे काम के ही सपने आते हैं। एक समय के बाद तनाव, सिरदर्द, थकान इस सुपर मॉम की स्थायी समस्या हो जाती है। यह स्थिति बताती है कि वह अब सुपर मॉम सिंड्रोम से पूरी तरह ग्रस्त हो चुकी है। दबाव, तनाव, बेचैनी, अनिद्रा, अवसाद, निराशा, अकेलापन....ये कुछ लक्षण हैं इस सिंड्रोम के।
लेकिन क्या ये परेशानियां स्त्रियों के लिए संकेत हैं कि उन्हें बाहर नहीं निकलना चाहिए, घर की जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाना चाहिए? यह तो फिर से वापस लौटने की तरह होगा। आत्मनिर्भरता की जिस लड़ाई में ये इतना आगे तक बढ़ चुकी हैं क्या उन्हें फिर से पीछे जाना होगा? माना कि उन पर कई तरह के दबाव हैं, वे एक संक्रमण-काल से गुजर रही हैं, लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वे बाहर नहीं निकलना चाहतीं। उन्हें सिर्फ घर और कार्यस्थल का माहौल अपने अनुकूल चाहिए, जो अभी संभव नहीं हो पा रहा है। समस्या की जड़ यही है।
परिवारों का ढांचा परंपरागत है और बाहरी दुनिया में अभी उनकी कामकाजी छवि को लोग मन से स्वीकार नहीं पा रहे हैं। ख़ुद स्त्रियों को भी मानना होगा कि वे हर जगह पर्फेक्ट नहीं हो सकतीं। अगर बच्चों को मनचाहा समय नहीं दे पा रही हैं तो इसमें ग्लानि क्यों? जितना भी समय दे रही हैं-उसे भरपूर देने की कोशिश तो कर रही हैं। पर्फेक्ट कुक नहीं हैं तो क्यों अपने हाथों को लानत भेजें, दफ्तर में तो कुछ अच्छे प्रोजेक्ट्स तैयार कर रही हैं।
इस सिंड्रोम से बचने का एक ही रास्ता है-थोड़ा सा समय। यह थोड़ा सा समय जिसमें स्त्री ख़ुद के लिए कुछ करे। ख़ुद को अच्छा लगने के लिए कुछ करे। डांस करे, गुनगुनाए, एक्सर्साइज़ करे, वॉक करे, पेंटिंग करे....। हर काम के लिए समय निकाल रहे हैं तो थोड़े से पल अपने लिए निकालने में कंजूसी या अपराधबोध क्यों हो?
सबसे बड़ी चीज है प्राथमिकता तय करना, बच्चे छोटे हैं तो घर के कोने-कोने की सफाई से ज्यादा जरूरी है बच्चों को समय देना। स्वास्थ्य खराब है तो भी दूसरों की सेवा-टहल करते रहने के बजाय खुद को डॉक्टर को दिखाना ज्यादा जरूरी होना चाहिए। बच्चे को हर सुविधा देना क्यों जरूरी है? उनके खराब मार्क्स आने या घरेलू अव्यवस्थाओं के लिए वे खुद को ही दोषी क्यों समझें? किसी भी स्त्री के लिए यह याद रखना जरूरी है कि वह पत्नी, बहू या मां होने से पहले एक इंसान हैं और उसे भी एक इंसान की तरह जीने का हक भी है। खुद को मशीन न मानें। खुद को दूसरे की नजर में अच्छा बनाने से पहले अपनी नजर में अच्छी बनें। हर काम में पर्फेक्ट होना इतना भी जरूरी नहीं कि उसके लिए जिंदगी दांव पर लगा दी जाए।
ये सारे काम किए जा सकते हैं लेकिन ये सारे काम एक साथ नहीं किए जा सकते। स्त्री किसी परिवार का दिल है और इस दिल को हमेशा धड़कते रहने के लिए उसका सिर्फ मां होना काफी है, उसे सुपर मॉम या पर्फेक्ट मॉम बनने की कोशिश करने की जरूरत नहीं।
