Saturday, October 27, 2012

पारिवारिक सुख के लिए



 आज बड़े परिवार बिखर रहे हैं। एकल परिवार भी तनाव में जी रहे हैं। बदलते माहौल में पारिवारिक सौहार्द का ग्राफ लगातार नीचे गिर रहा है। यह एक गंभीर समस्या है। इससे परिवार के मूल आधार स्नेह में भी खटास पड़ जाती है। समस्या आदिकाल से है, किंतु वह अब तक इसलिए है क्योंकि अधिकांश परिवारों ने समाधान के अति सरल उपायों पर विचार ही नहीं किया। स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता का सूत्र ही समाधान का मूलमंत्र है। यदि तीनों का आपसी संबंध समझकर लोग उसे अपने आचरण में उतार लें तो घर 'स्वर्ग' बन जाएगा। दुनिया भर की धन दौलत इंसान को वह सुकून नहीं दे सकती, जो स्नेह और सम्मान का मधुर भाव देता है।


सास बहू के संबंध में ही नहीं, पिता और पुत्र, मां और बेटी, देवरानी-जेठानी, ननद और भाभी, भाई-भाई आदि हर रिश्ते पर यह बात लागू होती है। आप सामने वाले को स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता दीजिए, आपको भी उससे यही मिलेगा। आप जरा यह सोचे कि पारिवारिक सुख शांति अधिक महत्वपूर्ण है या रूढि़वादिता? बंधी-बंधाई लीक पर चलकर कोई उपलब्धि भी हासिल न हो बल्कि जो कुछ अच्छा था, वह भी छूटता जाए, तो फिर ऐसा नियम पालन किस काम का? साड़ी और सिर पर पल्लू की अनिवार्यता, पति समेत घर के सभी सदस्यों से पहले भोजन न करने की कड़ाई, सास ससुर से हास-परिहास न करने की हिदायत, ननद देवर के छोटे-छोटे बच्चों को जी और आप कहने की औपचारिकता, पति के साथ घूमने और मनोरंजन न करने और महत्वपूर्ण फैसलों में भागीदारी न होने की संस्कारशीलता से आज तक कौन सा परिवार कोई महान उपलब्धि हासिल कर पाया है।


जिस प्रकार आयुर्वेद में निरोगी काया के लिए वात, पित्त और कफ का संतुलन जरूरी बताया गया है, उसी प्रकार पारिवारिक सुख और शांति के लिए स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता का संतुलन जरूरी है। 'जैसा बोया, वैसा काटोगे' के सर्वकाल सत्य के आधार पर कहा जा सकता है कि जो भाव और व्यवहार हमारा दूसरों के प्रति होगा, वही हमें भी प्रतिफल में मिलेगा। तभी 'सुख' अपनी पूर्णता को पाएगा। सुखद पारिवारिक जीवन के लिए संस्कार और सहिष्णुता भी जरूरी है। गृहस्थ समाज में सुखी गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए सहिष्णुता की बहुत अपेक्षा है, जिसकी आज कमी होती जा रही है। लगता है जैसे हम सहन करना जानते ही नहीं। सभी में सहिष्णुता की शक्ति में कमी हो रही है।