पहले MMS, फिर बीवी बनाया, फिर
तेजाबमाल्दा
में एक पति का अपनी पत्नी पर तेजाब डालने और फिर उसे तेजाब पिलाने का
दरिंदगी भरा मामला सामने आया है। पत्नी हॉस्पिटल में जिन्दगी के लिए लड़ाई
लड़ रही है और पति लापता है। दरअसल, यह केस अपने आप में शुरू से ही पति की
एक के बाद एक शर्मनाक हरकत की कहानी बयां करता है।
हबीबपुर
पुलिस स्टेशन के तहत आने वाले ऋषिपुर गांव का सुजॉय सरकार अपनी पत्नी को
नापसंद करता था। दहेज के लालच में वह पत्नी को लगातार टॉर्चर करता। उसे यह
शादी गांव वालों के दबाव के चलते करनी पड़ी थी।
सूत्रों
का कहना है कि 22 साल की पीड़ित सुजॉय को पसंद करती थी। सुजोय ने इस बात
का फायदा उठाकर न सिर्फ लड़की को झांसा दिया और शारीरिक संबंध बनाए बल्कि
उसका एमएमएस भी बना लिया जिसे वह खुद ही सर्कुलेट भी करने लगा। परिवार
वालों के इस बाबत पंचायत में जाने के बाद कोर्ट ने दोनों की शादी का
निर्देश दिया। 6 महीने पहले दोनों की शादी हो गई थी।
हाल
ही में उसने पत्नी के मायके वालों से 80 हजार रुपए और मोटरसाइकल मांगी
लेकिन गरीब किसान परिवार उसकी यह डिमांड पूरी नहीं कर पा रहा था। उस दिन
पत्नी ने सुजॉय का विरोध किया तो गुस्से में सुजॉय ने उसके चेहरे को एसिड
से नहला दिया और एसिड पीने पर मजबूर किया।
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दहेज के लिए हर किसी से रेप का शिकार हुई युवती
मध्य
प्रदेश के सागर जिले में दहेज की मांग पूरी न कर पाने के कारण एक 20 साल
की युवती को ससुरालवालों के जुल्म का शिकार होना पड़ा। पिछले तीन साल से
महिला को तबेले में जंजीरों से बांध कर रखा गया। इतना ही नहीं, इस दौरान
उसके पति, रिश्तेदारों और यहां तक कि पड़ोसियों ने बार-बार उसके साथ
बलात्कार किया।
मध्य
प्रदेश के सागर जिले में दहेज की मांग पूरी न कर पाने के कारण एक 20 साल
की युवती को ससुरालवालों के जुल्म का शिकार होना पड़ा। पिछले तीन साल से
महिला को तबेले में जंजीरों से बांध कर रखा गया। इतना ही नहीं, इस दौरान
उसके पति, रिश्तेदारों और यहां तक कि पड़ोसियों ने बार-बार उसके साथ
बलात्कार किया।
युवती पर जुल्म की इंतहा यह थी कि तीन
सालों तक उसका रेप किया गया। इस साल मई में 50 हजार रुपये के लिए उसे एक
महाजन को बेच दिया गया। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके परिवारवालों के पास दहेज
देने के लिए पैसे नहीं थे। युवती एक बार काफी बीमार हो गई, उस वक्त एक
पड़ोसी उसे अस्पताल ले गया, लेकिन उसने भी अस्पताल ले जाते समय कथित तौर पर
उसका रेप किया। युवती के साथ हुए इस बर्बर व्यवहार का उस समय पता चला, जब
उसके एक रिश्तेदार ने सौभाग्य से उसे महाजन के घर पर देख लिया और इस बात
की जानकारी उसके परिवारवालों को दी।
युवती पर जुल्म की इंतहा यह थी कि तीन
सालों तक उसका रेप किया गया। इस साल मई में 50 हजार रुपये के लिए उसे एक
महाजन को बेच दिया गया। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके परिवारवालों के पास दहेज
देने के लिए पैसे नहीं थे। युवती एक बार काफी बीमार हो गई, उस वक्त एक
पड़ोसी उसे अस्पताल ले गया, लेकिन उसने भी अस्पताल ले जाते समय कथित तौर पर
उसका रेप किया। युवती के साथ हुए इस बर्बर व्यवहार का उस समय पता चला, जब
उसके एक रिश्तेदार ने सौभाग्य से उसे महाजन के घर पर देख लिया और इस बात
की जानकारी उसके परिवारवालों को दी।
1 जुलाई को महिला
अपने रिश्तेदारों के साथ राहतगढ़ पुलिस स्टेशन गई और इस अपने ऊपर हुए जुल्म
ही यह भयावह कहानी सुनाई। पुलिस अधिकारी एस. पी सागर के अनुसार, महिला की
शादी सागर जिले के पराश्री टूंडा गांव के आनंद कुर्मी के साथ पांच साल पहले
हुई थी। शादी के कुछ दिन बाद से ही ससुरालवालों ने दहेज के लिए उसे मानसिक
और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
1 जुलाई को महिला
अपने रिश्तेदारों के साथ राहतगढ़ पुलिस स्टेशन गई और इस अपने ऊपर हुए जुल्म
ही यह भयावह कहानी सुनाई। पुलिस अधिकारी एस. पी सागर के अनुसार, महिला की
शादी सागर जिले के पराश्री टूंडा गांव के आनंद कुर्मी के साथ पांच साल पहले
हुई थी। शादी के कुछ दिन बाद से ही ससुरालवालों ने दहेज के लिए उसे मानसिक
और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
पीड़िता के किसान पिता रामकिशन ने बताया, 'शादी
के समय ससुरालवालों ने एक लाख रुपये की मांग की थी, जो उन्हें दे दिए गए
थे। लेकिन वह बार-बार चीजों की मांग करने लगे। उन्होंने कलर टीवी,
मोटरसाइकल, ट्रैक्टर के साथ-साथ एक लाख रुपये नकद और मांगे। इसके लिए
बार-बार उन्होंने मेरी बेटी के साथ मारपीट की।' रामकिशन ने
कहा, जब मेरी बेटी गर्भवती हुई तो सास और परिवार के दूसरे लोगों ने मिलकर
जबरन उसका गर्भपात करवा दिया। शादी के दो साल बाद उन लोगों ने कहा कि अब
उनकी बेटी वहां नहीं रह सकती।'
पीड़िता के किसान पिता रामकिशन ने बताया, 'शादी
के समय ससुरालवालों ने एक लाख रुपये की मांग की थी, जो उन्हें दे दिए गए
थे। लेकिन वह बार-बार चीजों की मांग करने लगे। उन्होंने कलर टीवी,
मोटरसाइकल, ट्रैक्टर के साथ-साथ एक लाख रुपये नकद और मांगे। इसके लिए
बार-बार उन्होंने मेरी बेटी के साथ मारपीट की।' रामकिशन ने
कहा, जब मेरी बेटी गर्भवती हुई तो सास और परिवार के दूसरे लोगों ने मिलकर
जबरन उसका गर्भपात करवा दिया। शादी के दो साल बाद उन लोगों ने कहा कि अब
उनकी बेटी वहां नहीं रह सकती।'
इसके बाद
ससुरालवालों ने उसे तबेले में गाय-भैसों के साथ जंजीर से बांधकर रखा। कुछ
दिन बाद उसका पति आनंद कुर्मी उसे पास के एक गांव खुरई में राम सिंह नाम के
अपने रिश्तेदार के यहां छोड़ आया। राम सिंह और उसके बेटों नरेंद्र और
लोकेंद्र ने युवती को घर में बंद करके रखा और करीब 20 दिन तक उसके साथ रेप
किया।