व्यक्ति अपने भाई को सहन नहीं करता, माता-पिता को सहन नहीं करता और पड़ोसी को सहन कर लेता है, अपने मित्र को सहन कर लेता है। सहन करना अच्छी बात है। लेकिन घर में भी एक सीमा तक एक-दूसरे को सहन करना चाहिए। इंसान की पहचान उसके संस्कारों से बनती है। संस्कार उसके समूचे जीवन को जाहिर करते हैं। संस्कार हमारी जीवनी शक्ति है, यह एक लगातार जलने वाली ऐसी दीपशिखा है जो अंधेरे मोड़ों पर भी प्रकाश बिछा देती है। असल में बच्चे तो कच्चे घड़े के समान होते हैं उन्हें आप उन्हें जैसे आकार में ढालेंगे वे उसी आकार में ढल जाएंगे। मां के उच्च संस्कार बच्चों के संस्कार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि सबसे पहले परिवार संस्कारवान बने, माता-पिता संस्कार वाले बनें, तभी बच्चे चरित्रवान बनकर घर की, परिवार की प्रतिष्ठा को और बढ़ा सकेंगे।
आज की भोगवादी संस्कृति ने खरीद-फरोख्त को जिस तरह से बढ़ावा दिया है उससे बाहरी चमक-दमक से ही आदमी को पहचाना जाता है। यह ठीक नहीं है। ये तमाम स्थितियां पारिवारिक बिखराव का बड़ा कारण बन रही है। इसे रोकने के लिए सांस्कृतिक मूल्य के महत्व को समझना जरूरी है। भारत को आज सांस्कृतिक क्रांति का इंतजार है। यह काम सरकारी तंत्र पर नहीं छोड़ा जा सकता। सही शिक्षा और सही संस्कारों से ही परिवार, समाज और राष्ट्र को स्वतंत्र बनाया जा सकता है।
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विश्वास का रिश्ता
विश्वास का रिश्ता होता है, पति-पत्नी का। जिंदगी भर साथ रहने का वादा, एक दूसरे के दुःख-सुख में साथ निभाने का वादा, एक दूसरे की देखभाल का वादा, अगली पीढ़ी को जन्म देने का वादा, साथ-साथ बच्चों के पालन पोषण करने का वादा, धार्मिक अनुष्ठानों को साथ-साथ पूरा करने का वादा, आदि-आदि वादों के साथ शुरुआत होती है वैवाहिक जीवन की। अगर प्रेम विवाह होता है, तब तो वायदों को गिना भी नहीं जा सकता है। लेकिन विश्वास पर टिका रिश्ता तो तभी तक रहता है, जब तक विश्वास टूटता नहीं है। विश्वास ख़त्म होने पर यह रिश्ता भी एक कच्चे धागे की तरह टूट जाता है।जितना मजबूत विश्वास उतना ही अधिक उसके टूटने का खतरा। विश्वास टूटने के बाद भी कुछ लोग सामाजिक मान्यताओं, बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर इस रिश्ते को घसीटते रहते है। परन्तु कुछ लोग घुट घुट कर जीनें से बेहतर अपने अपने रास्ते अलग कर लेना ही उचित समझते है। कभी-कभी तो एक दूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं। वैशे तो यह रिश्ता निहायद व्यक्तिगत होता है , फिर भी इस रिश्ते में बेहतरी की आशा से मै कुछ प्रश्न पतियों एवं पत्नियों से पूछना चाहूँगा जिसके उत्तर अपेच्छित नहीं है। लेकिन इन प्रश्नों के माध्यम से यह जानने का प्रयास कर सकतें हैं कि आप अपने जीवन साथी के साथ जो किए थे, उसका कितना प्रतिशत निभा रहे रहे हैं। तो लीजिये प्रश्न -
@- आपने शादी से पहले अपने पति या पत्नी से कौन से वादे किये थे? याद हैं या नहीं?
@- यदि याद हैं, तो कौन कौन से वायदे थे?
@- यदि नहीं याद हैं, तो क्यों?
@- क्या आप अपने वैवाहिक जीवन से खुस हैं? यानि कि शादी के बाद भी पति-पत्नी के बीच पहले जैसा विश्वास है, बल्कि आपसी विश्वास और अधिक मजबूत हुआ है। आप अपने पति या पत्नी को खुस रखने के लिए क्या क्या प्रयास करते है? अभी जो करते हैं क्या उससे भी अधिक प्रयास किया जा सकता है?
@- यदि खुस नहीं है तो इसके क्या कारण हैं? और इसके लिए दोषी कौन है? आप या आपका जीवन साथी? या फिर परिस्थितियां ?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे हैं?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे है, केवल बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे हैं, केवल लोक-लाज और सामाजिक दबाव को ध्यान में रखकर?
@- यदि नहीं खुस हैं, तो भी क्या इस रिश्तें को निभा रहे हैं, उपर्युक्त दोनों कारणों से? या फिर कोई और भी कारण हैं?
@- पुराने लोग अपनी अपनी बेटियों को सीख देते थे कि "बिटिया ससुराल डोली चढ़कर जाना और अर्थी चढ़कर ही निकलना", इस सीख से आप कहाँ तक सहमत हैं? नहीं तो क्यों? हाँ तो क्यों?
@- पति पत्नी के बीच सामंजस्य होना बच्चों के भविष्य के लिए कितना आवश्यक है?
@- संयुक्त परिवार में अपने जीवन साथी और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच किस प्रकार सामंजस्य बनाए रखा जा सकता है?
@- परिवार के सारे निर्णय पत्नी को लेने चाहिए या पति को? या फिर दोनों को मिलकर लेने चाहिए?
@- परिवार में लोकतान्त्रिक मूल्यों को कैसे स्थापित किया जा सकता है?
@- पति यदि पत्नी को प्रताणित करता है, तो पत्नी को क्या करना चाहिए?
@- पत्नी यदि पति को प्रताणित करती है, तो पति को क्या करना चाहिए?
@- माता-पिता यदि झगड़ा करते हैं, तो बच्चों को क्या करना चाहिए?
@- बेटा-बहू यदि झगड़ा करते हैं, तो माता पिता को क्या करना चाहिए?
@- बेटी-दामाद यदि झगड़ा करते हैं, तो माता पिता को क्या करना चाहिए?
@- पति-पत्नी को अपने आपसी विश्वास को कायम रखने के लिए क्या प्रयास करने चाहिए?
@- घर के सरे कार्य पत्नी को करने चाहिए? या पति-पत्नी दोनों को मिलकर करने चाहिए?
@- पैसा केवल पति को कमाना चाहिए ?या पति-पत्नी दोनों को मिलकर कमाने चाहिए?
@- पति-पत्नी के बीच सामंजस्य के सारे रास्ते बंद हो जाये तो उन्हें क्या करना चाहिए?
@- पति-पत्नी के बीच सामंजस्य के सारे रास्ते बंद हो जाये तो उन्हें क्या उन्हें प्रयोग के तौर पर कुछ दिन अलग रहना चाहिए? या फिर एकदम से तलाक ले लेना चाहिए?
@- पति-पत्नी यदि तलाक ले लेते है, तो क्या बच्चों को पिता के पास रहना चाहिए?
@- पति-पत्नी यदि तलाक ले लेते है, तो क्या बच्चों को माता के पास रहना चाहिए?
@- पति-पत्नी यदि तलाक ले लेते है, तो क्या बच्चों को अनाथ आश्रम चाहिए?
@- आखिर बच्चों को करना क्या चाहिए?
अंत में मै यही कहना चाहता हूँ कि पति-पत्नी के बीच अगर सामंजस्य है तो वह आदर के पात्र है। और यदि नहीं है तो सहानुभूति के पात्र है। परिवार, समाज यहाँ तक कि बच्चों को उन्हें एक करने का प्रयास करना चाहिए, बशर्ते की इस बीच दोनों एक दूसरे की जान के दुश्मन न बन जाये।

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