इसके बाद
ससुरालवालों ने उसे तबेले में गाय-भैसों के साथ जंजीर से बांधकर रखा। कुछ
दिन बाद उसका पति आनंद कुर्मी उसे पास के एक गांव खुरई में राम सिंह नाम के
अपने रिश्तेदार के यहां छोड़ आया। राम सिंह और उसके बेटों नरेंद्र और
लोकेंद्र ने युवती को घर में बंद करके रखा और करीब 20 दिन तक उसके साथ रेप
किया।
इसके बाद राम सिंह ने उसे एक दूसरे गांव महुना के
महाजन द्वारका प्रसाद को उसे बेच दिया। यहां भी उसके साथ बार-बार रेप किया
गया। इस बीच एक दिन महिला काफी बीमार पड़ गई तो महाजन का पड़ोसी खड़ग सिंह
उसे अस्पताल ले गया, लेकिन रास्ते में उसने भी उससे रेप किया।
इसके बाद राम सिंह ने उसे एक दूसरे गांव महुना के
महाजन द्वारका प्रसाद को उसे बेच दिया। यहां भी उसके साथ बार-बार रेप किया
गया। इस बीच एक दिन महिला काफी बीमार पड़ गई तो महाजन का पड़ोसी खड़ग सिंह
उसे अस्पताल ले गया, लेकिन रास्ते में उसने भी उससे रेप किया।
बाद
में महाजन के घर लौटते समय महिला को रिश्तेदार ने देख लिया और पहचान
लिया। तब जाकर महिला के घरवालों को इसकी जानकारी मिली और किसी तरह उसे वहां
से छुड़ाया गया। 28 जून को महिला को छुड़ाकर उसके घर वाले अपने पास ले आए
और दो दिन बाद इस मामले की रिपोर्ट पुलिस मे लिखवाई।
बाद
में महाजन के घर लौटते समय महिला को रिश्तेदार ने देख लिया और पहचान
लिया। तब जाकर महिला के घरवालों को इसकी जानकारी मिली और किसी तरह उसे वहां
से छुड़ाया गया। 28 जून को महिला को छुड़ाकर उसके घर वाले अपने पास ले आए
और दो दिन बाद इस मामले की रिपोर्ट पुलिस मे लिखवाई।
पुलिस
ने महिला के पति, ससुरालवालों, रेप के दूसरे आरोपियों सहित महाजन के खिलाफ
केस दर्ज किया है। फिलहाल पुलिस ने तीन आरोपियों जिसमें युवती के साथ
अस्पताल ले जाते समय रेप करने का आरोपी खड़ग सिंह भी शामिल है, को गिरफ्तार
किया है।
पुलिस
ने महिला के पति, ससुरालवालों, रेप के दूसरे आरोपियों सहित महाजन के खिलाफ
केस दर्ज किया है। फिलहाल पुलिस ने तीन आरोपियों जिसमें युवती के साथ
अस्पताल ले जाते समय रेप करने का आरोपी खड़ग सिंह भी शामिल है, को गिरफ्तार
किया है।
प्यार की सजा, महिला को सरेआम न्यूड कर पीटा
राजस्थान
के उदयपुर में रविवार को जातीय पंचायत की एक वहशियाना हरकत देखने को मिली।
जातीय पंचायत ने एक जोड़े को प्यार करने पर ऐसी सजा दी कि तालिबान की याद आ
गई। गांव वालों ने प्रेमी जोड़े को पेड़ से बांध दिया। पेड़ से बांधकर
पहले इन दोनों की पिटाई की गई और फिर प्रेमी के साथ पूरे गांव के सामने
महिला को नंगा किया गया।
युवती की इज्जत को तार-तार करने वाली यह
घटना उदयपुर के सराड़ा थाना क्षेत्र स्थित कारोली फला की है। सूचना पाकर
मौके पर पहुंची पुलिस को गांव वालों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
गांववालों ने पथराव शुरू कर दिया। जवाब में पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा,
हवाई फायर भी किए गए। बाद में काफी समझाने के बाद पुलिस ने बंधक युवक-युवती
को मुक्त कराया।
ग्रामीणों के मुताबिक, युवती विवाहित है और उसपर
गांव के ही एक युवक के साथ भागने का आरोप है। पाल सराड़ा गांव के
काराकोली फला का रहने वाला एक युवक अपनी पड़ोसी विवाहिता को लेकर 15 दिन
पहले भाग गया था। दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे। ग्रामीणों ने अपने स्तर
पर खोजबीन की और दोनों को खेरवाड़ा के पास पकड़ कर फिर गांव में लाए। इसके
बाद विवाहिता के बाल काट और उसे निर्वस्त्र कर पेड़ से बांध दिया। प्रेमी
को भी अलग पेड़ से बांध दिया। दोनों की जमकर पिटाई की गई।
महिला उत्पीड़न के सवाल
महिला आयोग ने
घर के भीतर होने वाले महिला उत्पीड़न के जो आंकड़े पेश किए हैं, वे वाकई
चिंताजनक हैं। आयोग ने एक महीने के भीतर आई शिकायतों के आधार पर आंकड़े पेश
किए हैं। महीने भर में आई कुल शिकायतों में एक सौ छह मामले ऐसे हैं,
जिनमें महिलाओं के साथ पतियों ने मारपीट अथवा शारीरिक उत्पीड़न किया है।
इसके अलावा सत्ताईस मामले दहेज उत्पीड़न के हैं, जबकि पच्चीस भावनात्मक
उत्पीड़न के। तैंतीस मामले ऐसे हैं, जिनमें ऐसे नजदीकी रिश्तेदारों और
पड़़ोसियों ने उत्पीड़न किया है, जिन पर महिलाएं विश्वास करती थीं। इन
उत्पीड़नकारियों की फेहरिश्त में पुलिस भी शामिल है, जो महिलाओं की
शिकायतों पर गौर तो नहीं करती, उल्टे उन्हें अपमानित करती है। यह हाल देश
की राजधानी का है, तो बाकी देश में क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा
सकता है।
महिलाओं को सुरक्षा और न्याय दिला पाने का पुलिस का रिकार्ड तो जगजाहिर है। दो दिन पहले का ही मामला है, जब एक लड़की ने थाने में जाकर शिकायत की, कि उसके शिक्षक ने तीन साल तक बहला-फुसलाकर उसका शारीरिक शोषण किया और जब उसने शादी की बात कही तो वह मुकर गया। पुलिस ने लड़की को थाने से भगा दिया और आरोपी शिक्षक की आवभगत की। इस बर्ताव से आहत लड़की ने जहरीला पदार्थ पीकर खुदकु्शी कर ली।
सवाल यह है कि जब हम ही अपनी ही घर की महिलाओं को भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा नहीं दे पा रहे, तो पुलिस यह सब क्यों करने लगी? समय-समय पर बलात्कार जैसी घटनाओं के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराकर पुलिस महिला सुरक्षा के प्रति अपनी संवेदनशीलता और सोच का प्रमाण देती रहती है कि बलात्कार की घटनाओं के लिए खुद महिलाएं और उनका पहनावा जिम्मेदार है। या फिर, रात को घर से बाहर निकलकर, भड़कीले वस्त्र पहनकर वे खुद ऐसी घटनाओं को आमंत्रित करती हैं आदि। आखिर पुलिस और प्रशासन में तैनात लोग भी इसी समाज के तो हिस्से हैं, जहां लोग दहेज पाने जैसी कुत्सित बातों के लिए अपनी ही औरतों को न सिर्फ प्रताडि़त करते हैं, बल्कि उनकी जान तक ले लेते हैं!
पिछले सप्ताह गुड़गांव में एक साल की बच्ची की मां ने बहुमंजिला इमारत की खिड़की से कूद कर जान दे दी, क्योंकि उसका पति चाह रहा था कि पत्नी उसके बिजनेस शुरू करने के लिए अपने मायके से दस लाख रुपये लाकर दे। महिला इस बात से इन्कार कर रही थी और पति इस बात के उससे झगड़ा कर रहा था। बात इतनी बढ़ गई कि महिला के भाई को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा, लेकिन सुलह-समझौता फिर भी नहीं हो सका और जब रात को सभी सो रहे थे, महिला घर की खिड़की से नीचे कूद गई। जाहिर है, परिस्थियां उसे अपने जीने के अनुकूल नहीं लगीं।
इस घटना के मद्देनजर हम विचार करें, तो पाएंगे कि पुलिस या कोई कानून ऐसे मामलों में कुछ खास नहीं कर सकता। महिला की हत्या के लिए जिम्मेदार पति को हम फांसी दे सकते हैं। हो सकता है कि इससे हर व्यक्ति के मन में खौफ भी बैठे, कि अगर वह दहेज के कारण पत्नी की हत्या करेंगे तो फांसी नसीब होगी, लेकिन क्या इससे हर घर में महिलाआंे को वह जरूरी सम्मान मिल सकेगा, जो उसके जीने के लिए जरूरी है।
हमारे समाज में महिलाओं के उत्पीड़न के अलग-अलग रूप हैं, मसलन-दहेज के लिए हत्या, कन्या भ्रूणहत्या, पुरुषोचित भावनात्मकपूर्ति के लिए हत्या या फिर इज्जत के लिए हत्या। यहां तक कि पुरुषों ने युवक-युवतियों के प्रेम संबंधों से अपनी जो इज्जत-आबरू जोड़ रखी है, उसके निशाने पर भी युवतियां ही हैं, क्योंकि कभी किसी ने इज्जत की खातिर अपने बेटे की हत्या नहीं की। लड़के इसका शिकार होते जरूर हैं, लेकिन लगभग मामलों में या तो लड़की की हत्या की जाती है या उससे प्रेम करने वाले लड़के की। कभी ऐसा सुनने में नहीं आया कि किसी बाप ने अपने लड़के की हत्या इस तर्क के साथ की हो, कि उसने किसी लड़की से प्रेम किया और खानदान की इज्जत पर कालिख लग गई। इससे जाहिर है कि पुरुष और स्त्री के लिए हमने समान साध्य के लिए अलग-अलग न सिर्फ नियम बनाए हैं, बल्कि प्राण-पण से उसकी सुरक्षा भी करते हैं।
यही सूरत दहेज को लेकर होने वाली हत्याओं मामले में भी है। कभी कोई हत्या इसलिए नहीं हुई कि पति अपनी पत्नी को जरूरी सुरक्षा या जीने का सामान मुहैया नहीं करा पा रहा था। कोई हत्या इसलिए नहीं हुई कि किसी पत्नी ने पति से लाखों रुपये मांगे और पति नहीं दे सका, तो उसकी हत्या कर दी गई। चूंकि, पति की परिस्थितियों और अमीरी-गरीबी में पत्नी का साथ होना ही उसका धर्म है, लेकिन पति के लिए ऐसा कोई धर्म नहीं बना है कि वह जीवन संगिनी बनने वाली स्त्री से पैसे की मांग न करे और वह जैसी भी, जिस भी हैसियत की है, उसके साथ निबाहे। यहां तक कि विवाह के कई-कई साल बाद भी पति और ससुराल पक्ष के लोग महिलाओं पर दबाव डालते हैं कि वह मायके से दहेज की मांग करे। जबकि, हम यह कभी नहीं चाहते कि हमारी अपनी बच्ची के साथ ऐसा कुछ हो।
साफ है कि महिलाओं के प्रति हिंसा व्यवस्थागत या कानूनी खामी के कारण नहीं है। यह हिंसा हमारे सामाजिक ढांचे और गैर-बराबरी की सोच में निहित है। हमने महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग मानक तय किए हैं। हम अपनी लड़की पर हुए अत्याचार पर उद्वेलित होते हैं, लेकिन बहू से पैसे की मांग करते हैं और नहीं देने पर उसके साथ पशुता से पेश आते हैं। हम बेटी को कम से कम देना चाहते हैं, लेकिन बहू से ज्यादा से ज्यादा लेना चाहते हैं। यदि बहू पक्ष थोड़े से दबाव में ऐसा नहीं करता तो हम बहुओं को उसकी सजा देते हैं। यह लेनदेन का गणित जब तक बेटी और बेटे के अस्तित्व से जुड़ा रहेगा, यह समस्या बनी रहेगी। अगर हम चाहते हैं कि दहेज के लिए हमारी बेटी की हत्या न हो, तो हमे इस घृणित प्रथा को समूल मिटाना होगा। हमें दहेज न लेकर महिलाओं के व्यक्तित्व को मान्यता देनी होगी, मगर इसकी शुरुआत कौन करेगा?
महिलाओं को सुरक्षा और न्याय दिला पाने का पुलिस का रिकार्ड तो जगजाहिर है। दो दिन पहले का ही मामला है, जब एक लड़की ने थाने में जाकर शिकायत की, कि उसके शिक्षक ने तीन साल तक बहला-फुसलाकर उसका शारीरिक शोषण किया और जब उसने शादी की बात कही तो वह मुकर गया। पुलिस ने लड़की को थाने से भगा दिया और आरोपी शिक्षक की आवभगत की। इस बर्ताव से आहत लड़की ने जहरीला पदार्थ पीकर खुदकु्शी कर ली।
सवाल यह है कि जब हम ही अपनी ही घर की महिलाओं को भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा नहीं दे पा रहे, तो पुलिस यह सब क्यों करने लगी? समय-समय पर बलात्कार जैसी घटनाओं के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराकर पुलिस महिला सुरक्षा के प्रति अपनी संवेदनशीलता और सोच का प्रमाण देती रहती है कि बलात्कार की घटनाओं के लिए खुद महिलाएं और उनका पहनावा जिम्मेदार है। या फिर, रात को घर से बाहर निकलकर, भड़कीले वस्त्र पहनकर वे खुद ऐसी घटनाओं को आमंत्रित करती हैं आदि। आखिर पुलिस और प्रशासन में तैनात लोग भी इसी समाज के तो हिस्से हैं, जहां लोग दहेज पाने जैसी कुत्सित बातों के लिए अपनी ही औरतों को न सिर्फ प्रताडि़त करते हैं, बल्कि उनकी जान तक ले लेते हैं!
पिछले सप्ताह गुड़गांव में एक साल की बच्ची की मां ने बहुमंजिला इमारत की खिड़की से कूद कर जान दे दी, क्योंकि उसका पति चाह रहा था कि पत्नी उसके बिजनेस शुरू करने के लिए अपने मायके से दस लाख रुपये लाकर दे। महिला इस बात से इन्कार कर रही थी और पति इस बात के उससे झगड़ा कर रहा था। बात इतनी बढ़ गई कि महिला के भाई को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा, लेकिन सुलह-समझौता फिर भी नहीं हो सका और जब रात को सभी सो रहे थे, महिला घर की खिड़की से नीचे कूद गई। जाहिर है, परिस्थियां उसे अपने जीने के अनुकूल नहीं लगीं।
इस घटना के मद्देनजर हम विचार करें, तो पाएंगे कि पुलिस या कोई कानून ऐसे मामलों में कुछ खास नहीं कर सकता। महिला की हत्या के लिए जिम्मेदार पति को हम फांसी दे सकते हैं। हो सकता है कि इससे हर व्यक्ति के मन में खौफ भी बैठे, कि अगर वह दहेज के कारण पत्नी की हत्या करेंगे तो फांसी नसीब होगी, लेकिन क्या इससे हर घर में महिलाआंे को वह जरूरी सम्मान मिल सकेगा, जो उसके जीने के लिए जरूरी है।
हमारे समाज में महिलाओं के उत्पीड़न के अलग-अलग रूप हैं, मसलन-दहेज के लिए हत्या, कन्या भ्रूणहत्या, पुरुषोचित भावनात्मकपूर्ति के लिए हत्या या फिर इज्जत के लिए हत्या। यहां तक कि पुरुषों ने युवक-युवतियों के प्रेम संबंधों से अपनी जो इज्जत-आबरू जोड़ रखी है, उसके निशाने पर भी युवतियां ही हैं, क्योंकि कभी किसी ने इज्जत की खातिर अपने बेटे की हत्या नहीं की। लड़के इसका शिकार होते जरूर हैं, लेकिन लगभग मामलों में या तो लड़की की हत्या की जाती है या उससे प्रेम करने वाले लड़के की। कभी ऐसा सुनने में नहीं आया कि किसी बाप ने अपने लड़के की हत्या इस तर्क के साथ की हो, कि उसने किसी लड़की से प्रेम किया और खानदान की इज्जत पर कालिख लग गई। इससे जाहिर है कि पुरुष और स्त्री के लिए हमने समान साध्य के लिए अलग-अलग न सिर्फ नियम बनाए हैं, बल्कि प्राण-पण से उसकी सुरक्षा भी करते हैं।
यही सूरत दहेज को लेकर होने वाली हत्याओं मामले में भी है। कभी कोई हत्या इसलिए नहीं हुई कि पति अपनी पत्नी को जरूरी सुरक्षा या जीने का सामान मुहैया नहीं करा पा रहा था। कोई हत्या इसलिए नहीं हुई कि किसी पत्नी ने पति से लाखों रुपये मांगे और पति नहीं दे सका, तो उसकी हत्या कर दी गई। चूंकि, पति की परिस्थितियों और अमीरी-गरीबी में पत्नी का साथ होना ही उसका धर्म है, लेकिन पति के लिए ऐसा कोई धर्म नहीं बना है कि वह जीवन संगिनी बनने वाली स्त्री से पैसे की मांग न करे और वह जैसी भी, जिस भी हैसियत की है, उसके साथ निबाहे। यहां तक कि विवाह के कई-कई साल बाद भी पति और ससुराल पक्ष के लोग महिलाओं पर दबाव डालते हैं कि वह मायके से दहेज की मांग करे। जबकि, हम यह कभी नहीं चाहते कि हमारी अपनी बच्ची के साथ ऐसा कुछ हो।
साफ है कि महिलाओं के प्रति हिंसा व्यवस्थागत या कानूनी खामी के कारण नहीं है। यह हिंसा हमारे सामाजिक ढांचे और गैर-बराबरी की सोच में निहित है। हमने महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग मानक तय किए हैं। हम अपनी लड़की पर हुए अत्याचार पर उद्वेलित होते हैं, लेकिन बहू से पैसे की मांग करते हैं और नहीं देने पर उसके साथ पशुता से पेश आते हैं। हम बेटी को कम से कम देना चाहते हैं, लेकिन बहू से ज्यादा से ज्यादा लेना चाहते हैं। यदि बहू पक्ष थोड़े से दबाव में ऐसा नहीं करता तो हम बहुओं को उसकी सजा देते हैं। यह लेनदेन का गणित जब तक बेटी और बेटे के अस्तित्व से जुड़ा रहेगा, यह समस्या बनी रहेगी। अगर हम चाहते हैं कि दहेज के लिए हमारी बेटी की हत्या न हो, तो हमे इस घृणित प्रथा को समूल मिटाना होगा। हमें दहेज न लेकर महिलाओं के व्यक्तित्व को मान्यता देनी होगी, मगर इसकी शुरुआत कौन करेगा?
छेड़छाड़ का केस वापस नहीं लिया तो मार दी गोली
दिल्ली
में बदमाशों ने छेड़छाड़ का केस वापस न लेने पर महिला को गोली मार दी।
गोली महिला के पैर में लगी है और फिलहाल वह खतरे से बाहर है। पुलिस ने गोली
चलाने वाले एक बदमाश को गिरफ्तार कर लिया है जबकि बाकी आरोपियों की तलाश
की जा रही है।
गोली का निशाना बनी इस महिला ने अपने पड़ोस में रहने
वाले कुछ युवकों के खिलाफ छेड़छाड़ और मारपीट की शिकायत दर्ज कराई थी।
पुलिस ने इस मामले में 2 आरोपियों को गिरफ्तार भी किया था। तब से लेकर
लगातार इस महिला को केस वापस लेने के लिए धमकियां मिल रही थीं। जब महिला ने
केस वापस नहीं लिया तो इन बदमाशों ने उसे गोली मार दी।
रोहिणी के
पास बुद्ध विहार फेज़-1 में रहने वाली अनुष्का (बदला हुआ नाम) पति से तलाक
लेने के बाद अपने मायके में रहती हैं। सोमवार को करीब 4 बजे जब वह सामान
खरीदने बाजार जा रही थीं, तभी बदमाशों ने उनपर गोली चला दी। संयोग से
गोली उनके बाएं पैर की एड़ी में लगी। फायर करते ही हमलावर मौके से फरार हो
गए।
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